एकक्लोनी प्रतिरक्षी अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इनका उपयोग कई प्रकार की क्रियाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। विषाणुओं पर प्रतिजनिक निर्धारकों का नियंत्रण करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है। अलग-अलग श्रेणियों के प्रोटीन्स के अध्ययन एवं रोगों के उपचार व निदान में भी इनका लाभ उठाया जाता है। अनेकों जटिल प्रकृति के प्रतिजनों की संरचना ज्ञात करने में भी यह महत्वपूर्ण सिद्ध हुए है। इनमें सामान्य कोशिकाओं के ट्यूमर कोशिकाओं में रूपान्तरण एवं कोशिकीय विभेदीकरण से उत्पन्न हुए प्रतिजनों की संरचना ज्ञात करना प्रमुख हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी की विशिष्ट उपयोगिताएं निम्नलिखित हैं -
1.आण्विक जीव विज्ञान में (In Molecular Biology) -
चिकित्सा विज्ञान में बहुत से महत्वपूर्ण जैव अणुओं जैसे- इन्सुलिन एवं ह्यूमन वृद्धि हॉर्मोन के शुद्धिकरण के लिए एकक्लोनी प्रतिरक्षी प्रयुक्त किए जाते हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षियों की उच्च विशिष्टता के कारण ये भेषजगुण-कार्यिकी कारकों (Pharmaco-physiological agents) की संरचना व कार्यों के अध्ययन के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं।
2. सूक्ष्मजीव विज्ञान में (In Microbiology) -
एकक्लोनी प्रतिरक्षियों को बहुत से सूक्ष्मजीवों के प्रतिजनों (Microbial antigens) के विरूद्ध भी निर्मित किया गया है। ऐसे एकक्लोनी प्रतिरक्षियों का उपयोग विषाणु एवं जीवाणुओं की प्रोटीन में प्रतिजन निर्धारक का मानचित्र बनाने में किया जाता हैं। ऐसे एकक्लोनी प्रतिरक्षियों द्वारा विभिन्न सूक्ष्म जीवाणुओं को विभिन्न स्ट्रेन्स (Strains) एवं उपस्ट्रेन्स (Sub-strains) में विभेदित किया जा सकता हैं।
3. कैंसर विज्ञान में (In Oncology) -
एकक्लोनी प्रतिरक्षियों को अगर किसी विशेष रसायन अथवा रेडियो एक्टिव सक्रिय तत्वों से लेबल कर दिया जाए, तो उन्हें दुर्दम कोशिकाओं (Malignant cells) को नष्ट करने में भी उपयोग में लाया जाता हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी की मदद से एक सामान्य कोशिका का एक अर्बुद कोशिका (Tumor cells) में बहुत ही बारीकी से विभेदन किया जा सकता हैं।
4. प्रतिरक्षाविज्ञान में (In Immunology) -
एकक्लोनी प्रतिरक्षी की सहायता से प्रतिरक्षियों के उन वर्गों व उपवर्गों को लक्षित किया जा सकता है, जो कि सीरम में निम्न सान्द्रता में मिलते हैं। उदाहरणार्थ- IgG एवं IgD । अब इनका उपयोग बहुत से टीकों के निर्माण में भी किया जाता हैं।
5. चिकित्सा विज्ञान में (In Medical Science) -
एकक्लोनी प्रतिरक्षियों का उपयोग चिकित्सा विज्ञान में विशेषकर रोगों के निदान में बहुत किया जाता हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी विभिन्न परिघटनाओं के अध्ययन के लिए एक शक्तिशाली वैश्लेषिक अभिकर्मक का रूप प्रदान करते हैं, उदाहरण के लिए -
- इनकी सहायता से विषाणु व अन्य संक्रामक अभिकर्मों पर प्रतिजनिक निर्धारकों का मानचित्र तैयार किया जा सकता हैं।
- इनसे प्रोटीन की वियुक्ति का अध्ययन किया जा सकता है।
- रोगों के निदान एवं महामारी विज्ञान (Epidemiology) को रोकने में उपयोग किया जा सकता हैं।
- ये उच्च स्तरीय बहुरूपी प्रत्यारोपण प्रतिजन (Highly Polymorphic Transplantation Agent) एवं वे प्रतिजन जो कोशिका विभेदन या सामान्य कोशिकाओं के अर्बुद (Tumor) कोशिकाओं में रूपान्तरण होने के पश्चात् उत्पन्न होते हैं, उनके मानचित्र बनाने में भी बहुत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी मानव में विभिन्न संक्रामक रोगों से निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण की भी शक्ति रखते हैं।
6. अंग प्रत्यारोपण में (In Organ Transplantation) -
आजकल अंग प्रत्यारोपण सामान्य सी क्रिया है। यद्यपि इसके होने की दर बहुत कम हैं। एकक्लोनी प्रतिरक्षी का ज्ञान हमें अंग प्रत्यारोपण को अधिक सूझबूझ एवं विकसित तकनीकों के द्वारा करने में सहायता करता हैं -
- इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के अज्ञात प्रतिजनों को परखा जाता है।
- प्रत्येक प्रत्यारोपण प्रतिजन के लिए एकक्लोनी प्रतिरक्षी उत्पन्न करने की क्षमता तीव्र होती हैं।
- अब HLA (Human Leukocyte Antigen) प्रतिजन्स इनकी सहायता से चित्रण हेतु प्रयास जारी है।
7. एड्स में (In AIDS) -
इस तकनीक का उपयोग एड्स का टीका बनाने में किया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि एकक्लोनी प्रतिरक्षियों व हाइब्रिडोमा के उपयोग के द्वारा एड्स का स्थाई उपचार खोजा जा सकता हैं।
इसी प्रकार एकक्लोनी प्रतिरक्षियों का उपयोग महत्वपूर्ण कोशिकाएं जैसे- तंत्रिका कोशिकाओं को चिन्हित करने में किया जाता हैं।
इनका उपयोग प्लाज्मा कला एवं कोशिका कलाओं की संरचना ज्ञात करने में भी किया जाता है।
एंजाइम आनुवंशिकी के क्षेत्र में एकक्लोनी प्रतिरक्षियों का प्रयोग तीव्र गति से बढ़ रहा हैं। अब विज्ञान की एक नई शाखा प्रतिरक्षा आनुवंशिकी (Immuno-genetics) विकसित की जा रही है, जो इस क्षेत्र में व्यापक अध्ययन करवा रही है। एंजाइमों का शुद्धिकरण एवं उच्च मात्रा में इनका उत्पादन उपरोक्त विधि से सम्भव हो सका हैं।
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