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Showing posts from April, 2020

कोशिका विज्ञान (Cytology)

कोशिका विज्ञान ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘ साइटो ’ तथा ‘ लोगोस ’ से मिलकर बना हैं। जिनका अर्थ हैं - ‘ साइटो ’ - कोशिका तथा ‘ लोगोस ’ का अर्थ हैं- अध्ययन करना।           जीव विज्ञान की वह शाखा , जिसके अन्तर्गत कोशिका के बारे में अध्ययन किया जाता हैं , कोशिका विज्ञान कहलाती हैं। कोशिकाओं के अध्ययन कर्त्ता को कोशिकाविज्ञानी (Cytologist) कहा जाता हैं।

पादप संग्रहालय (Plant herbarium)

विभिन्न प्रकार के पौधों को किसी वर्गीकरण पद्धति के क्रमानुसार व्यवस्थित करके तथा परिरक्षित करके रखा जाता हैं। उस स्थान को “ पादप संग्रहालय या पादपालय ” कहा जाता हैं। यहाँ पौधों को प्रेस कर तथा सूखा कर एक निश्चित आकार की शीट पर माउण्ट (चिपका) कर लेते हैं , लेकिन पादप के जिन भागों को सुखाया नहीं जा सकता हैं , उन्हें किसी विशिष्ट परिरक्षक द्रव , जैसे - फॉर्मएल्डीहाइड , फॉर्मिल एसिटिक अम्ल (FAA) अथवा एथिल एल्कोहॉल में रख लिया जाता हैं। जैसे - माँसल पौधों , पौधों की मोटी जड़ों को , फलो को।

वानस्पतिक उद्यान (Botanical gardens)

वानस्पतिक उद्यान प्राकृतिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित ऐसे स्थल होते हैं , जहाँ विभिन्न प्रकार के पौधों को जीवित अवस्था में संरक्षित रखा जाता हैं। प्राचीन काल से ही वानस्पतिक उद्यानों के प्रति मनुष्य का ध्यान रहा हैं। उन्होनें भोजन , आवास , औषधी तथा अन्य उपयोग में आने वाले पौधों को उगाने का कार्य किया था। थियोफ्रेस्टस , चार्ल्स डार्विन , जोन रे , लेमार्क आदि ने वानस्पतिक उद्यान को पादप वर्गिकी के केन्द्र के बारे में बताया। हैंगिंग गार्डन ऑफ बेबीलोन इसी क्षेत्र में प्राचीन वानस्पतिक उद्यान का अनोखा उदाहरण हैं।          

नामकरण पद्धति (Nomenclature system)

सजीवों की पहचान अथवा संपूर्ण विश्व में एक ही नाम से जानने के लिए एक विशेष या मानक नाम देने की प्रक्रिया नामकरण कहलाती हैं। नामकरण के लिए विश्व स्तर पर पादप एवं जंतुओं के लिए विशेष संगठन बने हुए हैं। नामकरण से संबंधित कुछ पद्धतियाँ या विधियाँ इस प्रकार दी गई हैं - 1. देशी नाम (Vernacular name) - किसी भी देश में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाओं में सुविधानुसार नाम दिए जाते हैं , लेकिन वे नाम विश्व स्तर पर अमान्य माने जाते हैं , इन्हें सामान्य नाम या देशी नाम कहा जाता हैं। नामकरण की यह प्रक्रिया अमान्य हो गई हैं।

जरायुजता का विकास (Evolution of Viviparity)

जरायुजता - जिन प्राणियों में युग्मनज का परिवर्धन मादा जनक के शरीर में (प्रायः गर्भाशय में) होता हैं तथा भ्रूण एवं मादा शरीर के बीच संरचनात्मक एवं क्रियात्मक सम्बन्ध स्थापित हो जाता हैं , उन्हें जरायुज (Viviparous) प्राणी कहा जाता हैं। ऐसे लैंगिक जनन को जरायुजता (Viviparity) कहते हैं। जरायुज प्राणियों में भ्रूण को जनक शरीर में रहने से सुरक्षा एवं पोषण होने का लाभ प्राप्त होता हें , साथ ही भ्रूण को अन्य जीवन क्रियाओं में सहायता मिलती हैं। ये सभी कार्य एक विशेष अंग के निर्माण द्वारा सम्पन्न होते हैं , जिसके द्वारा भ्रूण माता के गर्भाशय की भित्ति से सम्पर्क स्थापित करता हैं। इस रचना को अपरा (Placenta) कहते हैं। जरायुजता एवं प्लैसेन्टा जन्तु जगत के कई समूहों में पाई जाती हैं। इसकी संरचना एवं निर्माण की विधि भिन्न-भिन्न होती हैं। जरायुज का विकास सरलता से जटिलता की ओर हुआ हैं। सरल प्रकार की जरायुजता स्तनधारियों के वर्ग-यूथीरिया में पाई जाती हैं।

काल प्रभावन क्या है? (What is aging?)

आदिकाल से मानव वृद्ध होने की प्रावस्था , इसके कारण एवं निवारण हेतु निरंतर प्रयासरत रहे हैं। प्राणी के अपने शिशुकाल से वृद्धावस्था तक पहुँचने में अनेकों जटिल विकासीय प्रावस्थाओं से गुजरना पड़ता हैं। उसके सम्पूर्ण जीवनकाल में अनेकों महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं तथा ये सभी आश्चर्यचकित कर देने वाले होते हैं। हम वृद्धावस्था की ओर क्यों अग्रसर होते हैं ? कुछ जंतुओं का जीवन-चक्र अन्य जंतुओं की अपेक्षा छोटा क्यों होता हैं ? प्राणी की कोशिकाएं एवं विभिन्न ऊत्तक भिन्न-भिन्न दरों पर क्यों परिपक्व होते हैं। क्या इस प्रावस्था से छुटकारा पाया जा सकता हैं ? कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो मानव को निरंतर इस क्षेत्र में अनुसंधानरत रहने के लिए प्रेरित करते हैं। मिनॉट के अनुरूप काल प्रभावन (Ageing) के अन्तर्गत वास्तव में समय के साथ-साथ वृद्धि की दर में लगातार कमी होती है तथा जिस स्तर के विभेदीकरण पर प्राणी पहुँच चुका हैं , शायद उसी की कीमत उसे इस रूप में चुकानी पड़ती हैं। वास्तव में विभेदीकरण की क्रिया जंतु के विकासीय क्रम से पृथक नहीं की जा सकती हैं। केवल वृद्धावस्था का ही अध्ययन काल प्रभावन में नहीं किया जात

What is science?

The word science comes from the Latin “scientia” meaning “knowledge.” How do we define science? - According to Webster’s New Collegiate Dictionary, the definition of science is “knowledge attained through study or practice,” or “knowledge covering general truths of the operation of general laws, esp. as obtained and tested through scientific method and concerned with the physical world.”

श्वसन एवं गैसों का विनिमय (Breathing & Exchange of Gases)

श्वसन वह प्रक्रिया हैं , जिसमें ऑक्सीजन को भोजन के ऑक्सीकरण के लिए वातावरण से शरीर के अंदर लिया जाता हैं , ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके तथा इस प्रक्रिया में उत्पन्न कार्बनडाईऑक्साइड को बाहर निकाला जाता हैं। श्वसन के प्रकार (Types of Respiration) - 1. प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष श्वसन (Direct & Indirect Respiration) - प्रत्यक्ष श्वसन - इसमें शरीर की कोशिकाओं में उपस्थित कार्बनडाईऑक्साइड व बाह्य वातावरण में उपस्थित ऑक्सीजन के बीच गैसों का विनिमय बिना रक्त के प्रत्यक्ष रूप से होता हैं। इसमें गैसों का विनिमय विसरण के सिद्धांत पर आधारित हैं। उदाहरण - एककोशिकीय जीव जैसे- वायवीय जीवाणु , प्रोटिस्टा , बहुकोशिकीय जीव जैसे- स्पंज , सिलेंटरेट्स , चपटेकृमि , गोलकृमि , कीट आदि। अप्रत्यक्ष श्वसन - इसमें शरीर की कोशिकाओं व बाह्य वातावरण की गैसों के बीच प्रत्यक्ष रूप् से संपर्क नहीं होता । यह बड़ें व जटिल जीवों में पाया जाता हैं। इनमें ऑक्सीजन व कार्बनडाईऑक्साइड के परिवहन के लिए रक्त पाया जाता हैं। 2. अवायवीय व वायवीय श्वसन (Anaerobic & Aerobic Respiration) - अ

रिक्तिका (Vacuole)

कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित गोलाकार या अनियमित आकर की इकाई झिल्ली से घिरी हुई रिक्तिकाऐं उपस्थित होती हैं। ये प्राणी कोशिका में अनुपस्थित मानी जाती हैं। लेकिन प्रोटोजोअन्स में अल्पविकसित अवस्था में उपस्थित होकर विभिन्न प्रकार के कार्य करती हैं। इसकी खोज फेलिक्स डुजार्डिन (Dujardin) ने 1941 में की थी।

कोशिकीय निर्जीव अंर्तवस्तुएं (Cell inclusions)

सजीव कोशिका के जीवद्रव्य में उपस्थित विभिन्न प्रकार के अजैविक/निर्जीव घटक कोशिकीय अर्न्तवस्तु कहलाती हैं। इन्हें इनके संश्लेषण एवं कार्यों के आधार पर निम्न 3 प्रकारों में विभाजित किया गया हैं - अ. संचित पदार्थ (Storage substances) ब. स्त्रावी पदार्थ (Secretory substances) स. उत्सर्जी पदार्थ (Excretory substances)

शरीर द्रव तथा परिसंचरण तंत्र

परिसंचरण तंत्र (Circulatory system) - परिसंचरण तंत्र हृदय , धमनियों , शिराओं , केशिकाओं तथा रक्त से मिलकर बना होता हैं।

अस्थियो के प्रकार (Types of bones)

अस्थियों को निम्न दो आधारों पर भिन्न-भिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं- Ⅰ . उत्पत्ति के आधार पर (On the basis of origin) - इस आधार पर अस्थियों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैं- 1. उपास्थिल अस्थियाँ (Cartilaginous bones) - भ्रूणावस्था में लंबी अस्थियों (फीमर , टीबिया , फिबुला , ह्यूमरस , रेडियस व अल्ना) के स्थान पर उपास्थि (हायलिन) मौजूद होती हैं। जन्म के पश्चात् इसमें अस्थिभवन (ossification) की क्रिया प्रारंभ होती हैं , जिसके फलस्वरूप यह अस्थि में परिवर्तित हो जाती हैं।

कंकाल तंत्र (Skeleton system)

यह तंत्र पेशीय तंत्र की सहायता से हमें प्रचलन व गति में सहायता प्रदान करता हैं। कंकाल तंत्र का प्राथमिक महत्व आकृति बनाए रखने हेतु शरीर को भौतिक रूप से सहारा प्रदान करना , आंतरिक अंगों की सुरक्षा करना होता हैं तथा इसकी शरीर की गति में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। इसे मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया गया हैं - बाह्य कंकाल तंत्र व अंतःकंकाल तंत्र। 1. बाह्य कंकाल तंत्र (Exoskeleton) - इसका निर्माण भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान बाह्यचर्म (Ectoderm) से होता हैं। यह हमारे शरीर के बाहरी ओर स्थित होता हैं। यह मृत्त कोशिकाओं व रासायनिक अवयवों से निर्मित होता हैं। उदाहरण - बाल व नाखून। 2. अन्तःकंकाल तंत्र (Endoskeleton) - इसका निर्माण भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान मध्यचर्म (Mesoderm) से होता हैं। यह हमारे शरीर के अंदर की ओर स्थित होता हैं। इसमें अस्थि व उपास्थि मौजूद होती हैं। मनुष्य के अंतःकंकाल में 270 अस्थियाँ स्थित होती हैं , जो परस्पर जुड़कर 206 अस्थियों का निर्माण करती हैं। अंतःकंकाल को मुख्यतः 2 भागों में विभक्त किया गया हैं - Ⅰ . अक्षीय कंकाल व Ⅱ . उपांगीय कंकाल ।