सजीव कोशिका के जीवद्रव्य में उपस्थित विभिन्न प्रकार
के अजैविक/निर्जीव घटक कोशिकीय अर्न्तवस्तु कहलाती हैं। इन्हें इनके संश्लेषण एवं
कार्यों के आधार पर निम्न 3 प्रकारों में विभाजित किया गया हैं -
अ. संचित पदार्थ (Storage substances)
ब. स्त्रावी पदार्थ (Secretory substances)
अ. संचित पदार्थ (Storage substances) -
कोशिका में संश्लेषित होने वाले विभिन्न प्रकार के
पदार्थ विभिन्न रूपों में संचित कर लिए जाते हैं। कुछ प्रमुख संचित पदार्थ इस
प्रकार हैं -
1.कार्बोहाइड्रेट - कार्बोहाइड्रेट के बारे में पढ़ने केलिए यहाँ क्लिक करें
2. प्रोटीन - प्रोटीन के बारे में पढ़ने के लिए यहाँक्लिक करें
ब. स्त्रावी पदार्थ (Secretory substances) -
कोशिका के जीवद्रव्य में विभिन्न प्रकार की उपापचयी
क्रियाओं के परिणाम स्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं, जो उचित समय
पर स्त्रावित किए जाते हैं। जैसे - पुष्प में मकरंद, विभिन्न
प्रकार के एंजाइम्स।
स. उत्सर्जी पदार्थ (Excretory substances) -
सजीव शरी की कोशिका के जीवद्रव्य में उपापचयी
क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ ऐसे पदार्थ बनते हैं, जिन्हें सजीव शरीर
से निष्कासित करना आवश्यक हो जाता है। अन्यथा वे पदार्थ स्वयं के लिए नुकसानदायक
होते हैं। अतः इन पदार्थों को शरीर से निष्कासित करने की प्रक्रिया उत्सर्जन
कहलाती हैं। उत्सर्जी पदार्थ नाइट्रोजन युक्त अथवा रहित हो सकते हैं।
उदाहरण - एल्केलॉइड्स, गोंद,
रेजिन, टेनिन, लेटेक्स,
क्रिस्टलीय पदार्थ आदि।
1.एल्केलॉइड्स (Alkaloids) -
एल्केलॉइड्स नाइट्रोजनयुक्त उत्सर्जी पदार्थ होते हैं, जो जल में अघुलनशील लेकिन कार्बनिक विलायकों में घुल जाते हैं। इनकी
उपस्थिति पौधों की जड़ों में, तने की छाल में, पत्तियों में, फलों एवं बीजों में मिल जाती हैं।
उदाहरण -
Ⅰ.क्विनिन या कुनैन (Quinine) -
सिनकोना ऑफिसिनेलिस वृक्ष की छाल से प्राप्त होती हैं तथा मलेरिया के उपचार में प्रयुक्त की
जाती हैं।
Ⅱ.
मोर्फीन (Morphine) -
इसे अफीम (Opium) - पेपेवर
सोम्नीफेरम नामक पौधें के कच्चे फलों से प्राप्त लेटेक्स से प्राप्त
किया जाता हैं तथा व्यसन पदार्थ के रूप में काम में लेते हैं, क्योंकि यह आराम प्रदान करने वाला या दर्दनाशक एवं निद्राकारक होता हैं।
यद्यपि मोर्फीन एवं कोड़ीन (Morphine & Codeine)
एल्केलॉइड्स से Cough expectorant (Cough syrup) भी बनाए
जाते हैं।
Ⅲ.
एट्रोपीन एवं बेलेडोनिन (Atropine & Belladonine) -
ये एल्केलॉइड्स एट्रोपा बेलेडोना नामक
पौधें की जड़ों से प्राप्त किये जाते हैं, जो तंत्रिका तंत्र
के विकार ठीक करने में अर्थात् पागलपन की दवा के रूप में काम आते हैं। एट्रोपीन
नेत्र की पुतली के विस्फारण (फैलने) में काम में लेते हैं।
Ⅳ.
रेसरपीन (Recerpine) -
इसे राउवॉल्फिया सर्पेन्टाइना पादप की
जड़ों से प्राप्त किया जाता हैं। इसका उपयोग उच्च रक्त दाब (High
blood pressure) को कम करने की औषधि के रूप में किया जाता हैं।
Ⅴ.
सर्पेन्टिनिन (Serpentinine) -
यह भी राउवॉल्फिया सर्पेन्टाइना पौधें की
जड़ों से प्राप्त होता हैं, जो सर्प दंश में उपयोगी होता हैं।
Ⅵ.
निकोटीन (Nicotine) -
इसे निकोटियाना टोबेकम (तम्बाकू) के पौधें
की पत्तियों से प्राप्त किया जाता हैं। इसे दर्द निवारक तथा निद्राकारक के रूप में
प्रयुक्त किया जाता हैं। इसे तम्बाकू युक्त सिगरेट, बीड़ी,
चिलम आदि धूम्रपान सामग्री के रूप में काम में लेते हैं। इसे पान के
साथ, गुटखे आदि के रूप में चवर्ण पदार्थ की तरह काम में लेते
हैं। तम्बाकू या तम्बाकू युक्त उत्पाद केंसर कारक (Cancerous) होते हैं।
Ⅶ.
थीइन (Thein) -
इसे चाय (थीया सायनेन्सिस / केमेलिया सायनेन्सिस)
के पौधें की पत्तियों से प्राप्त किया जाता हैं यह उत्तेजक पदार्थ के रूप में
प्रयुक्त होता हैं।
Ⅷ.
टेक्सॉल (Taxol) -
यह अनावृत्तबीजी पौधें टेक्सस (Taxus) से प्राप्त किया जाता हैं तथा यह केंसररोधी दवा के रूप में प्रयुक्त की
जाती हैं।
2. गोंद (Gum)
-
इसे विभिन्न प्रकार के पौधों की कोशिका भित्ति के
विघटन से उत्पन्न हुआ उत्पाद माना जाता हैं। यह जल में घुलनशील लेकिन कार्बनिक
विलायकों में अघुलनशील होता हैं। जैसे - एल्कोहल, ईथर,
बेन्जीन आदि में।
प्रारंभ
में गोंद तरल पदार्थ के रूप में निकलता हैं, जो वायु के
संपर्क में आने पर अर्द्धठोस रूप में बदल जाता हैं। उदाहरण - नीम, बबूल, खैर (कत्था), खेजड़ी आदि
पौधों से गोंद प्राप्त किया जाता हैं।
नीम - एजार्डीरेक्टा इण्डिका
देशी बबूल - अकेशिया अरेबिका (गम अरेबिक)
खैर - अकेशिया कटेचू (खाये जाने वाला गोंद)
खेजड़ी - प्रोसोपिस सिनेरेरिया
3. रेजिन (Resin) -
ये गोंद के समान ही दिखाई देने वाले अर्द्धठोस पदार्थ
होते हैं। जिनकी उत्पत्ति कुछ पौधों की कोशिकाओं के जीवद्रव्य में मिलने वाले
वाष्पशील तेलों के ऑक्सीकरण से मानी जाती हैं तथा कार्बोहाइड्रेट्स के ही
व्युत्पन्न होते हैं। ये छोटी-छोटी वियुक्तिजात गुहिकाओं (Lysigenous
cavity) में उत्पन्न होती हैं।
रेजिन
जल में अघुलनशील लेकिन कार्बनिक विलायकों जैसे- एल्कोहल एवं ईथर आदि में घुलनशील
होती हैं। रेजिन औषधीय रूप में, खाने के रूप में एवं अन्य
विविध रूप में हमारे लिए उपयोगी होते हैं। जैसे - गुग्गल का उपयोग ‘महायोगराज गुग्गल’ नामक औषधि के रूप में जोड़ों के
दर्द या गठिया के ईलाज में काम लेते हैं। इसके पौधें का नाम ‘कोम्मिफेरा वाइटाई’ हैं। यह संकटग्रस्त (Endangered) पादप हैं।
Ⅰ.कथीरा -
इसे भिगोकर ठंडक प्रदान करने के लिए खाया जाता हैं।
यह ‘स्टरकुलिया
यूरेन्स’ पौधें से प्राप्त किया जाता हैं।
Ⅱ.
हींग -
यह रेजिन पदार्थ ही होता हैं, जिसे इसके पौधें ‘फेरुला असेफोइटिडा’
की जड़ों से प्राप्त किया जाता हैं।
Ⅲ.
कनाडा बालसम नामक स्थायी स्लाइड बनाने में
प्रयुक्त होने वाला माउंटिंग पदार्थ (Mounting reagent)
रेजिन ही होता हैं, जिसे ‘कनाडा बालसामिया’
पौधें से प्राप्त करते हैं।
रेजिन्स
पेन्ट, वार्निस आदि तैयार करने में काम में लिए जाते हैं।
4. टेनिन (Tannins) -
रासायनिक दृष्टि से टेनिन बहुचक्रीय फीनोलिक यौगिक
होते हैं। जो स्वाद में कड़वे होते हैं तथा इनकी उपस्थिति पौधों के विभिन्न भागों
में अलग-अलग मात्रा में होती हैं अर्थात् ये पत्तियों में, तने की छाल में, फलों की भित्ति में एवं बीज कवच में उपस्थित होते हैं। उदाहरण
- कत्था के पौधें के तने से प्राप्त कत्था पान में खाया जाता हैं।
ये
रंग प्रदान करने वाले पदार्थ होने के कारण चमड़े को रंगने के लिए चर्म उद्योग में
काम में लिए जाते हैं।
5. रबर क्षीर या लेटेक्स
(Latex) -
लेटेक्स कुछ पौधों में प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ के रूप
में उत्पादित होता हैं, जो सामान्यतः श्वेत दूध जैसा,
भूरे रंग का या पीले रंग का गाढ़ा तरल होता हैं। जब इन पौधों के किसी
भाग जैसे- शाखाऐं, पत्तियों को क्षति पहुँचाई जाती हैं,
तो यह पदार्थ बाहर निकलता हैं। इसी प्रकार अफीम के पौधें के कच्चे
फल में चीरा लगाने से भी भूरे रंग का लेटेक्स निकलता हैं। लेटेक्स में कई प्रकार
के कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायन मौजूद होते हैं, जिनमें
हाइड्रोकार्बन भी होता हैं। उदाहरण -
भारतीय रबर - फाइकस इलास्टिका
ब्राजीलियन रबर - हेबिया ब्रेजिलिएन्सिस
आक - केलोट्रोपिस प्रोसेरा
कनेर - नीरियम जाति
यूर्फोबिया, सूरजमुखी आदि।
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