कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित गोलाकार या
अनियमित आकर की इकाई झिल्ली से घिरी हुई रिक्तिकाऐं उपस्थित होती हैं। ये प्राणी
कोशिका में अनुपस्थित मानी जाती हैं। लेकिन प्रोटोजोअन्स में अल्पविकसित अवस्था
में उपस्थित होकर विभिन्न प्रकार के कार्य करती हैं। इसकी खोज फेलिक्स डुजार्डिन (Dujardin)
ने 1941 में की थी।
पादप
कोशिकाओं में रिक्तिकाऐं सुविकसित मिलती हैं। नई बनी हुई पादप कोशिका में ये
रिक्तिकाऐं छोटी तथा बिखरी हुई अवस्थाओं में मिलती हैं, लेकिन
वयस्क पादप कोशिका में छोटी-छोटी रिक्तिकाऐं आपस में मिलकर बड़ी एवं सुविकसित
रिक्तिका में बदल जाती हैं। रिक्तिका को कोशिकाद्रव्य से पृथक करने वाली झिल्ली को
टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहा जाता हैं। टोनोप्लास्ट की खोज डिव्रीज (de vries) द्वारा 1885 में की गई। इसकी पारगम्यता कोशिका झिल्ली की तुलना में कम होती हैं।
रिक्तिका
में विभिन्न प्रकार के कोशिकीय उत्सर्जी पदार्थ निर्जीव अवस्था में एकत्रित होते
रहते हैं। इन पदार्थों को कोशिका रस या रिक्तिका रस (Cell sap / Vacuole sap) कहा जाता
हैं। कोशिका रस में उपस्थित विभिन्न निर्जीव पदार्थों को अर्गोस्टिक पदार्थ भी
कहते हैं। इनमें शर्कराऐं, अमीनों अम्ल, खनिज लवण, कार्बनिक अम्ल, वर्णक
पदार्थ आदि घुलित अवस्था में मिलते हैं। अल्प मात्रा में ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सूक्रोज, इन्युलिन
कण, ऑक्जेलिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल,
साइट्रिक अम्ल कुछ एल्केलॉइड्स एवं ग्लाइकोसाइड्स आदि भी उपस्थित
होते हैं।
रंगीन फलभित्ति की कोशिकाओं में तथा पुष्पों के दलों
की कोशिकाओं में उपस्थित रिक्तिका रस विभिन्न रंगों के वर्णकों की उपस्थिति को
दर्शाता हैं।
रिक्तिका के कार्य (Functions of vacuole) -
1.रिक्तिकायें कोशिकाओं की आशूनता (Turgidity) को बनाए रखती हैं, जो कोशिकाओं को कार्यकीय रूप से
सक्रिय रखने के लिए आवश्यक हैं।
2. यह कोशिका विवर्धन (Cell elongation) द्वारा कोशिका वृद्धि में सहायक होती हैं।
3. कई पौधों में एन्थोसायेनिन वर्णक धावीरस में
धुले होते हैं। यह वर्णक परागण के लिए कीटों को आकर्षित करता हैं।
4. पौधें की पत्तियों, शाखाओं
व अन्य कोमल अंगों को तने हुए (Stretched) रखने में भी
आशूनता आवश्यक होती हैं।
5. कोशिका में वर्ज्य पदार्थों / अपशिष्ट पदार्थों
के अस्थायी रूप से संग्रह तथा निष्कासन में उपयोगी होती हैं।
6. कई पौधों में रिक्तिकाओं में ऐल्केलॉइडों का
संग्रह होता हैं, इस कारण शाकभक्षी (Herbivores) इन पौधों को नहीं खाते हैं।
रिक्तिकाओं के प्रकार (Types of vacuole) -
कार्यों के आधार पर रिक्तिकाऐं निम्न प्रकार की होती
हैं -
1.रस रिक्तिका या रसधानी (Sap
vacuole) -
रिक्तिका रस में यदि खनिज लवण एवं कुछ पोषणीय
पदार्थों का संचय होता हैं। तो ऐसी रिक्तिका को रस रिक्तिका कहते हैं।
2. संकुचनशील रिक्तिका
(Contractile vacuole) -
ये रसधानियाँ फैलने एवं सिकुड़ने वाली प्रकृति की होती
हैं,
जिनमें उत्सर्जी पदार्थ एवं जल भरता रहता हैं तथा अंत में इन्हें
बाहर निष्कासित कर देती हैं। अतः ये परासरणी नियमन एवं उत्सर्जन का कार्य करती
हैं।
3. खाद्य रिक्तिकाऐं (Food
vacuole) -
वे
रिक्तिकाऐं जो अर्न्तग्रहित भोजन का पाचन तथा पचित भोजन का वितरण करने का कार्य
करती हैं,
खाद्य रिक्तिकाऐं कहलाती हैं। सामान्यतः ये रिक्तिकाऐं पैरामिशियम,
अमीबा आदि प्रोटोजोअन्स में मिलती हैं।
4. वायु रिक्तिकाऐं या गैस
रिक्तिकाऐं (Air vacuole / Gas vacuole) -
ये रिक्तिकाऐं प्रोकेरियोटिक कोशिकाओं में मिलती हैं, जिनमें वायु भरी रहती हैं। अतः ये उत्प्लावकता प्रदान करने का कार्य करती
हैं।
Comments
Post a Comment