संचलन जीवों की एक महत्वपूर्ण विशेषता हैं। जैसे -
एककोशिकीय जीवों में जीवद्रव्य का प्रवाही संचलन। जीवों में पक्ष्माभ, कशाभ व स्पर्शक द्वारा संचलन। मनुष्य में जबड़े, पलक,
जिह्वा इत्यादि का संचलन।
कुछ
संचलनों में स्थान या अवस्थिति परिवर्तन होता हैं, ऐसे
ऐच्छिक संचलनों को गमन कहते हैं। जैसे - टहलना, दौड़ना,
चलना, उड़ना, तैरना आदि।
कुछ जीवों में गमन संरचनाऐं/संचलन संरचनाऐं अन्य
कार्यों में भी भाग लेते हैं, जैसे - पैरामिशियम में पक्ष्माभ
गमन के साथ-साथ भोजन के अर्न्तग्रहण में भी सहायक हैं। हाइड्रा के स्पर्शक गमन के
साथ-साथ शिकार को पकड़ने में भी सहायक हैं। सभी गमन, गतियाँ
संचलन हैं, लेकिन सभी गतियाँ (संचलन) गमन नहीं हैं।
गति के प्रकार -
मानव शरीर की कोशिकाऐं मुख्यतः 3 प्रकार की गतियाँ दर्शाती हैं-
1,अमीबीय
2, पक्ष्माभिक
3, पेशीय
1,अमीबीय गति -
हमारे शरीर की कुछ विशिष्ट कोशिकाऐं जैसे-मैक्रोफेजेज
और श्वेताणु रक्त में अमीबीय गतियाँ दर्शाती हैं। यह क्रिया जीवद्रव्य की प्रवाही
गति द्वारा कूटपाद बनाकर की जाती हैं। कोशिका कंकाल तंतु, जैसे सूक्ष्म तंतु भी अमीबीय गति दर्शाते हैं।
2, पक्ष्माभी गति -
हमारे अधिकांश नलिकाकार अंगों में पक्ष्माभ युक्त
आंतरिक भित्ति पाई जाती हैं। श्वासनली में पक्ष्माभों की समन्वित गति से
वायुमण्डलीय वायु के साथ प्रवेश करने वाले धूल के कणों एवं बाह्य पदार्थों को
हटाने में मदद करती हैं। मादा जनन तंत्र में अण्डवाहिनी में अण्डें का परिवहन
पक्ष्माभी गति की सहायता से ही होता हैं।
3, पेशीय गति -
पेशियों में संकुचन का गुण पाया जाता हैं, जिसका उपयोग कर मनुष्य व अन्य बहुकोशिकीय जीव गमन व संचलन दर्शाते हैं।
उदाहरण- हाथ-पैरों, जबड़ों, जिह्वा की
गति।
पेशी
(Muscle) -
पेशियाँ तीन प्रकार की होती हैं -
1,कंकाल पेशियाँ -
ये पेशियाँ शारीरिक कंकाल अवयवों के निकट संपर्क में
होती हैं। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर इनमें धारियाँ दिखाई देती हैं, अतः इन्हें रेखित पेशी भी कहा जाता हैं। इनकी क्रियाओं का नियंत्रण
तंत्रिका तंत्र द्वारा ऐच्छिक होता हैं, इसीलिए इन्हें
ऐच्छिक पेशी भी कहा जाता है। ये मुख्य रूप् से चलन/गमन क्रिया और शारीरिक मुद्रा
बदलने में सहायक होती हैं।
2. चिकनी या अंतरंग पेशियाँ -
ये पेशियाँ शरीर के खोखले अंतरांगों, जैसे- आहारनाल, जनन मार्ग आदि की आंतरिक भित्ति में
स्थित होती हैं। इन्हें अरेखित पेशी/चिकनी पेशी/अनैच्छिक पेशी भी कहा जाता हैं। ये
पाचन मार्ग द्वारा भोजन तथा जनन मार्ग द्वारा युग्मक के परिवहन में सहायता करती
हैं।
3, हृदय पेशियाँ -
ये पेशियाँ हृदय में पाई जाती हैं। ये पेशियाँ रेखित
व अनैच्छिक होती हैं।
पेशी की संरचना
(Structure of Muscle) -
हमारे शरीर में प्रत्येक कंकाल पेशी कईं पेशी बण्डलों
या पूलिकाओ (fascicles) की बनी होती हैं, जो संयुक्त रूप से कोलेजन संयोजी ऊत्तक के आवरण से घिरे रहते हैं, इस आवरण को संपट्ट (fascia) कहते हैं। प्रत्येक पेशी
बण्डल में कईं पेशी रेशे होते हैं तथा प्रत्येक पेशी रेशा प्लाज्मा झिल्ली से
आस्तरित होता हैं। जिसे सारकोलेमा (sarcolemma) कहते हैं।
पेशी
रेशा एक संकोशिका हैं, जिसमें कईं केन्द्रक होते हैं।
सारकोलेमा में आवरित तरल सारकोप्लाज्म (sarcoplasm) कहलाता
हैं। पेशी रेशों की अन्तःप्रर्दव्यी जालिका (sarcoplasm reticulum) कैल्शियम आयनों का भण्डार गृह हैं।
पेशी
रेशे की एक विशिष्टता यह हैं कि पेशी द्रव (sarcoplasm) में
समान्तर रूप् से व्यवस्थित अनेक तंतु पाए जाते हैं, जिन्हें
पेशी तंतु या myofibril कहा जाता हैं।
प्रत्येक
पेशी तंतु में क्रमवार/एकांतर रूप से गहरे व हल्के पट्ट होते हैं। एक पेशी रेशे के
रेखित प्रकट होने का कारण यह हैं कि इसमें दो प्रमुख प्रोटीन ऐक्टिन
(Actin) व मायोसिन (myosin) का विशेष वितरण
पाया जाता हैं। हल्के पट्ट में ऐक्टिन होता हैं, जिसे I-band
or Isotropic band या समदैशिक पट्ट कहते हैं। जबकि गहरे पट्ट में
मायोसिन होता हैं, जिसे A-band or Anisotropic band या विषमदैशिक पट्ट कहते हैं। दोनों प्रोटीन छड़नुमा संरचनाओं में परस्पर
समान्तर पेशी रेशों के अनुदैर्ध्य अक्ष के भी समांतर व्यवस्थित होती हैं।
ऐक्टिन
तंतु, मायोसिन तंतुओं की तुलना में पतले होते हैं। अतः
इन्हें क्रमशः पतले एवं मोटे तंतु भी कहा जाता हैं। प्रत्येक I-band के मध्य में इसे द्विविभाजित करने वाली एक प्रत्यास्थ रेखा होती हैं,
जिसे जेड रेखा (Z-line) कहते हैं। पतले तंतु
जेड रेखा से दृढ़ता पूर्वक जुड़े होते हैं।
A-band के मोटे तंतु इसके मध्य में एक पतली रेशेदार झिल्ली द्वारा जुड़े होते हैं,
जिसे एम रेखा (M-line) कहते हैं। पेशी रेशों
की पूरी लंबाई में ए और आई पट्ट एकांतर क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
दो क्रमिक जेड रेखाओं के बीच स्थित पेशी रेशे का भाग
संकुचन की इकाई बनाता हैं, जिसे सार्कोमियर
(sarcomere) कहा जाता हैं।
विश्राम की अवस्था में पतले तंतुओं के सिरे दोनों ओर के मोटे तंतुओं के बीच के भाग
को छोड़कर स्वतंत्र सिरों पर ढ़कते हैं/अतिव्यापित होते हैं।
मोटे
तंतुओं का केन्द्रीय भाग जो पतले तंतुओं से अतिव्यापित नहीं होता, एच क्षेत्र (H-zone) कहलाता हैं।
Sarcomere = I/2 + A + I/2
पेशी की संकुचनशील प्रोटीन्स -
1.मायोसिन (Myosin) -
यह मैग्निशियम मायोसिनेट से बनी होती हैं, तथा पेशी की कुल प्रोटीन का 75 प्रतिशत हैं अर्थात्
सबसे अधिक। मैग्निशियम मायोसिनेट में एक मैग्निशियम आयन पाया जाता हैं। प्रत्येक
मायोसिन तंतु एक बहुलक प्रोटीन हैं, जो मेरोमायोसिन नामक कईं
एकलक प्रोटीन्स से मिलकर बना होता हैं। प्रत्येक मेरोमायोसिन के दो महत्वपूर्ण भाग
होते हैं - एक छोटी भुजा वाला गोलाकार सिर, इसे हेवी
मेरोमायोसिन कहा जाता हैं। दूसरा एक पूँछ, जिसे लाइट
मेरोमायोसिन कहा जाता हैं।
मेरोमायोसिन
अवयव ए तंतु पर बाहर की तरफ एक नियत दूरी एवं नियत कोण पर उभरे रहते हैं, जिसे क्रॉस-भुजा कहते हैं। इसका गोलाकार सिर एटीपेज की तरह कार्य करता हैं,
जिस पर एटीपी का बंधन स्थल तथा ऐक्टिन का सक्रिय स्थल पाया जाता
हैं।
2, ऐक्टिन (Actin) -
प्रत्येक ऐक्टिन तंतु एक-दूसरे से सर्पिल रूप में
कुण्डलित दो एफ-ऐक्टिन्स (तंतुमय ऐक्टिन) का बना होता हैं। प्रत्येक F-Actin, जी-ऐक्टिन / G-Actin (गोलाकार ऐक्टिन) का बहुलक
होता हैं। ऐक्टिन तंतु कैल्शियम ऐक्टिनेज के बने होते हैं, जिसमें
चार कैल्शियम आयन पाए जाते हैं।
3, ट्रोपोमायोसिन (Tropomyosin) -
ट्रोपोमायोसिन के दो तंतु एफ-ऐक्टिन (F-Actin) के निकट इसकी पूरी लंबाई में स्थित होते हैं।
4. ट्रोपोनिन (Troponin) -
एक जटिल ट्रोपोनिन प्रोटीन, ट्रोपोमायोसिन पर नियत अंतरालों पर पाई जाती हैं। ट्रोपोनिन के तीन भाग
होते हैं -
अ] ट्रोपोनिन-आई
(Troponin-I) - यह ऐक्टिन
व मायोसिन को जुड़ने से रोकता हैं।
ब] ट्रोपोनिन-सी
(Troponin-C) - यह
कैल्शियम के साथ जुड़ता हैं।
स] ट्रोपोनिन-टी
(Troponin-T) - यह
ट्रोपोमायोसिन के साथ जुड़ता हैं।
पेशी संकुचन की क्रियाविधि (Mechanism
of Muscle Contraction) -
इसे सर्पीतंतु सिद्धांत (Sliding Filament
Theory) द्वारा समझाया जाता हैं। जिसके अनुसार पेशीय रेशों
का संकुचन पतले तंतुओं (Actin) के मोटे तंतुओ (Myosin) के ऊपर फिसलने से होता हैं।
केन्द्रीय
तंत्रिका तंत्र के चालक तंत्रिका द्वारा भेजे गए संकेत के कारण पेशी संकुचन होता
हैं। एक चालक तंत्रिका तथा इसके पेशीय रेशे मिलकर एक प्रेरक इकाई का निर्माण करते
हैं। प्रेरक तंत्रिकाओं और पेशीय रेशों की सार्कोलेमाके बीच की संधि
तंत्रिका-पेशीय संधि (Neuromuscular junction) या चालक
अंत्यपट्टिका (Motor endplate) कहलाती हैं।
इस
संधि पर किसी तंत्रिका संकेत के पहुँचने से एक तंत्रिका संचारी पदार्थ ऐसीटिल
कोलीन मुक्त होता हैं, जो सार्कोलेमा में एक क्रिया विभव
उत्पन्न करता हैं। यह विभव समस्त पेशीय रेशों पर फैल जाता हैं, जिससे सार्कोप्लाज्म में कैल्शियम आयन मुक्त होते हैं। कैल्शियम आयन स्तर
के बढ़ने से ऐक्टिन तंतु पर स्थित ट्रोपोनिन की उपइकाई से कैल्शियम बंध बनाकर
ऐक्टिन के ढ़के हुए सक्रिय स्थानों को खोल देता हैं। एटीपी के जल अपघटन से प्राप्त
ऊर्जा का उपयोग कर मायोसिन का शीर्ष ऐक्टिन के खुले सक्रिय स्थानों से क्रॉस-ब्रिज
बनाने के लिए बंध जाते हैं। इस बंध से जुड़े हुए ऐक्टिन तंतुओं की गति ए-पट्ट (A-band) के केन्द्र की तरफ होती हैं। इन ऐक्टिन तंतुओं से जुड़ी जेड-रेखा भी अंदर
की तरफ खींच जाती है।, जिससे सार्कोमीयर छोटा हो जाता हैं,
इस प्रक्रिया को संकुचन कहते हैं।
यह
स्पष्ट हैं कि सार्कोमीयर छोटे होते समय (संकुचन के समय) आई-बैंड्स की लंबाई कम हो
जाती हैं, जबकि ए-बैंड्स की लंबाई ज्यों की त्यों रहती हैं।
एडीपी और अकार्बनिक फॉस्फेट को मुक्त कर मायोसिन विश्राम अवस्था में चला जाता हैं।
एक नए एटीपी के बंधने से क्रॉस बंध टूटते हैं। मायोसिन शीर्ष एटीपी को अपघटित कर
पेशी के अगले संकुचन के लिए इस क्रिया को दोहराते हैं, किंतु
तंत्रिका संवेगों के समाप्त हो जाने पर सार्कोप्लाज्मिक रेटिकुलम द्वारा कैल्शियम
के अवशोषण से ऐक्टिन स्थल पुनः ढ़क जाते हैं। इनके फलस्वरूप् जेड़ रेखाऐं अपने मूल
स्थान पर वापस आ जाती हैं अर्थात् शिथिलन हो जाता है।
विभिन्न पेशियों में रेशों की प्रतिक्रिया अवधि में
अंतर हो सकता हैं। पेशियों के बार-बार उत्तेजित होने पर उनमें अवायवीय श्वसन होने
लगता हैं,
जिससे इनमें लैक्टिक अम्ल का जमाव हो जाता है। जिससे थकान होती हैं।
पेशी में ऑक्सीजन भण्डारित करने वाला एक लाल रंग का वर्णक मायोग्लोबिन (Myoglobin) होता हैं। मायोग्लोबिन की उपस्थिति के आधार पर पेशी तंतु दो प्रकार के
होते हैं -
Ⅰ.लाल पेशी तंतु (Red muscle fibre) -
कुछ पेशियों में मायोग्लोबिन की मात्रा ज्यादा होती
हैं,
जिससे वे लाल रंग के दिखते हैं, ऐसी पेशियाँ
लाल पेशियाँ कहलाती हैं। ऐसी पेशियों में माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) अधिक होते हैं, जो एटीपी निर्माण के लिए, इनमें संग्रहित ऑक्सीजन की बड़ी मात्रा का उपयोग करते हैं। इसीलिए इन
पेशियों को वायवीय पेशियाँ भी कहा जाता हैं।
Ⅱ. श्वेत पेशी तंतु (White muscle fibre)
-
कुछ पेशियों में मायोग्लोबिन बहुत कम मात्रा में पाया
जाता हैं,
जिससे वे हल्के पीले या श्वेते प्रतीत होते हैं, इन्हें श्वेत पेशी तंतु कहते हैं। इनमें माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या कम
होती हैं, लेकिन अंतःप्रर्दव्यी जालिका अधिक मात्रा में होती
हैं। ये मुख्यतया अवायवीय विधि से ऊर्जा प्राप्त करती हैं।
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