सर्वप्रथम रूडोल्फ विर्चो (Rudolf Virchow) ने कोशिका लिनियेज (Cell Lineage) का सिद्धांत दिया। इस सिद्धांत के अनुसार नई कोशिकाओं की उत्पत्ति पूर्व स्थित कोशिका से होती है, जिसे विर्चो ने ‘ओमनिस सेल्युला ऐ सेल्युली’ कहा।
कार्ल नागेली (Carl Nageli) ने बताया कि नई कोशिका की उत्पत्ति पूर्व स्थित कोशिका के विभाजन से होती हैं।
स्ट्रॉसबर्गर (Strausberger) ने बताया कि केन्द्रक की उत्पत्ति पूर्व स्थित केन्द्रक के विभाजन से होती हैं।
समसूत्री विभाजन (Mitotic division) -
समसूत्री विभाजन (Mitosis) शब्द फ्लेमिंग (Fleming) ने दिया तथा विस्तृत अध्यनन श्लाइडेन (Schliden) ने किया।
कोशिका चक्र (Cell
cycle) -
घटनाओं का वह क्रम जिनके द्वारा एक कोशिका अपने जीनोम को दुगुना करती हैं। अन्य घटकों का (कोशिका के घटकों का) संश्लेषण करती है तथा अंत में दो पुत्री कोशिका में विभाजित हो जाती है, जिसे कोशिका चक्र कहते हैं।
उदाहरण - मानव कोशिका 24 घण्टे में विभाजित हो जाती है, जबकि यीस्ट कोशिका 90 मिनट में विभाजित हो जाती हैं।
कोशिका चक्र की दो मुख्य प्रावस्थाऐं निम्न हैं -
1.अंतरावस्था
2. विभाजन प्रावस्था
1.अंतरावस्था (Interphase) -
दो क्रमिक विभाजन प्रावस्था के बीच की प्रावस्था अंतरावस्था (Interphase) होती हैं। इस दौरान कोशिका अगले विभाजन के लिए तैयार होती हैं। यह कोशिका चक्र की सबसे सक्रिय प्रावस्था है तथा इस दौरान तीव्र उपापचयी क्रियाएं होती हैं। कोशिका चक्र की यह सबसे लंबी प्रावस्था हैं (90 प्रतिशत से ज्यादा समय) । इस प्रावस्था में प्राटीन्स, टी-आरएनए, एम-आरएनए व एटीपी का संश्लेषण होता हैं।
इस प्रावस्था के दौरान होने वाले परिवर्तनों को साधारण सूक्ष्मदर्शी से नहीं देखा जा सकता, अतः पुराने समय में इसे विश्राम प्रावस्था कहते थे।
अ.पूर्व डीएनए संश्लेषण प्रावस्था / प्रथम अंतराल प्रावस्था / G1 प्रावस्था -
इस प्रावस्था के दौरान नई कोशिकाओं का निर्माण होता हैं। नये प्रोटीन्स व आर.एन.ए. बनते हैं। अतः कोशिकाद्रव्य में वृद्धि के द्वारा कोशिका वृद्धि करती हैं। कभी-कभी इस प्रावस्था के दौरान कोशिका अपने विभाजित होने के निर्णय को निरस्त करती है, इसे G0 या शांत प्रावस्था (Quiescent) कहते हैं। उदाहरण - तंत्रिका कोशिका।
ब. डीएनए संश्लेषण या संश्लेषण प्रावस्था -
केन्द्रक में डीएनए का प्रतिकृतिकरण होता हैं तथा हिस्टोन प्रोटीन्स का संश्लेषण होता हैं। अंत में डीएनए की मात्रा दुगुनी हो जाती हैं। तारककाय का निर्माण / विभाजन भी इसी प्रावस्था में होता हैं।
स. पश्च डीएनए संश्लेषण प्रावस्था / G2 प्रावस्था -
इस प्रावस्था में कोशिकांगों की संख्या बढ़ती हैं। कोशिका विभाजन की वास्तविक तैयारी यहीं होती हैं। तर्कु प्रोटीन को निर्माण भी इसी प्रावस्था में होता हैं। उदाहरण - ट्यूब्यूलिन प्रोटीन (Tubulin protein) । तर्कु तंतु 97 प्रतिशत ट्यूब्यूलिन व 3 प्रतिशत आरएनए से बनते हैं।
2. विभाजन प्रावस्था / एम-प्रावस्था (M-Phase) -
G2 प्रावस्था के ठीक बाद कोशिका एम-प्रावस्था में प्रवेश करती हैं। यह कोशिका चक्र की सबसे छोटी प्रावस्था हैं। स्थाई ऊत्तकों की विभेदति कोशिकाएं जी-1 प्रावस्था में ही स्वयं को रोक लेती हैं, यह जी-0 (G0) प्रावस्था कहलाती हैं। यह कोशिका, कोशिका-चक्र को छोड़ देती हैं। विभज्योत्तक की कोशिका, कोशिका-चक्र में लगातार विभाजित होती हैं। साइक्लिन प्रोटीन कोशिका चक्र का मुख्य नियंत्रक हैं। कोशिका चक्र को नियंत्रित करने वाले एंजाइम CdKs ( Cycline Dependent Kinase) कहलाते हैं।
एम-प्रावस्था में निम्न दो घटनाएं होती हैं-
अ.केन्द्रक विभाजन
ब. कोशिकाद्रव्य विभाजन
अ.केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis) –
Karyokinesis शब्द Schliden ने दिया | केरियाकाइनेसिस अप्रत्यक्ष होता हैं अर्थात् समसूत्री विभाजन के दौरान केन्द्रक व कोशिका द्रव्य में कई क्रमिक परिवर्तन होते है। इन परिवर्तनों को 4 प्रावस्थाओं में विभाजित किया जा सकता हैं-
Ⅰ.पूर्वावस्था (Prophase) -
यह एम-प्रावस्था की सबसे लंबी प्रावस्था हैं। इस प्रावस्था में क्रोमेटिन तंतु कुंडलित होकर अधिक सघन व छोटे हो जाते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र दोहरा प्रकट होता हैं तथा इसमें दो क्रोमेटिड एक सेन्ट्रोमीयर (Centromere) द्वारा जुड़ी होती हैं, जिसके कारण गुणसूत्र ऊन के गोले की तरह प्रकट होते हैं। गुणसूत्रीय संघनन की प्रक्रिया के दौरान ही गुणसूत्रीय द्रव्य स्पष्ट होने लगते हैं। तारककेन्द्र जिसका अंतरावस्था की संश्लेषण प्रावस्था के दौरान ही द्विगुणन हुआ था, अब कोशिका के विपरीत ध्रुवों की ओर चलना प्रारंभ कर देता हैं। पूर्वावस्था के दौरान निम्न महत्वपूर्ण घटनाएं होती हैं -
गुणसूत्रीय द्रव्य संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाता हैं।गुणसूत्र दो अर्धगुणसूत्रों से बना होता हैं, जो आपस में सेन्ट्रोमीयर से जुड़े रहते हैं।
समसूत्री तर्कु, सूक्ष्म नलिकाओं के जमावड़े की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती हैं। कोशिका जीवद्रव्य के ये प्रोटीनयुक्त घटक इस प्रक्रिया में सहायता करते हैं। पूर्वावस्था के अंत में यदि कोशिका को सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता हैं तो इसमें गॉल्जीकाय, अंतर्द्रव्यी जालिका, केंद्रिका व केंद्रक आवरण दिखाई नहीं देता है।
Ⅱ. मध्यावस्था (Metaphase) -
केन्द्रक आवरण के पूर्णरूप से विघटित होने के साथ समसूत्री विभाजन की द्वितीय प्रावस्था प्रारंभ होती हैं, इसमें गुणसूत्र कोशिका के कोशिकाद्रव्य में फैल जाते हैं। इस अवस्था तक गुणसूत्रों का संघनन पूर्ण हो जाता हैं और सूक्ष्मदर्शी से देखने पर ये स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते है। यही वह अवस्था है, जब गुणसूत्रों की आकारिकी का अध्ययन बहुत ही सरल तरीके से किया जा सकता हैं।
मध्यावस्था गुणसूत्र दो संतति अर्धगुणसूत्रों से बना होता हैं जो आपस में गुणसूत्रबिंदु से जुड़े होते हैं। गुणसूत्रबिंदु के सतह पर एक छोटा बिंब आकार की संरचना मिलती हैं, जिसे काइनेटोकोर कहते हैं। सूक्ष्म नलिकाओं से बने हुए तर्कुतंतु के जुड़ने का स्थान ये संरचनाएं हैं, जो दूसरी ओर कोशिका के क्रेद्र में स्थित गुणसूत्र से जुड़े होते हैं। मध्यावस्था में सभी गुणसूत्र मध्यरेखा पर आकर स्थित रहते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र का एक अर्धगुणसूत्र एक ध्रुव से तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर के द्वारा जुड़ जाता है, वहीं इसका संतति अर्धगुणसूत्र तर्कुतंतु द्वारा अपने काइनेटोकोर से विपरीत ध्रुव से जुड़ा होता हैं। मध्यावस्था में जिस तल पर गुणसूत्र पंक्तिबद्ध हो जाते हैं, उसे मध्यावस्था पट्टिका कहते हैं। इस अवस्था की मुख्य विशेषता निम्नवत हैं -
तर्कुतंतु गुणसूत्र के काइनेटोकोर से जुड़े रहते हैं।
गुणसूत्र मध्यरेखा की ओर जाकर मध्यावस्था पट्टिका पर पंक्तिबद्ध होकर ध्रुवों से तर्कुतंतु से जुड़ जाते हैं।
Ⅲ. पश्चावस्था (Anaphase) -
पश्चावस्था के प्रारंभ में मध्यावस्था पट्टिका पर आए प्रत्येक गुणसूत्र एक साथ अलग होने लगते हैं, इन्हें संतति अर्धगुणसूत्र कहते हैं, जो कोशिका विभाजन के बाद बनने वाले नए संतति केन्द्रक का गुणसूत्र बनेंगे, वे विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं। जब प्रत्येक गुणसूत्र मध्यांश पट्टिका से काफी दूर जाने लगता हैं, तब प्रत्येक गुणसूत्रबिंदु ध्रुवों की ओर होता हैं, जो गुणसूत्रों को ध्रुवों की ओर जाने को नेतृत्व करते हैं, साथ ही गुणसूत्र की भुजाएं पीछे आती हैं। पश्चावस्था की निम्न विशेषताएं हैं -
गुणसूत्रबिंदु विखण्डित होते हैं और अर्धगुणसूत्र अलग होने लगते हैं।
अर्धगुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर जाने लगते हैं।
Ⅳ. अंत्यावस्था (Telophase) -
सूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था के प्रारंभ में अंत्यावस्था गुणसूत्र जो क्रमानुसार अपने ध्रुवों पर चले गए हैं, असंघनित होकर अपनी संपूर्णता को खो देते हैं। एकल गुणसूत्र दिखाई नहीं देता हैं व अर्धगुणसूत्र द्रव्य दोनों ध्रुवों की तरफ एक समूह के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। इस अवस्था की मुख्य घटना निम्नवत हैं -
गुणसूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर एकत्रित हो जाते हैं और इनकी पृथक पहचान समाप्त हो जाती हैं।
गुणसूत्र समूह के चारों तरफ केन्द्रक झिल्ली का निर्माण हो जाता हैं।
केंद्रिका, गॉल्जीकाय व अंतर्द्रव्यी जालिका का पुनर्निर्माण हो जाता है।
ब. कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis) -
Cytokinesis शब्द Whiteman ने दिया | यह late anaphase में प्रारंभ होता हैं। पादप कोशिका में कोशिका भित्ति की उपस्थिति के कारण जंतु कोशिका व पादप कोशिका के कोशिकाद्रव्य विभाजन में भिन्नता पाई जाती हैं।
Ⅰ.जंतुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजन -
जंतुओं में कोशिकाद्रव्य विभाजन संकुचन व खांच निर्माण विधि के द्वारा सम्पन्न होता हैं। जंतु कोशिका में सर्वप्रथम सूक्ष्मतंतु व नलिकाएं मध्य रेखा पर व्यवस्थित हो जाती हैं। इससे बनने वाली संरचना को मध्यकाय कहते हैं। मध्यकाय के संकुचन से कोशिका झिल्ली में खांच निर्माण होता हैं। खांच निर्माण बाहर से अंदर होता हैं। यह खांच धीरे-धीरे गहरी होकर अंत में एक कोशिका से दो पुत्री कोशिका बनती हैं। यह Centripetal प्रक्रिया है।
Ⅱ. पादपों में कोशिकाद्रव्य विभाजन -
पादपों में कोशिकाद्रव्य विभाजन कोशिका पट्टिका निर्माण द्वारा होता है। पादपों में कोश्किाद्रव्य विभाजन के दौरान सर्वप्रथम गॉल्जी वाहिकाएं (Golgi-vesicles) मध्य रेखा पर व्यवस्थित हो जाती है, इस संरचना को फ्रेग्मोप्लास्ट (Phragmoplast) कहते हैं।
फ्रेग्मोप्लास्ट पर अंतःप्रर्द्रव्यी जालिका व तर्कुतंतु का जमाव होता है। जिससे कोशिका पट्टिका बनती है। अंत में Golgi-vesicles कैल्शियम व मैग्नीशियम पेक्टेट स्रावित करते हैं, जिससे कोशिका पट्टिका मध्य पट्टिका में बदल जाती हैं। यह Centrifugal प्रक्रिया हैं।
समसूत्री विष -
वे सभी पदार्थ या रसायन जो समसूत्रण के दौरान कोशिका को सामान्य समसूत्री विभाजन करने से रोकते है, समसूत्री विष कहलाते हैं।
उदाहरण - राइबोन्यूक्लिऐज, मस्टर्ड गैस, साइनाइड, एक्स-किरणे, विनक्रिस्टिन व विनब्लास्टिन (एण्टीकैन्सर ड्रग्स)।
समसूत्री विभाजन का महत्व (Importance of Mitosis) -
- युग्मनज द्वारा संपूर्ण शरीर का परिवर्धन।
- मानव शरीर में 6x1012 कोशिकाएं हैं, जो समसूत्री विभाजन द्वारा उत्पन्न होती हैं।
- मानव शरीर में मरम्मत के दौरान 5x109 कोशिकाएं प्रतिदिन प्रतिस्थापित की जाती है। (घाव भरना)
- पुनरूद्भवन आदि।
Comments
Post a Comment