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Showing posts from October, 2023

श्वसन गुणांक एवम श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक

  श्वसन गुणांक - ✓ श्वसन में मुक्त कार्बन डाई ऑक्साइड व श्वसन में प्रयुक्त ऑक्सीजन का अनुपात ही श्वसन गुणांक कहलाता है। ✓ विभिन्न पदार्थों के श्वसन गुणांक- • कार्बोहाइड्रेट का श्वसन गुणांक 1 होता है। • वसा का श्वसन गुणांक 1 से कम लगभग पाइंट 7 होता है। • प्रोटीन का श्वसन गुणांक भी 1 से कम होता है। • कार्बनिक अम्ल का श्वसन गुणांक 1 से अधिक होता है। • अवायवीय श्वसन का श्वसन गुणांक अनंत होता है। • कार्बोहाइड्रेट के अपूर्ण ऑक्सीकरण का श्वसन गुणांक शून्य होता है। श्वसन को प्रभावित करने वाले कारक - ✓ तापमान- अनुकूलतम ताप 25 से 50°C पर श्वसन दर अनुकूलतम होती है। तापमान में प्रति 10°C की वृद्धि करने पर श्वसन की दर 2 से 5 गुना हो जाती है, इसे Q10 कहा जाता है। ✓ ऑक्सीजन सांद्रता- ऑक्सीजन की वह सांद्रता जिस पर अवायवीय श्वसन बंद हो जाए व वायवीय ध्वसन शुरू हो जाए, विलोपन बिन्दु कहलाता है। ऑक्सीजन की वह सांद्रता जिस पर अवायवीय व वायवीय दानों प्रकार के श्वसन होते हैं, संक्रमण बिन्दु कहलाता है। ✓ कार्बन डाई ऑक्साइड सांद्रता - कार्बन डाई ऑक्साइड की सांद्रता बढने से श्वसन दर घटती है। ✓ हार्मोन्स - इथाइलि

इटीएस व ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण

 ✓ यहां NADH2 & FADH2 का अंतिम ऑक्सीकरण होता है। ✓ इटीएस के भिन्न अवयव- • फ्लेवो प्रोटीन या फ्लेविन मोनोन्यूक्लियोटाइड • को एंजाइम क्यू या यूबिक्विनोन • फेरस सल्फेट प्रोटीन • साइटोक्रोम ✓ को एंजाइम क्यू व साइटोक्रोम सी इलेक्ट्रॉन के गतिशील वाहक है, जबकि प्लास्टो क्विनोन व प्लास्टोसायनिन प्रकाश संश्लेषण के गतिशील इलेक्ट्रॉन वाहक है। ✓ इटीएस का अंतिम इलेक्ट्रॉन ग्राही ऑक्सीजन है। जबकि अतिम साइटोक्रोम, साइटोक्रोम a3 है। ✓ साइटोक्रोम a3 का ऑक्सीकरण व ऑक्सीजन का अपचयन एंजाइम साइटोक्रोम ऑक्सीडेज द्वारा उत्प्रेरित होता है। ✓ साइनाइड, साइटोक्रोम ऑक्सीडेज का एक अप्रतिस्पर्धात्मक व अनुत्क्रमणीय संदमक है। ✓ कुछ पादपों जैसे, पालक, मटर के माइटोकॉन्ड्रिया में विकल्पी ऑक्सीडेज एंजाइम पाए जाते है तथा इनमें साइनाइड की उपस्थिति में भी इटीएस जारी रहता है। इसे साइनाइड प्रतिरोधी पथ भी कहा जाता है। ✓ इटीएस में सर्वप्रथम 2 इलेक्ट्रॉन फ्लेविन मोनोन्यूक्लियोटाइड से फेरस सल्फेट प्रोटीन को स्थानांतरित होते है। इसी प्रकार ये इलेक्ट्रॉन क्रमशः को एंजाइम क्यू, साइटोक्रोम b, साइटोक्रोम c1, साइटोक्रोम c, साइटोक्र

क्रेब्स चक्र या सिट्रिक एसिड चक्र या TCA चक्र

 ✓ इस चक्र की खोज एच.ए. क्रेब्स ने की थी। ✓ क्रेब्स चक्र के एंजाइम माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में पाए जाते है। अपवादस्वरूप सक्सीनेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम आंतरिक माइटोकॉन्ड्रियल झिल्ली में पाया जाता है। ✓ इसे सिट्रिक एसिड चक्र भी कहा जाता है, क्योंकि इसका प्रथम उत्पाद सिट्रिक एसिड होता है। ✓ सिट्रिक एसिड में तीन कार्बोक्सिलिक समूह पाए जाते है, अतः इसे ट्राई कार्बोक्सिलिक एसिड चक्र या टीसीए चक्र भी कहते है। ✓ क्रेब्स चक्र एक अपघटनीय प्रक्रिया है, परंतु इसके विभिन्न मध्यवर्ती अन्य पदार्थों के संश्लेषण में भी काम आते है। अतः क्रेब्स चक्र को एम्फीबोलिक यानि उभयधर्मी चक्र भी कहा जाता है। ✓ क्रेब्स चक्र में 4 बार ऑक्सीकरण होता है, जिससे 5 NADH2 व एक FADH2 बनता है तथा आधारी स्तर फॉस्फोरिलीकरण द्वारा एक जीटीपी भी बनता है। अतः एक क्रेब्स चक्र द्वारा कुल 12 एटीपी बनती है तथा एक ग्लूकोज अणु के ऑक्सीकरण में क्रेब्स चक्र दो बार चलता है। अतः कुल 24 एटीपी बनती है। ∆ क्रेब्स चक्र की जैव रासायनिक अभिक्रियाऐं - ✓ एसीटाइल को एंजाइम ए व ऑक्जेलो एसीटीक एसिड, सिट्रेट सिंथेटेज एंजाइम की उपस्थिति में सिट्रि

Link reaction (in hindi)

 ✓ इसे गेटवे अभिक्रिया भी कहते है। ✓ यह ग्लाइकोलाइसिस को क्रेब्स चक्र से जोडती है, इसमे श्वसन के दौरान पहली बार ऑक्सीजन काम में आती है तथा कार्बन डाई ऑक्साइड मुक्त होती है। अतः एसीटाइल को एंजाइम ए का निर्माण वायवीय परिस्थितियों में होता है।  ✓ इसमें एक अत्यधिक महत्वपूर्ण जटिल एंजाइम तंत्र पायरूवेट डीहाइड्रोजिनेज कार्य करता है। जिसके 5 घटक है- • निकोटीनामाइड एडीनीन डाइन्यूक्लियोटाइड या एनएडी • थाइमिन पायरोफॉस्फेट या टीपीपी • मैग्नीशियम • को एंजाइम ए • लिपोइक अम्ल या LA  ✓ इस अभिक्रिया में विकार्बोक्सिलीकरण व विहाइड्रोजिनीकरण होता है। अतः इसे ऑक्सीकारी विकार्बोक्सिलीकरण भी कहा जाता है। ✓ एसीटाइल को एंजाइम ए, कार्बोहाइड्रेट व वसा उपापचय के बीच लिंकिंग अणु है। ✓ इस अभिक्रिया में पायरूविक अम्ल के 2 अणु, को एंजाइम ए के 2 अणुओं के साथ मिलकर, पायरूविक डीहाइड्रोजिनेज कॉम्पलेक्स की उपस्थिति में एसीटाइल को एंजाइम ए के 2 अणुओं का निर्माण करते है व कार्बन डाई ऑक्साइड के 2 अणु निष्कासित होते है। व NAD के 2 अणु, NADH2 के 2 अणुओं में परिवर्तित हो जाती है।

ग्लाइकोलाइसिस या EMP Pathway

इसे EMP Pathway भी कहा जाता है, क्योंकि इसकी खोज Embden, Meyerhof, Parnas ने की। • ग्लाइकोलाइसिस वायवीय व अवायवीय श्वसन के बीच एक कॉमन pathway है। • इसमें न तो ऑक्सीजन काम में आती है न ही कार्बन डाई ऑक्साइड मुक्त होती है। • इसमें ग्लूकोज को 2 पायरूविक अम्ल अणुओं में तोडा जाता है। • ग्लाइकोलाइसिस के अधिकतर एंजाइम मैग्नीशियम की उपस्थिति में कार्य करते है। • ग्लाइकोलाइसिस के कुछ मध्यवर्ती पदार्थ संश्लेषण अलभक्रियाओं में काम आते है। अतः इसे अपघटनीय पुनः संश्लेषण या ऑक्सीकारी संश्लेषण भी कहा जाता है। • ग्लाइकोलाइसिस में 4 ATP आधारीय स्तर फॉस्फोलिरीकरण द्वारा बनते है अर्थात् बिना ETS के बनते है। • ग्लाइकोलाइसिस का शुद्ध लाभ 2 ATP व 2 NADH2 होता है। ✓ ग्लाइकोलाइसिस अभिक्रियाएं - • ग्लाइकोलाइसिस में सर्वप्रथम ग्लूकोज, हेक्सोकाइनेज एंजाइम की उपस्थिति में ग्लूकोज-6-फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है व ATP, ADP में परिवर्तित हो जाती है। • ग्लूकोज-6-फॉस्फेट आइसोमरेज एंजाइम की उपस्थिति में फ्रक्टोज-6-फॉस्फेट में परिवर्तित हो जाता है। • फ्रक्टोज-6-फॉस्फेट फॉस्फोफ्रक्टो काइनेज की उपस्थिति में फ्रक्टोज

श्वसन रासायनिकी और श्वसन के प्रकार (Respiration Chemistry)

 श्वसन क्या होता है? (What is Respiration?) श्व सन एक एम्फीबोलिक (Amphibolic) मुख्यतया केटाबॉलिक व ऊष्माक्षेपी प्रक्रिया है। श्वसन जीवित कोशिकाओं का अति आवश्यक लक्षण है। श्वसनी पदार्थ क्या होते है? (Respiration Substances) श्वसन के दौरान श्वसनी पदार्थ के उपयोग का कम कुछ इस प्रकार रहता है कि सबसे पहले काबोहाइड्रेट उसके बाद वसा व सबसे अंत में प्रोटीन का उपयोग होता है। 1 ग्राम काबोहाइड्रेट के उपयोग से 4 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। 1 ग्राम वसा के उपयोग से 9 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। 1 ग्राम प्रोटीन के उपयोग से 4 से 5 किलो कैलोरी तक ऊर्जा प्राप्त होती है। प्लावी श्वसन - जब श्वसनी पदार्थ के रूप में काबोहाइड्रेट व वसा का उपयोग होता है, तो यह प्लावी श्वसन कहलाता है। जीवद्रव्यी श्वसन - जब श्वसनी पदार्थ के रूप में प्रोटीन्स का उपयोग होता है, तो यह जीवद्रव्यी श्वसन कहलाता है, ऐसा भूखमरी की अवस्था में होता है।अपवादस्वरूप legume पादपों में बीजों के अंकुरण के समय श्वसनी पदार्थ के रूप में प्रोटीन का उपयोग होता है, परन्तु इसे प्लावी श्वसन ही कहते है। ✓श्वसन के प्रकार - वायवीय श्वसन - ज