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कंकाल तंत्र (Skeleton system)


यह तंत्र पेशीय तंत्र की सहायता से हमें प्रचलन व गति में सहायता प्रदान करता हैं। कंकाल तंत्र का प्राथमिक महत्व आकृति बनाए रखने हेतु शरीर को भौतिक रूप से सहारा प्रदान करना, आंतरिक अंगों की सुरक्षा करना होता हैं तथा इसकी शरीर की गति में महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। इसे मुख्य रूप से दो भागों में विभक्त किया गया हैं - बाह्य कंकाल तंत्र व अंतःकंकाल तंत्र।

1.बाह्य कंकाल तंत्र (Exoskeleton) -
इसका निर्माण भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान बाह्यचर्म (Ectoderm) से होता हैं। यह हमारे शरीर के बाहरी ओर स्थित होता हैं। यह मृत्त कोशिकाओं व रासायनिक अवयवों से निर्मित होता हैं। उदाहरण - बाल व नाखून।

2. अन्तःकंकाल तंत्र (Endoskeleton) -
इसका निर्माण भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान मध्यचर्म (Mesoderm) से होता हैं। यह हमारे शरीर के अंदर की ओर स्थित होता हैं। इसमें अस्थि व उपास्थि मौजूद होती हैं। मनुष्य के अंतःकंकाल में 270 अस्थियाँ स्थित होती हैं, जो परस्पर जुड़कर 206 अस्थियों का निर्माण करती हैं। अंतःकंकाल को मुख्यतः 2 भागों में विभक्त किया गया हैं - . अक्षीय कंकाल व . उपांगीय कंकाल ।

 

Skeletal system




 . अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton) -
अक्षीय कंकाल शरीर के लम्बरूप अक्ष पर पूरी लंबाई में स्थित होता हैं। यह सिर, गर्दन व धड़ के अंगों को सहारा व सुरक्षा प्रदान करता हैं। इसमें खोपड़ी, पसलियाँ, उरोस्थि और कशेरूक दण्ड सम्मिलित हैं।

खोपड़ी सिर का अस्थिल ढांचा है। यह 29 अस्थियों का बना होता हैं जो सीवनों (Sutures) द्वारा पृथक होती हैं। ये अस्थियाँ हैं - कपालीय अस्थियां (8 चपटी अस्थियां जो ब्रेन बॉक्स या क्रेनियम का निर्माण करती हैं), चेहरे की अस्थियां (14 अस्थियां खोपड़ी के आगे के भाग का निर्माण करती हैं), हाएड अस्थि (एकल यू-आकृति की अस्थि जो मुखगुहा के फर्श का निर्माण करती हैं) और मध्यकर्ण की अस्थियां (प्रत्येक कर्ण की 3 छोटी अस्थियां मैलियस, इन्कस व स्टेपीज)। कपाल की अस्थियों में 1-फ्रन्टल, 2-पैराइटल्स, 1-ऑक्सीपिटल, 2-टेम्पोरल, 1- स्फीनायड और 1-एथमायड सम्मिलित हैं।

कशेरूक दण्ड को मेरूदण्ड या स्पाइन भी कहा जाता हैं। कशेरूक दण्ड शरीर का मुख्य अक्ष है जो खोपड़ी, अंस मेखला, श्रोणि मेखला और पसलियों से जुड़ा होता है। कशेरूक दण्ड खोपड़ी से शुरू होकर ग्रीवा (7 कशेरूक), वक्षीय (12 कशेरूक), कटि (5 कशेरूक), त्रिक सेक्रमी (5 संलयित कशेरूक) और काक्सीजिअल या अनुत्रिक (4 संलयित कशेरूक) प्रदेशों में विभेदित होता हैं।

पसलियों के 12 जोड़े होते हैं। प्रत्येक पसली एक पतली, चपटी अस्थि होती हैं जो पृष्ठीय रूप से कशेरूक दण्ड से और अधर रूप से उरोस्थि से जुड़ी होती हैं। पसलियों के प्रथम सात जोड़े प्रत्यक्ष रूप से उरोस्थि के साथ जुड़े होते हैं और  उन्हें सत्य पसलियां (True ribs) कहते हैं। 8 वीं, 9 वीं व 10वीं पसलियों के जोड़े, पसलियों के 7वें जोड़ें से संधियोजित होते हैं और प्रत्यक्ष रूप से उरोस्थि से नहीं जुड़े होते हैं। इन पसलियों को वर्टिब्रोकॉन्ड्रल पसलियां या कूट पसलिया (False ribs) कहते हैं। अंतिम दो पसलियों (11वीं व 12वीं) के जोड़े अग्र रूप से स्वतंत्र होते हैं, उन्हें मुक्त या प्लावी पसलियां (Floating ribs) कहते हैं।


. उपांगीय कंकाल (Appendicular Skeleton) -
उपांगीय कंकाल, उपांगों से जुड़ा होता है। इसके अंतर्गत अंस तथा श्रोणि मेखला (Pectoral & Pelvic girdle) व पाद अस्थियां (Limb bones) आती हैं।

          प्रत्येक पाद 30अस्थियों का बना होता हैं। अग्रपाद 1 ह्यूमरस (ऊपरी भुजा), 1 अल्ना और 1 रेडियस (निचली भुजा), 8 कार्पल्स, 5 मेटाकार्पल्स और 14 फेलेनजस अस्थियों का बना होता हैं। पश्चपाद, 1 फीमर, 1 पटेला, 1 टिबिया, 7 टार्सल्स, 5 मेटाटार्सल्स और 14 फेलेन्जस अस्थियों का बना होता हैं।

          प्रत्येक अंसमेखला दो अस्थियों की बनी होती हैं- 1 क्लैविकल और 1 स्कैपुला। वह बिन्दु जहां पर स्कैपुला की ऊपरी और पार्श्व सीमाएं मिलती हैं, वहां एक पार्श्व कोण होता हैं जो एक उथली संधियोजित सतह प्रस्तुत करता हैं, जिसे ग्लीनॉइड गुहा (Glenoid cavity) कहते हैं। इससे ह्यूमरस का सिर संधियोजित होता हैं।

          श्रोणि मेखला जिसे नितम्ब मेखला (Hip girdle) भी कहते हैं, दो नितम्ब अस्थियों (Coxal bones) की बनी होती हैं। प्रत्येक नितम्ब अस्थि तीन पृथक भागों की बनी होती हैं- इलियम (छोटी व सीधी अस्थि), इश्चियम (निचली, लम्बी अस्थि, कशेरूक दण्ड के समानान्तर), और प्यूबिस (भीतरी छोटी अस्थि)। इसकी बाहरी सतह पर एक गहरा गड्ढा होता हैं, जिसे एसीटेबुलम (Acetabulum) कहते हैं। इस गड्ढे से फीमर अस्थि का लगभग गोल सिर जुड़कर श्रोणि संधि बनाता हैं।


कंकाल तंत्र के कार्य (Functions of Skeletal system) -
कंकाल तंत्र के मुख्य कार्य निम्नानुसार हैं -
1. यह हमारे शरीर के संरचनात्मक ढांचे का निर्माण करता है।
2. यह हमारे आंतरिक अंगों को सुरक्षा प्रदान करता हैं।
3. हीमोपोइसिस द्वारा लाल अस्थि मज्जा में रूधिर कणिकाओं का निर्माण करता हैं।
4. यह हमारी श्वासोच्छवास प्रक्रिया में सहायता प्रदान करता हैं।
5. यह हमारी पित्त अस्थि मज्जा में वसा का संचयन करता हैं।
6. कर्ण अस्थियों की सहायता से यह हमें सुनने में सहायता प्रदान करता हैं।
7. यह गति व प्रचलन में सहायता प्रदान करता हैं।

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