अस्थियों
को निम्न दो आधारों पर भिन्न-भिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं-
Ⅰ. उत्पत्ति के आधार पर (On the
basis of origin) -
इस
आधार पर अस्थियों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया हैं-
1.उपास्थिल अस्थियाँ (Cartilaginous bones)-
भ्रूणावस्था
में लंबी अस्थियों (फीमर, टीबिया,
फिबुला, ह्यूमरस, रेडियस
व अल्ना) के स्थान पर उपास्थि (हायलिन) मौजूद होती हैं। जन्म के पश्चात् इसमें
अस्थिभवन (ossification) की क्रिया प्रारंभ होती हैं,
जिसके फलस्वरूप यह अस्थि में परिवर्तित हो जाती हैं।
2. चर्मिल अस्थियाँ (Dermal bones) -
त्वचा
के चर्म (Dermis) भाग में अस्थिभवन व कैल्शीकरण (Calcification) के फलस्वरूप निर्मित अस्थियों को चर्मिल अस्थि (Dermal bone) कहा जाता हैं। इनके उदाहरण - नासीय, पेराइटल व
पेलेटाइन अस्थि हैं।
3. सिसमॉइड अस्थियाँ (Seasmoid bones) -
इन
अस्थियों में अस्थि द्रव्यमान (Bone mass) गेंद के रूप में मौजूद होता हैं। उदाहरण - पटेला (घुटने की अस्थि)
4. स्पंजी अस्थियाँ (Spongy bones) -
ल्ंबी
अस्थियों के एपिफाइसिस (Epiphysis)
भाग (शीर्ष भाग) को स्पंजी अस्थि की संज्ञा दी गई हैं। इन अस्थियों में समीपस्थ
लैमिली (अस्थियों में ऑस्टियोसाइट (Osteocytes) कोशिकाओं से
निर्मित संकेन्द्रीय छल्लों को लैमिली कहा जाता हैं।) के मध्य रिक्त स्थान मौजूद
होता हैं, इनके मध्य लाल अस्थि मज्जा मौजूद होती हैं,
जो हीमोपोइसिस (Haemopoesis) प्रक्रिया द्वारा
रूधिर कोशिकाओं का निर्माण करती हैं।
5. कॉम्पेक्ट अस्थियाँ (Compact bones) -
लम्बी
अस्थियों के डायफाइसिस (Diaphysis)
भाग को कॉम्पेक्ट अस्थि की संज्ञा दी गई हैं। इन अस्थियों में समीपस्थ लैमिली के
मध्य रिक्त स्थान मौजूद नहीं होता हैं। कॉम्पेक्ट अस्थि में पीली अस्थि मज्जा पाई
जाती हैं, जो वसा व लवणों का संचयन करती हैं।
Ⅱ. आकृति व आकार के आधार पर (On the
basis of shape & size) -
इस
आधार पर अस्थियों को निम्नलिखित 4 प्रकार
का माना गया हैं -
1. लम्बी अस्थियाँ (Long bones) -
फीमर, टीबिया, फिबुला, ह्यूमरस,
रेडियस तथा अल्ना इस प्रकार की अस्थियों के उदाहरण हैं।
2. छोटी अस्थियाँ (Short bones) -
इनका
उदाहरण - कार्पल्स, टार्सल्स व
कर्ण अस्थियाँ हैं।
3. चपटी अस्थियाँ (Flat bones) -
इनका
उदाहरण - स्टर्नम, पसलियाँ व
क्लैविकल अस्थियाँ हैं।
4. अनियमित आकार की अस्थियाँ (Irregular bones) -
इनका
उदाहरण कशेरूक दण्ड व कर्ण अस्थियाँ हैं।
अस्थियों के मध्य संधियाँ (Joints between bones) -
अस्थियों
में उपस्थित संधि में पाई जाने वाली गतियों के आधार पर संधियों को निम्न तीन
प्रकार का माना गया हैं -
1. तंतुमय संधियाँ (Fibrous joints) -
इन
संधियों का निर्माण सफेद तंतुमय संयोजी ऊत्तक से होता हैं। इन संधियों में
अस्थियों के मध्य किसी भी प्रकार की गति संभव नहीं हैं। इनका उदाहरण खोपड़ी के
क्रेनियम भाग में उपस्थित अस्थियों के मध्य संधियाँ हैं।
2. उपास्थिल संधियाँ (Cartilaginous joints) -
इनका
निर्माण तंतुमय संयोजी ऊत्तक व प्रत्यास्थ उपास्थि से होता हैं। इनमें अत्यंत कम
गतियाँ संपन्न होती हैं अर्थात् ऐसी संधियों में उपस्थित अस्थियाँ केवल एक दूसरे
पर सरक सकती हैं। इनका उदाहरण कशेरूक दण्ड में उपस्थित अस्थियों के मध्य पाई जाने
वाली संधियाँ हैं।
3. सायनोवियल संधियाँ (Synovial joints) -
इन्हें
पूर्ण संधियाँ भी कहा जाता हैं, क्योंकि
इन संधियों में अस्थियों के मध्य पूर्ण रूप से गतियां संभव हैं। इनका निर्माण
सायनोवियल (Synovial) झिल्ली, सायनोवियल
गुहा तथा हायलिन उपास्थि से मिलकर होता हैं। इनमें उपस्थित सायनोवियल झिल्ली
सायनोवियल गुहा में श्यान (Lubricant) द्रव का स्त्रवण करती
हैं, जो अस्थियों में गतियों के दौरान घर्षण को कम करता हैं।
अस्थियों के शीर्षस्थ
सिरे पर हायलिन उपास्थि मौजूद होती हैं, जो भी गतियों के
दौरान घर्षण को कम करने का कार्य करती हैं। वृद्धावस्था में सायनोवियल झिल्ली
श्यान द्रव के स्त्रवण को कम अथवा बंद कर देती हैं। जिसके फलस्वरूप संधियों में
घर्षण के कारण संक्रमण बढ़ने लगता हैं, तथा यह अवस्था
अर्थराइटिस (Arthritis) कहलाती हैं।
सायनोवियल संधियों के प्रकार
(Types of synovial joints) -
संधि
में उपस्थित गतियों के आधार पर सायनोवियल संधियों को निम्नलिखित प्रकार का माना
गया हैं -
Ⅰ. कंदुक खल्लिका संधि (Ball
and socket joint) -
इस
प्रकार की संधियों में एक अस्थि का गेंदनुमा भाग दूसरी अस्थि के गुहा में स्थित
होता हैं। इन संधियो में 360 डिग्री
दिशा में गतियां संभव हैं। उदाहरण - ह्यूमरस अस्थि का शीर्ष स्कैपुला अस्थि के
ग्लीनॉइड गुहा में स्थित होता हैं। इसी प्रकार फीमर अस्थि का शीर्ष श्रोणी मेखला
की एसीटाबुलम गुहा में स्थित होता हैं।
Ⅱ. कब्जा संधि (Hinge
joint) -
इस
प्रकार की संधियों में एक अस्थि का गहरा उत्तल भाग दूसरी अस्थि के गहरे अवतल भाग
में स्थित होता हैं। इस प्रकार की संधियों में केवल एक ही तल में गतियां संभव होती
है। उदाहरण - ह्यूमरस व रेडियस-अल्ना के मध्य उपस्थित संधि।
Ⅲ. पाइवॉट संधि (Pivot
joint) -
इस
प्रकार की संधि में एक अस्थि दूसरी अस्थि के प्रवर्ध पर स्थित होती हैं, जिसके फलस्वरूप इनमें 180 डिग्री दिशा
में गतियां संभव होती हैं। उदाहरण - प्रथम सर्वाइकल अस्थि, द्वितीय
सर्वाइकल अस्थि के ऑडेन्टॉइड (Odentoid) प्रवर्ध पर उपस्थित
होती है।
फाँसी (Strangulation) के समय इस संधि के टूट जाने के कारण
ऑडेन्टॉइड प्रवर्ध मुक्त हो जाता हैं। जो मस्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लोन्गेटा भाग को
नष्ट कर देता हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति की मृत्यु हो जाती
हैं।
Ⅳ. सैडल संधि
(Saddle joint) -
यह
अपूर्ण कंदुक खल्लिका संधि हैं, जिनमें
270 डिग्री दिशा तक गतियां संभव हैं। उदाहरण - अगूंठे की
डिजिटैलिस (Digitalis)
व मेटाकार्पल (Metacarpal) अस्थि के मध्य उपस्थित संधि।
Ⅴ. ग्लाइडिंग संधि (Gliding
joint) -
इस
प्रकार की संधियों में एक अस्थि दूसरी अस्थि पर खिसकने में सक्षम होती हैं। उदाहरण
- स्टर्नम व क्लैविकल अस्थि के मध्य संधि तथा कशेरूक दण्ड में उपस्थित अस्थियों के
मध्य संधि।
Ⅵ. कोणीय संधि
(Angular joint) -
ठस
प्रकार की संधियों में गतियों के दौरान अस्थियों के मध्य विशिष्ट कोण का निर्माण
होता हैं। उदाहरण - अंगुलियों की फैलेंजेज (Phalanges) के मध्य संधि।
Comments
Post a Comment