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Showing posts from July, 2020

हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)

हाइपोथैलेमस हमारे मस्तिष्क का अंग हैं , जो तंत्रिकीय तंत्र को अन्तःस्त्रावी तंत्र से जोड़कर समस्थापन में सहायता प्रदान करता हैं। यह अग्र मस्तिष्क की गुहा डाइएनसेफेलॉन के फर्श पर स्थित होता हैं। इसकी आंतरिक संरचना में दो प्रकार की तंत्रिकीय स्त्रावी कोशिकाऐं होती हैं - 1. छोटे एक्सॉन युक्त तंत्रिकीय स्त्रावी कोशिकाऐं - ये कोशिकाऐं हाइपोथैलेमस हाइपोफिसीयल निवाहिका तंत्र द्वारा पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस भाग के संपर्क में रहती हैं। (निवाहिका तंत्र शब्द का प्रयोग उस अवस्था में किया जाता हैं , जब हमारे शरीर में रक्त एक अंग से दूसरे अंग की ओर हृदय को छोड़कर गमन कर रहा हों।)           हाइपोथैलेमस में उपस्थित छोटे एक्सॉन युक्त तंत्रिकीय स्त्रावी कोशिकाऐं प्रेरित अथवा संदमित प्रकार के हॉर्मोनों का स्त्रावण पीयूष ग्रन्थि के अग्र पिण्ड में करती हैं। प्रेरित हॉर्मोन पीयूष ग्रन्थि से किसी विशिष्ट हॉर्मोन के स्त्रावण को उत्तेजित कर देते हैं , ये निम्न हैं - TSH-RH – Thyroid Stimulating Hormone Releasing Hormone ACTH-RH – Adreno Cortico Tropic Hormone Releasing Hormone GnRH –

हॉर्मोन (Hormone)

हॉर्मोन शब्द ‘ स्टर्लिंग ’ (Sterlin g)   द्वारा दिया गया। ‘ हॉर्मोन ’ (Hormaein)   शब्द ग्रीक भाषा का शब्द हैं , जिसका अर्थ होता हैं- ‘ उत्तेजित करना ’ (To excite) । हॉर्मोन को ‘ प्राथमिक संदेशवाहक ’ या ‘ रसायनिक संदेशवाहक ’ भी कहते हैं। प्रथम खोजा गया हॉर्मोन ‘ सीक्रेटिन ’ है। इसे ‘ बेलिस ’ तथा स्टर्लिंग द्वारा 1902 में खोजा गया। Hormone   स्त्रोत तथा रसायनिक प्रकृति (Source and chemical nature) - हॉर्मोन रसायनिक संदेशवाहक है , जो शरीर के एक भाग द्वारा स्त्रावित होते हैं तथा सीधे रक्त में जाते हैं व ये रक्त की सहायता से उनके लक्ष्य स्थान पर पहुँचते हैं। हॉर्मोन की कम मात्रा कुछ विशिष्ट कोशिकाओं या अंगों की कोशिकाओं की कार्यिकी को प्रभावित करती हैं।   हॉर्मोन के गुण (Characters of hormone) - हॉर्मोन में निम्न गुण पाए जाते हैं - इनमें निम्न आण्विक भार होता हैं। ये तथा रक्त में विलेय होते हैं। इनमें संचयी प्रभाव नहीं होता हैं। ये बहुत निम्न सान्द्रता में कार्य करते हैं। ये नोन-एन्टिजेनिक (Non-antigenic) होते हैं। ये कार्बनिक उत्प्रेरक होते हैं।  

अन्तःस्त्रावी विज्ञान (Endocrinology)

जीवविज्ञान की वह शाखा जो अन्तःस्त्रावी तन्त्र तथा इसकी कार्यिकी के साथ जोड़ी गई हैं , ‘ अन्तःस्त्रावी विज्ञान ’ (Endocrinology) कहलाती हैं। ‘ थॉमस एडिसन ’ (Thomas Edison) को अन्तःस्त्रावी विज्ञान का जनक कहते हैं। Endocrinology   शरीर की ग्रन्थियाँ - कोशिका , ऊत्तक या अंग जो कुछ उपयोग रसायनिक पदार्थ स्त्रावित करते हैं , ग्रन्थि कहलाते हैं। जन्तुओं में तीन प्रकार की ग्रन्थियाँ होती हैं -

मानव प्रजनन तंत्र (Human Reproductive System)

अपनी जाति या वंश की निरंतरता को बनाये रखने के लिए प्रत्येक जीवधरी अपने ही समान जीवों को पैदा करता है , जीवों में होने वाली इस क्रिया को प्रजनन कहते है। जीवों के प्रजनन मे भाग लेने वाले अंगों को प्रजनन अंग (Reproductive organs) तथा एक जीव के सभी प्रजनन अंगों को सम्मिलित रूप से प्रजनन तंत्र (Reproductive System) कहते है। जीवों में जनन को एक जीव विज्ञानीय प्रक्रम के रूप में परिभाषित किया गया है , जिसमें एक जीव अपने समान एक छोटे से जीव ( संतति) को जन्म देता है। संतति में वृद्धि होती है , उनमें परिपक्वता आती है तथा इसके बाद वह नयी संतति को जन्म देती है। इस प्रकार जन्म , वृद्धि तथा मृत्यु चक्र चलता रहता है। जनन प्रजाति में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में निरंतरता बनाए रखती है। जीव विज्ञानीय संसार में व्यापक विविधता पाई जाती है तथा प्रत्येक जीव अपने को बहुगुणित करने तथा संतति उत्पन्न करने के लिए अपनी ही विधि विकसित करता है। जीव किस प्रकार से जनन करता है उसके वास , उसकी आंतरिक शरीर क्रिया विज्ञान तथा अन्य कई कारक सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं।   जनन प्रक्रिया दो प्रकार की होती है जो एक

मानव मस्तिष्क (Human Brain)

मानव का तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है-   ( क) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र ( Central Nervous System ) तथा ( ख) परिधीय तंत्रिका तंत्र। (Peripheral Nervous System ) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु सम्मिलित है , जहाँ सूचनाओं का संसाधन एवं नियंत्रण होता है। मस्तिष्क एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र सभी तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है , जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र   ( मस्तिष्क व मेरूरज्जू) से जुड़ी होती हैं। परिधीय तंत्रिका तंत्र में दो प्रकार की तंत्रिकाएं होती हैं   ( अ) संवेदी या अभिवाही एवं   ( ब) चालक/प्रेरक या अपवाही। संवेदी या अभिवाही तंत्रिकाएं उद्दीपनों को ऊतकों/अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक तथा चालक/अभिवाही तंत्रिकाएं नियामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंध्ति परिधीय ऊतक/अंगों तक पहुँचाती हैं। परिधीय तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है - कायिक तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र। कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहूँचाता है। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पुनः

असूत्री विभाजन (Amitosis)

असूत्री विभाजन (Amitosis) की खोज रेमेक (Remak) ने की। असूत्री विभाजन का विस्तृत अध्ययन फ्लेमिंग (Fleming) ने किया। असूत्री विभाजन (Amitosis) अकोशिकीय जीवों जैसे- जीवाणु , प्रोटोजोअन्स इत्यादि में अलैंगिक जनन की विधि हैं। इस प्रकार का विभाजन एक कोशिकीय जीवों तथा भ्रूण कला की कोशिकाओं में पाया जाता हैं। असूत्री विभाजन के समय केन्द्र पहले कुछ लम्बा हो जाता है , तत्पश्चात् मध्य में एक संकीर्णन अवगमन के निर्माण के फलस्वरूप इसकी आकृति डमरू सदृश हो जाती हैं। संकीर्णन के ज्यादा गहरा होने से केन्द्रक दो भागों में बँट जाता है। इस प्रक्रिया के साथ-साथ कोशिका द्रव्य भी लगभग दो समान भागों में विखण्डित होकर दो संतति कोशिकाओं का निर्माण करता है , क्योंकि इस विभाजन में केन्द्रीय घटनाओं का पूर्ण अभाव होता है , अतः यह कोशिका विभाजन की अत्यन्त सरल विधि हैं। यह विभाजन अधिकतर असाधारण परिस्थितियों में ही होता हैं। इस विभाजन में केन्द्रक झिल्ली लुप्त नहीं होती हैं व केन्द्रिका भी लुप्त नहीं होती हैं। तर्कुतंतु नहीं बनते हैं। इसमें क्रोमेटिन संघनन से गुणसूत्र का निर्माण नहीं होता।

समसूत्री व अर्द्धसूत्री विभाजन के प्रकार (Types of Mitosis & Meiosis)

समसूत्री विभाजन के प्रकार - 1. क्रिप्टोमाइटोसिस या प्रोमाइटोसिस (Cryptomitosis or promitosis) - यह आदिम प्रकार का समसूत्री विभाजन हैं। इसमें केन्द्रक झिल्ली लुप्त नहीं होती। इसे ‘ अन्तः केन्द्रकीय केन्द्रक विभाजन ’ भी कहते हैं। सभी परिवर्तन केन्द्रक में होते हैं तथा तर्कुओं का निर्माण भी केन्द्रक में होता हैं। इन्हें अन्तः केन्द्रकीय तर्कु तंतु भी कहते हैं। इन जीवों में तारककाय नहीं होता हैं। उदाहरण - कुछ प्रोटोजोअन्स (जैसे- अमीबा)।   2. डायनोमाइटोसिस (Dinomitosis) - हिस्टोन्स की अनुपस्थिति के कारण इनमें गुणसूत्रों का संघनन नहीं होता। केन्द्रक झिल्ली लुप्त नहीं होती तथा अंतः केन्द्रीय तर्कु का निर्माण होता हैं। उदाहरण - डायनोफ्लैजिलेट्स (Mesokaryote) । क्रिप्टोमाइटोसिस व डायनोमाइटोसिस प्रीमाइटोसिस (Premitosis) कहलाते हैं।   3. एण्डोमाइटोसिस (Endomitosis) - बिना केन्द्रकीय विभाजन के गुणसूत्रीय विभाजन एण्डोमाइटोसिस कहलाता हैं। इससे बहुगुणिता प्रेरित होती हैं , क्योंकि गुणसूत्रीय सैट संख्या बढ़ जाती हैं।             कॉल्चिसीन बहुगुणिता को प्रेरित करता है , जो

अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) शब्द ‘ फार्मर व मूरे ’ (Farmer & Moore) ने दिया। कोशिका विभाजन की वह विधि जिसमें एक कोशिका विभाजित होकर चार पुत्री कोशिकाएं बनाती है तथा प्रत्येक पुत्री कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या पैतृक कोशिका से आधी होती हैं। अर्द्धसूत्री विभाजन कहलाता है।           अर्द्धसूत्री विभाजन द्विगुणित कोशिका में होता हैं। मिओसिस- Ⅰ में गुणसूत्रीय विभाजन नहीं होता हैं , इसमें केवल समजात गुणसूत्रों का पृथक्करण होता है। गुणसूत्रीय विभाजन मिओसिस- Ⅱ की पश्चावस्था- Ⅱ में होता हैं। अर्द्धसूत्री विभाजन में केन्द्रक विभाजन दो बार होता हैं , परन्तु गुणसूत्र विभाजन केवल एक बार (मिओसिस- Ⅱ के दौरान) होता हैं। Meiosis

समसूत्री विभाजन (Mitosis)

सर्वप्रथम रूडोल्फ विर्चो (Rudolf Virchow) ने कोशिका लिनियेज (Cell Lineage) का सिद्धांत दिया। इस सिद्धांत के अनुसार नई कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्व स्थित कोशिका से होती है , जिसे विर्चो ने ‘ ओमनिस सेल्युला ऐ सेल्युली ’ कहा। कार्ल नागेली (Carl Nageli) ने बताया कि नई कोशिका की उत्पत्ति पूर्व स्थित कोशिका के विभाजन से होती हैं। स्ट्रॉसबर्गर (Strausberger) ने बताया कि केन्द्रक की उत्पत्ति पूर्व स्थित केन्द्रक के विभाजन से होती हैं।   समसूत्री विभाजन (Mitotic division) - समसूत्री विभाजन (Mitosis) शब्द फ्लेमिंग (Fleming) ने दिया तथा विस्तृत अध्यनन श्लाइडेन (Schliden) ने किया।   कोशिका चक्र (Cell cycle) - Cell cycle

स्वास्थ्य एवं रोग (Health & Disease)

Health & Disease स्वास्थ्य (Health) - WHO (World Health Organization) के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा निम्न हैं- ‘ जब शरीर के सभी अंग आपस में बाह्य वातावरण के साथ उचित व वांछित संतुलन बनाए रखते हुए सही कार्य करते हैं , तो इस दशा में शरीर को स्वस्थ या निरोगी कहा जाता हैं। ’ अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति सामाजिक , शारीरिक व मानसिक संतुलन की स्थिति में होता हैं।   स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting health) - स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं - 1. आनुवंशिक विकार - ये विकार जीन या गुणसूत्र की अनियमितता या असामान्यता के कारण उत्पन्न होते हैं , ये हमें माता-पिता से जन्म के साथ ही प्राप्त होते हैं , अर्थात् ये वंशानुगत होते हैं।   2. संक्रमण - अनेकों प्रकार के रोगजनकों के संक्रमण से भी स्वास्थ्य प्रभावित होता है , जैसे- जीवाणु , विषाणु , कवक , प्रोटोजोआ , कृमि आदि संक्रमण कारक हैं।           ऐसे कारक जो किसी जीव को संक्रमित करते हैं , संक्रमण कारक कहलाते हैं।   3. जीवन शैली - वर्तमान में असंतुलित जीवन शैली

कैंसर (Cancer)

हमारे शरीर में कोशिकाओं की वृद्धि और विभेदन अत्यधिक नियंत्रित व नियमित होता हैं , लेकिन कैंसर कोशिकाओं में यह नियामक क्रियाविधि टूट जाती हैं। प्रसामान्य कोशिकाओं में संस्पर्श संदमन का गुण पाया जाता हैं , इसी गुण के कारण दूसरी कोशिकाओं में उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है , लेकिन कैंसर कोशिकाओं में यह गुण समाप्त हो जाता हैं , जिसके फलस्वरूप कैंसर कोशिका विभाजित होना जारी रखकर कोशिकाओं का भंडार बनाती हैं , जिसे अर्बुद (Tumor) कहते हैं। अर्बुद 2 प्रकार के होते हैं - 1. सुर्दम अर्बुद (Benign tumor) - इसमें विभाजनशील कोशिकाएं शरीर के किसी स्थान विशेष में ही सीमित रहती हैं और वहाँ पर अर्बुद बनाती हैं , इसे ऑपरेशन द्वारा शरीर से अलग किया जा सकता हैं। अतः यह अधिक हानिकारक नहीं होता हैं।   2. दुर्दम अर्बुद (Malignant tumor) - दुर्दम अर्बुद प्रचुरोद्भवी कोशिकाओं का पुन्ज होता हैं , जो नवद्रव्यी कोशिकाएं कहलाती हैं। ये बहुत तेजी से बढ़ती हैं और आस-पास के सामान्य ऊत्तकों पर हमला कर उन्हें क्षति पहुँचाती हैं। अर्बुद कोशिकाएं सक्रियता से विभाजित और वर्धित होती ह

अंग प्रत्यारोपण (Organ Transplant)

वर्तमान में ऊत्तक या अंग प्रत्यारोपण आम बात हो गई हैं। हृदय , फुफ्फुस , यकृत एवं अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण सारी दुनिया में हो रहे हैं। जब व्यक्ति के दोनों वृक्क कार्य करना बंद कर देते हैं , तो वृक्क प्रत्योरोपण एक मात्र इलाज बचता हैं। यकृत पूर्ण रूप से रोग ग्रस्त हो जाए एवं कार्य करना बंद कर दे तो सिर्फ यकृत प्रत्यारोपण ही एक मात्र इलाज होता हैं। खराब हुए अंगों का एक मात्र इलाज अंग प्रत्यारोपण ही हैं। एक व्यक्ति के ऊत्तक या अंगों का दूसरे व्यक्ति में रोपण को प्रत्यारोपण (Transplantation) कहते हैं। अंग प्रत्यारोपण प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन प्रकार का होता हैं -   Organ transplant  

प्रमुख ऊत्तक संयोज्यता जटिल (Major Histocompatibility Complex)

सभी कोशिकाओं में विशेष जीन समूह पाया जाता है , जो कोशिका कला पर उपस्थित विशेष ग्लाइकोप्रोटीन के संश्लेषण से सम्बन्धित होते हैं। एक जीव की सभी कोशिकाओं की सतह पर एक-समान ग्लाइकोप्राटीन्स होते हैं , किन्तु अलग-अलग जीवों की कोशिकाओं पर अलग-अलग ग्लाइकोप्रोटीन्स होते हैं। अतः इन सतही ग्लाइकोप्रोटीन्स (Surface glycoproteins) की सहायता से कोशिकायें Self and Non-self को पहचानती है। ग्लाइकोप्रोटीन्स को प्रमुख ऊत्तक संयोज्यता जटिल (MHC) अणु भी कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं - MHC- Ⅰ अणु शरीर की लगभग सभी कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं , जबकि MHC- Ⅱ केवल कुछ विशेष कोशिकाओं जैसे- मैक्रोफैज , बी-लिम्फोसाइट्स तथा सक्रिय टी-कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं।

एकक्लोनी प्रतिरक्षियों की उपयोगिताएं (Applications of Monoclonal Antibodies)

एकक्लोनी प्रतिरक्षी अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इनका उपयोग कई प्रकार की क्रियाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। विषाणुओं पर प्रतिजनिक निर्धारकों का नियंत्रण करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। अलग-अलग श्रेणियों के प्रोटीन्स के अध्ययन एवं रोगों के उपचार व निदान में भी इनका लाभ उठाया जाता है। अनेकों जटिल प्रकृति के प्रतिजनों की संरचना ज्ञात करने में भी यह महत्वपूर्ण सिद्ध हुए है। इनमें सामान्य कोशिकाओं के ट्यूमर कोशिकाओं में रूपान्तरण एवं कोशिकीय विभेदीकरण से उत्पन्न हुए प्रतिजनों की संरचना ज्ञात करना प्रमुख हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी की विशिष्ट उपयोगिताएं निम्नलिखित हैं -   1. आण्विक जीव विज्ञान में (In Molecular Biology) - चिकित्सा विज्ञान में बहुत से महत्वपूर्ण जैव अणुओं जैसे- इन्सुलिन एवं ह्यूमन वृद्धि हॉर्मोन के शुद्धिकरण के लिए एकक्लोनी प्रतिरक्षी प्रयुक्त किए जाते हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षियों की उच्च विशिष्टता के कारण ये भेषजगुण-कार्यिकी कारकों (Pharmaco-physiological agents) की संरचना व कार्यों के अध्ययन के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।   2. सूक्ष्मजीव विज्ञान में (In