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Showing posts from May, 2020

दैनिक जीवन में pH का महत्त्व (Importance of pH in daily life)

अम्लता व क्षारकता की जानकारी होने पर हम दैनिक जीवन की कई समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। जैसे कि - 1. उदर में अम्लता (Acidity in stomach) – इस की शिकायत होने पर उदर में जलन व दर्द का अनुभव होता हैं। इस समय हमारे उदर में जठर रस जिसमें कि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) होता हैं , अधिक मात्रा में बनता है , जिससे उदर में जलन और दर्द होता हैं। इससे राहत पाने के लिए एण्टाएसिड (Antacid) अर्थात् दुर्बल क्षारकों जैसे - मिल्क ऑफ मैग्नीशिया [Mg(OH) 2 ] का प्रयोग किया जाता हैं। यह उदर में अम्ल की अधिक मात्रा को उदासीन कर देता हैं।

केरियोटाइप (Karyotype)

पादप या जन्तुओं की प्रजातियों के सदस्य गुणसूत्र के एक सैट / जोड़े द्वारा पहचाने जाते हैं , जिसमें एक निश्चित लक्षण पाए जाते हैं। इसमें गुणसूत्रों की संख्या , आपेक्षिक आकार , गुणसूत्र बिंदु (Centro-mere) की स्थिति , भुजाओं की लंबाई व सैटेलाइट (Satellite) आदि। ये सभी लक्षण जिनके द्वारा गुणसूत्र के एक जोड़े को पहचाना जा सकता हैं , उस जाति का केरियोटाइप (Karyotype) कहलाता हैं।           केरियोटाइप को चित्र के रूप में प्रदर्शित करना इडियोग्राम (Ideogram) कहा जाता हैं। जहाँ गुणसूत्रों को उनके घटते आकार में व्यवस्थित किया जाता हैं। केरियोटाइप के 2 प्रकार होते हैं - अ. सममित केरियोटाइप एवं ब. असममित केरियोटाइप। इनमें निम्न अंतर पाए जाते हैं -

विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्र (Specific type of chromosomes)

कुछ जीवों की कोशिकाओं के केन्द्रक में असामान्य साइज एवं आकृति के गुणसूत्र मिलते हैं अर्थात् एक सामान्य गुणसूत्र से कई गुना अधिक बडे एवं आकृति में या संरचना में भी असामान्य होते हैं , इन्हें विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्र कहते हैं। विशिष्ट प्रकार के गुणसूत्र मुख्यतया निम्न होते हैं - 1. पॉलिटिन गुणसूत्र / बालवियानी गुणसूत्र / लारग्रंथी गुणसूत्र (Polytene chromosome / Balbiani chromosome) - पॉलिटिन गुणसूत्र विशेष प्रकार का गुणसूत्र होता हैं , जिसमें गुणसूत्र के लगातार आंतरिक वलन मिलते हैं , जिसे अन्तःपुर्नद्विगुणन (Endo-reduplication) कहा जाता हैं। पॉलिटिन गुणसूत्र की खोज ‘ बालवियानी ’ (E.G. Balbiani) ने 1881 में फलमक्खी (ड्रोसोफिला) के काइरोनोमस लारवा में की थी। पॉलिटिन गुणसूत्र अन्य कीटों जैसे - मच्छरों आदि में भी देख लिया गया हैं। आज-कल पॉलिटिन गुणसूत्र के अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो चुका हैं कि ये गुणसूत्र जिन कोशिकाओं के केन्द्रक में मिलते हैं , वे कोशिकाऐं समसूत्री विभाजन नहीं करती हैं। Balbiani chromosome

गुणसूत्र (Chromosome)

कोशिका की अन्तरावस्था में उपस्थित गुणसूत्री तंतु / धागें गुणसूत्रों में ही बदलते हैं। विभाजन काल में ये छोटे , मोटे एवं स्पष्ट होकर गुणसूत्र कहलाते हैं। प्रत्येक सजीव की कोशिका के केन्द्रक में इन गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती हैं तथा गुणसूत्र युग्मकों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचकर आनुवंशिक पदार्थ का प्रेषण करते हैं। Greek words; Chroma = Colored & Soma = Body गुणसूत्रों को सर्वप्रथम ‘ हॉफमिस्टर व कार्ल नेगेली ’ (Hauffmister & Carl Nageli) ने देखा था। गुणसूत्रों की खोज का श्रेय ‘ स्ट्रॉसबर्गर ( 1875)’ (Strausberger)   को दिया जाता हैं तथा ‘ गुणसूत्र ’ (Chromosome) नाम ‘ डब्ल्यू. वाल्डेयर ’ (W. Waldeyer) ने दिया था। लिंग गुणसूत्र x एवं y की खोज ‘ मैकक्लंग ’ (McClung) ने की थी।

केन्द्रक (Nucleus)

प्रत्येक कोशिका में केन्द्रक की उपस्थिति मिलती हैं। यह प्रायः गोलाकार , संख्या में एक , दो अथवा अधिक प्रति कोशिका में मिल सकते हैं , जिन्हें क्रमशः एककेन्द्रकी (Uninucleate), द्विकेन्द्रकी (Binucleate)   तथा बहुकेन्द्रकी (Multinucleate) कोशिका कहते हैं।           यदि एक कोशिका में केन्द्रकों की संख्या असंख्य हो , ऐसी बहुकेन्द्रकी कोशिका को संकोशिकी अवस्था (Coenocytic stage) वाली कोशिका कहा जाता हैं। उदाहरण - एल्बुगो कवक के कवकजाल में। केन्द्रक की खोज सबसे पहले 1831 में ऑर्किड पादप की कोशिका में ‘ रॉबर्ट ब्राउन ’ (Robert Brown)   ने की थी। कोशिका में केन्द्रकों के बारे में अध्ययन कराने वाली कोशिका विज्ञान की शाखा ‘ केरियोलॉजी ’ (Karyology) कहलाती हैं।           पादप कोशिकाओं में उपस्थित केन्द्रक रिक्तिकाओं के सुविकसित होने के कारण एक ओर स्थित होता हैं , जबकि जंतु कोशिकाओं में रिक्तिकाऐं अल्पविकसित या अनुपस्थित होने के कारण मध्य भाग में केन्द्रक की उपस्थिति मिलती हैं। ...

सूक्ष्मकाय व कोशिकीय कंकाल (Microbodies & Cytoskeleton)

सूक्ष्मकाय (Micro-bodies) - यूकेरियोटिक कोशिकाओं में कोशिका द्रव्य में अत्यन्त सूक्ष्म आकार की संरचनाओं के रूप में अर्थात् 0.3 से 1.5 µ तक के कोशिकांगों को सूक्ष्मकाय कहा जाता हैं। ये एकल झिल्लीबंधित कोशिकांग हैं , जो श्वसन के अलावा होने वाली ऑक्सीकरण अभिक्रियाओं से संबंधित हैं। प्रमुख सूक्ष्मकाय निम्न होते हैं - 1. परॉक्सीसोम (Peroxysome) - परॉक्सीसोम सूक्ष्म आकार के गोलाकार तथा इकाई झिल्ली से घिरी हुई संरचनाऐं होती हैं , जिन्हें ‘ टॉलबर्ट ’ (Tolbert) ने 1969 में खोजा तथा इनका नाम भी दिया। इन्हें परॉक्सीसोम कहा जाता हैं , क्योंकि इनमें परॉक्साइड उत्पन्न करने वाले एंजाइम (ऑक्सीडेज) तथा परॉक्साइड नष्ट करने वाले एंजाइम (केटेलेज) पाए जाते हैं। केटेलेज H 2 O 2 को जल व ऑक्सीजन में तोड़ता हैं। H 2 O 2 एक प्रबल ऑक्सीकारी हैं। अतः कोशिका के लिए अत्यधिक हानिकारक व विषाक्त हैं। ये ‘ तीन कोशिकांग अभिक्रिया ’ - प्रकाश श्वसन में भाग लेते हैं। यह एक हानिकारक अभिक्रिया हैं , जो हरितलवक , परॉक्सीसोम , माइटोकॉन्ड्रिया में सम्पन्न होती हैं। परॉक्सीसोम्स की उत्पत्ति अन्तःप्रर्द्रव्यी...

राइबोसोम (Ribosome)

* राइबोसोम को सर्वप्रथम पादप कोशिका में ‘ रोबिन्सन व ब्राउन ’ (Robinson & Brown) ने प्रेक्षित किया था। * ‘ पेलेड ’ (Palade) ने इन्हें जंतु कोशिकाओं में प्रेक्षित किया। ‘ राइबोसोम ’ (Ribosome) शब्द ‘ पेलेड ’ ने ही दिया , इसलिए इन्हें ‘ पेलेड कण ’ भी कहा जाता हैं। * ये सभी जीवित कोशिकाओं में पाए जाते हैं। (प्रोकेरियोटिक व यूकेरियोटिक दोनों में)। अपवादस्वरूप ये स्तनधारियों की लाल रूधिर कणिकाओं में नहीं पाए जाते हैं। इन्हें सार्वत्रिक कोशिकांग भी कहा जाता हैं। * ये कोशिका के सबसे छोटे कोशिकांग (Smallest cell organelle) हैं। * ये झिल्लीरहित कोशिकांग हैं। * इन्हें प्रोटीन के कारखाने (Factory of protein) भी कहा जाता हैं। * ये ऐसे कोशिकांग हैं , जो अन्य कोशिकांगों में भी पाए जाते हैं। अतः इन्हें ‘ कोशिकांग में कोशिकांग ’ (Cell organelle in cell organelle) भी कहा जाता हैं। Ribosomes

पक्ष्माभ व कशाभ (Cilia & Flagella)

पौधों में शैवाल , कवकों , ब्रायोफाइट्स , फर्न एवं कुछ अनावृत्तबीजियों के युग्मन तथा कुछ एककोशिकीय जंतुओं में एक अथवा एक से अधिक तंतुनुमा संरचनाऐं मिलती हैं , जिन्हें कशाभ व पक्ष्माभ कहा जाता हैं , ये कोशिका में गति के लिए उपस्थित संरचनाऐं कहलाती हैं। इनकी उत्पत्ति आधारी कणिका या ब्लेफेरोप्लास्ट (Blepharoplast) से मानी जाती हैं। पक्ष्माभ व कशाभ में निम्न मुख्य अंतर मिलते हैं - पक्ष्माभ (Cilia)   कशाभ (Flagella) ये सदैव संख्या में असंख्य होते हैं , लेकिन लम्बाई में बहुत कम होते हैं।   संख्या में बहुत कम प्रायः एक या दो या चार , लेकिन लम्बाई में अपेक्षाकृत्त अधिक होते हैं। ये सामान्यतः 5-20 µm लम्बे होते हैं। ये सामान्यतः 100-200 µm लम्बे होते हैं। ये पेण्डुलम (दोलन) के रूप में गति करते हैं।   ये तरंगित (लहर) के रूप में गति करते हैं। इनमें समन्वित गति मिलती हैं।   इनमें स्वतंत्र एवं असमन्वित गति मिलती हैं। ये सभी एक प्रकार के होते हैं।...

तारककाय (Centrosome)

‘ सेन्ट्रोसोम ’ (Centro some) शब्द ‘ बोवेरी ’ (T. Bovary) ने दिया। तारककाय की खोज ‘ बेन्डन ’ (Benden) ने की। इन्हें कोशिका केन्द्रक या कोशिका केन्द्र (Cell center) भी कहा जाता हैं। ये सभी यूकेरियोटिक , जंतु कोशिकाओं व निम्नस्तरीय जल पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ये प्रोकेरियोट्स , अमीबा , यीस्ट , अनावृत्तबीजी पादप व आवृत्तबीजी पादप आदि में अनुपस्थित होते हैं।           तारककेन्द्रक (Centriole) युग्म में पाए जाते हैं। यह युग्म ‘ डिप्लोसोम ’ (Diplosome) या ‘ सेन्ट्रोसोम ’ (Centro-some) कहलाता हैं। एक स्पष्ट तंतुमय कोशिका द्रव्य तारककेन्द्रकों को घेरता हैं , जिसे सेन्ट्रोस्फीयर (Centro-sphere) कहते हैं। सेन्ट्रोस्फीयर व तारककेन्द्रक को सम्मिलित रूप से तारककाय या डिप्लोसोम (Diplosome) कहते हैं। दो तारककेन्द्रक एक तारककाय में 90 डिग्री के कोण पर स्थित होते हैं। यह झिल्लीरहित संरचनाऐं हैं। ये सूक्ष्मनलिकाऐं उपलब्ध करवाकर , सूद्वमनलिकाओं के तर्कु बनाते हैं। तारककाय की संरचना (Structure of Centrosome) -

अन्तः झिल्ली तंत्र (Endo-memberane system)

झिल्ली बंधित कोशिकांग जिनके कार्य आपस में समन्वित होते हैं , अन्तः झिल्ली तंत्र बनाते हैं। इसमें निम्न कोशिकांग सम्मिलित हैं - 1. अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका 2. गॉल्जीकाय 3. लाइसोसोम 4. रिक्तिका 1. अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) – अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका शब्द ‘ पोर्टर’ (Porter) ने दिया व खोज भी ‘ पोर्टर ’ ने ही की। अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका अन्तःकोशिकीय अवकाश को दो भागों में बाँटती हैं - अ. लूमिनल भाग (अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका के अंदर) , ब. एक्स्ट्रा लूमिनल भाग (कोशिका द्रव्य में)। अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका केन्द्रक झिल्ली से कोशिका झिल्ली तक फैली हो सकती हैं। अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका की संरचना में 3 घटक पाए जाते हैं - Ⅰ . सिस्टर्नी (Cisternae) - ये लम्बी , चपटी , समानांतर , अशाखित , थैले समान अर्न्तसम्बंधित संरचना हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम पाए जाते हैं। ये प्रोटीन संश्लेषण करने वाली कोशिकाओं में अधिक पाए जाते हैं।

लवक (Plastid)

Plastid शब्द ‘ हेकल ’ ने दिया। लवक के विभिन्न प्रकार ‘ शिम्पर ’ ने बताऐं। पादप कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग लवक हैं। एक कोशिका में पाए जाने वाले समस्त लवकों को ‘ प्लास्टीडोम ’ (Plastidome) कहा जाता हैं। वर्णकों की उपस्थिति के आधार पर लवक 3 प्रकार के होते हैं - 1. हरितलवक 2. वर्णीलवक 3. अवर्णीलवक 1. हरितलवक (Chloroplast) - भिन्न-भिन्न पादप जातियों में भिन्न-भिन्न आकृति के हरितलवक पाए जाते हैं। सबसे सामान्य आकृति लैंस आकृति हैं। विभिन्न आकृतिया जैसे- लैंस आकृति (उच्च पादपों में) , मेखलाकृति (यूलोथ्रिक्स में) , सर्पिलाकृति (स्पाइरोगाइरा में) , कप आकृति (क्लेमाइडोमोनास में)। हरितलवक की लंबाई 5-10 µM व चौडाई 2-4 µM होती हैं। भिन्न-भिन्न पादप जातियों में हरितलवकों की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती हैं। उदाहरण- एक- क्लेमाइडोमोनास , यूलोथ्रिक्स , क्लोरेला। दो- जिग्निमा में। एक से 16 - स्पाइरोगाइरा में। 20 से 40 - उच्च पादपों में। हरितलवक की संरचना (Structure of chloroplast) – 

सूत्रकणिका (Mitochondria)

माइटोकॉन्ड्रिया जंतु कोशिका का सबसे बड़ा व पादप कोशिका का दूसरा सबसे बड़ा कोशिकांग हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम ‘ कोलीकर ’ (Kolliker) ने कीटों की रेखित पेशियों में प्रेक्षित किया।           बाहरी झिल्ली रहित माइटोकॉन्ड्रिया - माइटोप्लास्ट कहलाता हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की खोज का श्रेय ‘ अल्टमान व फ्लेमिंग ’ (Altman & Fleming) को जाता हैं। अल्टमान ने इन्हें ‘ बायोप्लास्ट ’ (Bioplast) कहा। बाद में ‘ बेन्डा ’ (Benda) ने माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) शब्द दिया। माइटोकॉन्ड्रिया को हिन्दी में ‘ सूत्रकणिका ’ भी कहा जाता हैं। माइटोकॉन्ड्रिया सामान्यतः बेलनाकार होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में अलग-अलग होती हैं। अधिक सक्रिय कोशिकाओं में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं। जंतुओं में पक्षियों की उड़न पेशियों में सर्वाधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं। पादपों की तुलना में जंतु कोशिकाओं में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना (Structure of mitochondria) – 

जीवद्रव्य (Protoplasm)

सजीव कोशिका में उपस्थित कोशिकाद्रव्य तथा उसके केन्द्रक में उपस्थित केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) मिलकर जीवद्रव्य का निर्माण करते हैं। अतः स्पष्ट हैं कि जीवद्रव्य (Protoplasm) = कोशिका द्रव्य (Cytoplasm) + केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) जीवद्रव्य की खोज ‘ एल्फोसो कॉर्टी ’ (Alfonso Corte) ने की। जीवद्रव्य के लिए ‘ सारकोडे ’ (Sarcode) शब्द ‘ फेलिक्स डुजार्डिन ’ (Felix Dujardin) ने दिया। जीवद्रव्य के लिए ‘ प्राटोप्लाज्म ’ (Protoplasm) शब्द ‘ पुरकिन्जे ’ (Purkinje) ने दिया। ‘ मैक्स शुल्जे ’ (Max Sulje) ने जीवद्रव्य सिद्धांत (Protoplasm theory) दिया। जीवद्रव्य में ही समस्त जैविक क्रियाऐं सम्पन्न होती हैं , इसीलिए ‘ हक्सले ’ (Huxley) ने ‘ जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार ’ (Protoplasm is the physical basis of life) कहा।

कोशिका झिल्ली (Cell membrane)

इसे प्लाज्मा झिल्ली / इकाई झिल्ली या जैविक झिल्ली भी कहते हैं। कोशिका झिल्ली शब्द ‘ नागेली एवं क्रेमर ’ (Nageli & Kramer) ने दिया। प्लाज्मा झिल्ली शब्द ‘ प्लॉव ’ (Ploue) ने दिया। इकाई झिल्ली शब्द ‘ रॉबर्टसन ’ (Robertson) ने दिया। कोशिका झिल्ली की संरचना (Structure of cell membrane) - कोशिका झिल्ली की संरचना को समझाने के लिए निम्न सिद्धांत दिए गए हैं - 1. लाइपोइडल सिद्धांत (Lipoidel model) - यह सिद्धांत ‘ ओवरटोन ’ (Overton) ने दिया। इसके अनुसार कोशिका झिल्ली वसीय परत की बनी होती हैं। 2. सैंडविच या त्रिपरतीय मॉडल (Sandwich or tri-lamellar model) - यह मॉडल ‘ डेवसन व डेनियली ’ (Dawson & Danielle) ने प्रस्तुत किया। इनके अनुसार कोशिका झिल्ली में बाहर की तरफ प्रोटीन की परतें व बीच में वसा की परत पायी जाती हैं।

कोशिका भित्ति (Cell wall)

पादप कोशिकाओं का सबसे बाहरी दृढ़ एवं निर्जीव आवरण कोशिका भित्ति कहलाता हैं। कोशिका भित्ति जंतु कोशिकाओं में अनुपस्थित होती हैं। अलग-अलग प्रकार के पौधों की कोशिका भित्ति संरचनात्मक एवं संगठनात्मक दृष्टि से अलग-अलग प्रकार की होती हैं। जैसे - जीवाणुओं की भित्ति - पेप्टीडोग्लाइकॉन या म्यूकोपेप्टाइड + म्यूरेमिक अम्ल कवको की कोशिका भित्ति - काइटिन (एक तरह का पॉलीसैकेराइड) शैवालों की कोशिका भित्ति - सेल्युलोज + पेक्टिन अन्य विकसित पौधों में - सेल्युलोज से निर्मित           सेल्युलोज की भित्ति पर उच्च वर्गीय पौधों में विभिन्न प्रकार के पदार्थों का जमाव भी मिलता हैं। जैसे - क्यूटिन , सुबेरिन , लिग्निन , मोम आदि।

कोशिकाओ के प्रकार (Types of cells)

कोशिकीय संरचना तथा कोशिकीय घटकों के आधार पर सजीव निम्न दो प्रकार की कोशिकाऐं दर्शाते हैं - 1. प्रोकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) - प्रोकेरियोटिक शब्द दो ग्रीक शब्दों ‘ प्रो ’ तथा ‘ केरियोन ’ से मिलकर बना हैं , जिनका अर्थ क्रमशः ‘ प्राथमिक विकसित ’ तथा ‘ केन्द्रक ’ हैं। अर्थात् ऐसी सभी कोशिकाऐं जिनमें स्पष्ट केन्द्रक का अभाव हो , प्रोकेरियोटिक कोशिका कहलाती हैं।           ऐसी कोशिका जिसमें केन्द्रक झिल्ली अनुपस्थित होने के कारण स्पष्ट केन्द्रक का अभाव हो , साथ ही कोशिका में झिल्लीयुक्त कोशिकांग भी अनुपस्थित हो , प्रोकेरियोटिक कोशिका कहलाती हैं। उदाहरण- आर्किजीवाणु , जीवाणु , नील-हरित शैवाल , माइकोप्लाज्मा आदि।