मानव का तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है-
(क) केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) तथा
(ख) परिधीय तंत्रिका तंत्र। (Peripheral Nervous System)
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क तथा मेरूरज्जु सम्मिलित है, जहाँ सूचनाओं का संसाधन एवं नियंत्रण होता है। मस्तिष्क एवं परिधीय तंत्रिका तंत्र सभी तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है, जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क व मेरूरज्जू) से जुड़ी होती हैं।
परिधीय तंत्रिका तंत्र में दो प्रकार की तंत्रिकाएं होती हैं (अ) संवेदी या अभिवाही एवं (ब) चालक/प्रेरक या अपवाही। संवेदी या अभिवाही तंत्रिकाएं उद्दीपनों को ऊतकों/अंगों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक तथा चालक/अभिवाही तंत्रिकाएं नियामक उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से संबंध्ति परिधीय ऊतक/अंगों तक पहुँचाती हैं। परिधीय तंत्रिका तंत्र दो भागों में विभाजित होता है - कायिक तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र। कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहूँचाता है। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र पुनः दो भागों - (अ) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र व (ब) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में वर्गीकृत किया गया है।
Brain |
तंत्रिकोशिका (न्यूरॉन) तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई -
न्यूरॉन एक सूक्ष्मदर्शीय संरचना है जो तीन भागों से मिलकर बनती है - कोशिका काय, दुम्राक्ष्य (डेड्राइट) व तंत्रिकाक्ष। कोशिका काय में कोशिका द्रव्य व प्रारूपिक कोशिकांग व विशेष दानेदार अंगक निसेल ग्रेन्यूल पाए जाते हैं। छोटे तंतु जो कोशिका काय से प्रवर्धित होकर लगातार विभाजित होते हैं तथा जिनमें निसेल ग्रेन्यूल भी पाए जाते हैं, दुम्राक्ष्य कहलाते हैं।ये तंतु उद्दीपनों को कोशिका काय की ओर भेजते हैं। एक तंत्रिकोशिका में एक तंत्रिकाक्ष निकलता है। इसका दूरस्थ भाग शाखित व प्रत्येक शाखित भाग का अंतिम छोर लड़ीनुमा संरचना सिनेप्टिक नोब जिसमें सिनेप्टी पुटिकाएं होती हैं, इसमें रसायन Neurotransmeters पाए जाते हैं। तंत्रिकाक्ष तंत्रिकीय आवेगों को कोशिका काय से दूर सिनेप्स पर अथवा तांत्रिकीयपेशी संधि पर पहुँचाते हैं। तंत्रिकाक्ष तथा दुमाक्ष्य की संख्या के आधार पर न्यूरोंस को तीन समूहों में बँाटते हैं। जैसे बहुध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष व दो या अधिक दुम्राक्ष्य युक्त जो प्रमस्तिष्क वल्कुट में पाए जाते हैं।) तथा द्विध्रुवीय (एक तंत्रिकाक्ष एवं एक द्रुमाक्ष्य जो दृष्टि पटल में पाए जाते हैं।) तंत्रिकाक्ष दो प्रकार के होते हैं- आच्छदी व आच्छदहीन। आच्छदी तंत्रिका तंतु श्वान कोशिका से ढके रहते हैं, जो तंत्रिकाक्ष के चारो ओर माइलिन आवरण बनाती है। माइलिन आवरणों के बीच अंतराल पाए जाते हैं, जिन्हें रेनवीयर के नोड कहते हैं। आच्छदी तंत्रिका तंतु मेरू व कपाल तंत्रिकाओं में पाए जाते हैं। आच्छदहीन तंत्रिका तंतु भी श्वान कोशिका तंत्रिकोशिका की संरचना से घिरे रहते हैं, लेकिन वे ऐक्सोन के चारों ओर माइलीन आवरण नहीं बनाते हैं। सामान्यतया स्वायत्त तथा कायिक तंत्रिका तंत्र में मिलते हैं।
(क)केंद्रीय तंत्रिका तंत्र - मानव मस्तिष्क –
मस्तिष्क हमारे शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसारण अंग है और यह ‘आदेश व नियंत्रण तंत्र’ की तरह कार्य करता है। यह ऐच्छिक गमन शरीर के संतुलन, प्रमुख अनेच्छिक अंगों के कार्य (जैसे फेफड़े, हृदय, वृक्क आदि), तापमान नियंत्रण, भूख एवं प्यास, परिवहन, लय, अनेकों अंतःस्त्रावी ग्रंथियों की क्रियाएं और मानव व्यवहार का नियंत्रण करता है। यह देखने, सुनने, बोलने की प्रक्रिया, याददाश्त, कुशाग्रता, भावनाओं और विचारों का भी स्थल है। मानव मस्तिष्क खोपड़ी के द्वारा अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। खोपड़ी के भीतर कपालीय मेनिंजेज से घिरा होता है, जिसकी बाहरी परत ड्यूरा मैटर, बहुत पतली मध्य परत एरेक्नॉइड और एक आंतरिक परत पाया मैटर (जो कि मस्तिष्क ऊतकों के संपर्क में होती है) कहलाती है। मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता हैः (I) अग्र मस्तिष्क, (II) मध्य मस्तिष्क, और (III) पश्च मस्तिष्क
(I)अग्र मस्तिष्क -
अग्र मस्तिष्क सेरीब्रम, थेलेमस और हाइपोथेलेमस का बना होता हैं सेरीब्रम (प्रमस्तिष्क) मानव मस्तिष्क का एक बड़ा भाग बनाता है। एक गहरी लंबवत विदर प्रमस्तिष्क को दो भागों, दाएं व बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्धो में विभक्त करती है। ये गोलार्ध तंत्रिका तंतुओं की पट्टी कार्पस कैलोसम द्वारा जुड़े होते हैं प्रमस्तिष्क गोलार्ध को कोशिकाओं की एक परत आवरित करती है, जिसे प्रमस्तिष्क वल्कुट कहते हैं तथा यह निश्चित गर्तो में बदल जाती है। प्रमस्तिष्क वल्कुट को इसके धूसर रंग के कारण धूसर द्रव्य कहा जाता है। तंत्रिका कोशिका काय सांद्रित होकर इसे रंग प्रदान करती है। प्रमस्तिष्क वल्कुट में प्रेरक क्षेत्र, संवेदी भाग और बड़े भाग होते हैं,जो स्पष्टतया न तो प्रेरक क्षेत्र होते हैं न ही संवेदी। ये भाग सहभागी क्षेत्र कहलाते हैं तथा जटिल क्रियाओं जैसे अंतर संवेदी सहभागिता, स्मरण, सम्पर्क सूत्र आदि के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस पथ के रेशे माइलिन आच्छद से आवरित रहते हैं जो कि प्रमस्तिष्क गोलार्ध का आंतरिक भाग बनाते हैं। ये इस परत को सफेद अपारदर्शी रूप प्रदान करते हैं, जिसे श्वेत द्रव्य कहते हैं। प्रमस्तिष्क थेलेमस नामक संरचना के चारों ओर लिपटा होता है, जो कि संवेदी और प्रेरक संकेतों का मुख्य सम्पर्क स्थल है। थेलेमस के आधार पर स्थित मस्तिष्क का दूसरा मुख्य भाग हाइपोथेलेमस स्थित होता है। हाइपोथेलेमस में कई केंद्र होते हैं, जो शरीर के तापमान, खाने और पीने का नियंत्रण करते हैं। इसमें कई तंत्रिका स्त्रावी कोशिकाएं भी होती हैं जो हाइपोथेलेमिक हार्मोन का स्रवण करती हैं। प्रमस्तिष्क का आंतरिक भाग और अंदरूनी अंगों जैसे एमिगडाला, हिप्पोकैपस आदि का समूह मिलकर एक जटिल संरचना का निर्माण करता है, जिसे लिंबिकलोब या लिबिंक तंत्र कहते हैं। यह हाइपोथेलेमस के साथ मिलकर लैंगिक व्यवहार, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति (जैसे उत्तेजना, खुशी, गुस्सा और भय) आदि का नियंत्रण करता है।
(II) मध्य मस्तिष्क -
मध्य मस्तिष्क अग्र मस्तिष्क के थेलेमस/हाइपोथेलेमस तथा पश्च मस्तिष्क के पोंस के बीच स्थित होता है। एक नाल प्रमस्तिष्क तरल नलिका मध्य मस्तिष्क से गुजरती है। मध्य मस्तिष्क का ऊपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना होता है जिन्हें कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन कहते हैं। मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क, मस्तिष्क स्तंभ बनाते हैं।
(III) पश्च मस्तिष्क -
पश्च मस्तिष्क पोंस, अनुमस्तिष्क और मध्यांश (मेड्यूला ओबलोगेंटा) का बना होता है। पोंस रेशेनुमा पथ का बना होता है जो कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ते हैं। अनुमस्तिष्क की सतह विलगित होती है जो न्यूरोंस को अतिरिक्त स्थान प्रदान करती है। मस्तिष्क का मध्यांश मेरूरज्जु से जुड़ा होता है। मध्यांश में श्वसन, हृदय परिसंचारी प्रतिवर्तन और पाचक रसों के स्त्राव के नियंत्रण केंद्र होते हैं।
Brain Stem - यह मस्तिष्क का तीसरा सबसे बड़ा भाग है। इसे “Pons Varoli” भी कहते है। लार ग्रंथियों का नियंत्रण, आँख व सिर के कुछ भाग का नियंत्रण, वाणी व आवाज को खोजने की क्षमता का केन्द्र है।
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