कोशिका की अन्तरावस्था में उपस्थित गुणसूत्री तंतु /
धागें गुणसूत्रों में ही बदलते हैं। विभाजन काल में ये छोटे, मोटे एवं स्पष्ट होकर गुणसूत्र कहलाते हैं। प्रत्येक सजीव की कोशिका के
केन्द्रक में इन गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती हैं तथा गुणसूत्र युग्मकों के
माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचकर आनुवंशिक पदार्थ का प्रेषण करते हैं।
Greek words; Chroma = Colored & Soma = Body
गुणसूत्रों को सर्वप्रथम ‘हॉफमिस्टर व कार्ल नेगेली’ (Hauffmister & Carl Nageli) ने देखा था। गुणसूत्रों की खोज का श्रेय ‘स्ट्रॉसबर्गर (1875)’ (Strausberger) को दिया जाता हैं तथा ‘गुणसूत्र’ (Chromosome) नाम ‘डब्ल्यू. वाल्डेयर’ (W. Waldeyer)
ने दिया था। लिंग गुणसूत्र x एवं y की खोज ‘मैकक्लंग’
(McClung) ने की थी।
गुणसूत्र संख्या
(Chromosome number) -
प्रत्येक पौधें एवं जन्तु की कोशिका के केन्दक में
गुणसूत्रों की संख्या निश्चित होती हैं। इनमें से सामान्यतः यूकैरियोटिक शैवालों, कुछ कवकों एवं ब्रायोफाइट्स में इन गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (Haploid)
/ n होती हैं, लेकिन कुछ कवको जैसे-
न्यूरोस्पाइरा तथा टेरिडोफाइट्स, अनावृत्तबीजी
(Gymnosperms) एवं आवृत्तबीजियों (Angiosperms) में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (Diploid) / 2n
होती हैं। कुछ प्रमुख पौधों एवं जंतुओं की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या इस
प्रकार होती हैं -
पादप
का सामान्य नाम
|
वैज्ञानिक नाम
|
द्विगुणित गुणसूत्र संख्या
|
डबल
रोटी की फंफूद
|
न्यूरोस्पाइरा
|
14
|
हेप्लोपेपस
|
हेप्लोपेपस ग्रेसिलिस
|
04 (पादप जगत में सबसे कम गुणसूत्र
संख्या)
|
मटर
|
पाइसम सेटाइवम
|
14
|
प्याज
|
एलियम सीपा
|
16
|
गेंहूँ
|
ट्रीटीकम एस्टीवम
|
42
|
चावल
|
ओराइजा सेटाइवा
|
24
|
एडर्स
टंग पादप
|
ओफियोग्लोसम रेटिकुलेटम
|
1260 (पादप जगत में सर्वाधिक
गुणसूत्र संख्या)
|
प्राणी
का सामान्य नाम
|
वैज्ञानिक नाम
|
द्विगुणित गुणसूत्र संख्या
|
गोलकृमि
|
एस्केरिस मेगालोसिफेला
|
02 (जन्तु जगत में न्यूनतम गुणसूत्र
संख्या)
|
रेडियोलेरियन
|
ऑलोकेन्था
|
1600 (जन्तु जगत में सर्वाधिक
गुणसूत्र संख्या)
|
चूहा
|
रेटस रेटस
|
42
|
मनुष्य
|
होमो सेपियन्स
|
46
|
फलमक्खी
|
ड्रोसोफिला मिलेनोगेस्टर
|
08
|
मेंढ़क
|
राना टिग्रिना
|
24
|
खरगोश
|
ओरिक्टोलेगस क्युनिकुलस
|
44
|
गुणसूत्र की संरचना
(Structure of chromosome) -
एक प्रारूपिक गुणसूत्र की संरचना का अध्ययन
इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में किया जाता हैं, क्योंकि ये अत्यन्त
सूक्ष्म आकार के होते हैं। इनकी लम्बाई सामान्यतः 1 µ से 20
µ तथा मोटाई 0.2 µ से 3 µ होती हैं। सबसे बड़ा गुणसूत्र ट्रिलियम
ग्रेण्डीफ्लोरम नामक पादप की कोशिकाओं में मिलते हैं।
कवकों
में तथा पक्षियों में गुणसूत्रों की आकृति अन्य पौधों एवं जन्तुओं से कम मिलती
हैं। इसी प्रकार, एकबीजपत्री पौधों के गुणसूत्र द्विबीजपत्री
पौधों के गुणसूत्रों से लम्बे होते हैं।
गुणसूत्रों की संरचना का अध्ययन कोशिका विभाजन की
मध्यावस्था (Metaphase) में किया जाता हैं, क्योंकि इस प्रावस्था में गुणसूत्र सर्वाधिक स्पष्ट दिखाई देते हैं। एक
प्रारूपिक गुणसूत्र की संरचना में निम्न भाग पाए जाते हैं –
1.गुणसूत्र भुजा (Chromatids
/ arms of chromosomes) -
गुणसूत्र में प्राथमिक संकीर्णन स्थल के दोनों ओर
उपस्थित लम्बवत् संरचनाऐं गुणसूत्र भुजा या अर्द्धगुणसूत्र कहलाती हैं। ये भुजाऐं
परस्पर जिस स्थल पर जुड़ती हैं, उसे गुणसूत्र बिंदु कहा जाता
हैं। गुणसूत्र भुजाऐं आपस में बराबर लंबाई की अथवा छोटी-बड़ी हो सकती हैं। यह
गुणसूत्र बिंदु की गुणसूत्र में स्थिति पर निर्भर करता हैं।
2. क्रोमोनिमा (Chromonema) -
प्रत्येक गुणसूत्र में एक सिरे से दूसरे सिरे तक DNA रेखीय रूप में उपस्थित होता हैं, प्रारंभ में
प्रत्येक गुणसूत्र भुजा में एक क्रोमोनिमा (क्रोमोनिमेटा - एकवचन) रेखीय DNA के रूप में होता हैं। क्रोमोनिमा में असंख्य कणिकीय संरचनाऐं उपस्थित
होती हैं, जिन्हें क्रोमोमियर्स कहा जाता हैं। ये
क्रोमोमियर्स गुणसूत्र के संकीर्णन स्थलों पर नहीं मिलते।
3. गुणसूत्र बिंदु
(Centeromere) -
गुणसूत्र के मध्य भाग में अथवा कहीं भी गुणसूत्र
बिंदु प्राथमिक संकीर्णन स्थल पर उपस्थित होता हैं। इसके कारण ही गुणसूत्र में
गुणसूत्र भुजाऐं बनती हैं। यह गुणसूत्रों की भुजाओं की लंबाई का अनुपात निर्धारित
करता हैं। कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्र बिंदु स्थल से ही तर्कुतंतु (Spindle
fibers) जुड़ते हैं।
गुणसूत्र
बिंदु पर प्रोटीन की बनी दो डिस्क् स्थित होती हैं, जिन्हें
काइनेटोकोर (Kinetochore) कहा जाता हैं। यह कोशिका विभाजन के
समय तर्कु तंतुओं के जुड़ने के स्थल हैं।
4. द्वितीयक संकीर्णन (Secondary
constriction)-
गुणसूत्र में गुणसूत्र भुजा के शीर्ष भाग के पीछे की
ओर द्वितीयक संकीर्णन मिलता हैं, जिसके कारण गुणसूत्र भुजा का
सिरा गोलाकार हो जाता हैं। इस गोलाकार संरचना को उपग्रह (Satellite) कहा जाता हैं। सेटेलाइट की संख्या प्रत्येक गुणसूत्र में एक या एक से
अधिक हो सकती हैं। ऐसे गुणसूत्र जिनमें सेटेलाइट उपस्थित होता हैं, सेटेलाइट गुणसूत्र या SAT (Sine Amino Thymonucleonico) गुणसूत्र कहलाते हैं। जब द्वितीयक संकीर्णन पर केन्द्रिका जुड़ी होती हैं,
तो इन्हें NoR (Nucleolar organizer) कहा जाता
हैं।
गुणसूत्र
की भुजा के सिरे को टीलोमियर (Telomere) या अन्तःखण्ड भी
कहते हैं, जिसके द्वारा टीलोमरेज एंजाइम उत्पन्न किया जाता
हैं। यह एंजाइम केन्द्रक में उपस्थित दूसरे गुणसूत्र को इस गुणसूत्र से जुड़ने से
रोकता हैं।
डॉ. रिचर्ड कॉथन (2004) के अनुसार यदि गुणसूत्र के टीलोमियर को छोटे आकार में बनाये रखा जाए,
तो सदैव युवावस्था बनाए रखी जा सकती हैं और यह कार्य टीलोमीयर को
अतिरिक्त मात्रा में टीलोमरेज एंजाइम समय रहते उपलब्ध कराए जाने पर किया जा सकता
हैं।
गुणसूत्र
के बारे में यह भी माना जाता हैं कि यह पेलीकल (Pellicle) की पतली परत से घिरा रहता हैं
तथा इसमें मेट्रिक्स की उपस्थिति भी मिलती हैं।
गुणसूत्र का रासायनिक संगठन
(Chemical composition of chromosome) -
*DNA एवं RNA या न्यूक्लिक
अम्ल
* खनिज तत्व (आयनिक अवस्था में) – Ca+2,
Mg+2, Na+
* प्रोटीन - अ. हिस्टोन प्रोटीन – H1,
H2A, H2B, H3, H4
ब. नॉन-हिस्टोन प्रोटीन - स्वतंत्र प्रोटीन
* हिस्टोने प्रोटीन में H1 अणु से लेकर H4 अणु तक अणुभार में कमी
होती हैं। लेकिन H3 अणु का अणुभार अपवादस्वरूप
अधिक मिलता हैं। H1, H2A एवं H2B नामक हिस्टोन प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की अधिकता मिलती हैं,
लेकिन H3 व H4 अणुओं में आर्जिनिन अमीनो अम्ल की अधिकता मिलती हैं।
गुणसूत्रों के प्रकार (Types
of chromosomes)-
गुणसूत्रों को विभिन्न आधारों के अनुसार अलग-अलग
प्रकारों में बाँटा जाता हैं -
1.गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की
स्थिति एवं संख्या के आधार पर -
गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की स्थिति के आधार पर
गुणसूत्र निम्न प्रकार के होते हैं -
Ⅰ.मध्यकेन्द्रकी गुणसूत्र (Metacentric chromosome) -
इनमें गुणसूत्र बिंदु गुणसूत्र की मध्य स्थिति पर स्थित होता हैं।
जिससे दो समान भुजाऐं बनती हैं तथा इनकी आकृति V समान दिखती
हैं।
Ⅱ.
उपमध्यकेन्द्रकी गुणसूत्र (Sub-metacentric chromosome) -
इनमें गुणसूत्र बिंदु केन्द्र से थोड़ी दूर स्थित होता
हैं,
जिससे एक बड़ी व एक छोटी भुजा का निर्माण होता हैं। इनकी आकृति L समान दिखती हैं।
Ⅲ.
उपशीर्षकेन्द्री गुणसूत्र (Acrocentric chromosome) -
जब गुणसूत्र बिंदु की स्थिति किसी एक सिरे से थोड़ी
अंदर की तरफ हो, तो एक भुजा अत्यधिक बड़ी व एक भुजा अत्यधिक छोटी
हो जाती हैं। इन गुणसूत्रों की आकृति J समान होती हैं।
Ⅳ.
शीर्षकेन्द्री गुणसूत्र (Teleocentric chromosome) -
जब गुणसूत्र बिंदु की स्थिति गुणसूत्र के एक सिरे पर
हो तो उनमें केवल एक ही भुजा नजर आती हैं। ये I आकृति के समान
दिखते हैं।
गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की संख्या के अनुसार
इन्हें निम्न प्रकारों में बाँटा गया हैं -
Ⅰ.
एककेन्द्री गुणसूत्र (Monocentric chromosome)
- गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की संख्या एक होती हैं।
Ⅱ.
द्विकेन्द्री गुणसूत्र (Bicentric chromosome)
- गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की संख्या दो होती हैं।
Ⅲ.
बहुकेन्द्री गुणसूत्र (Polycentric chromosome) - गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु की संख्या दो से अधिक
होती हैं।
Ⅳ.
अकेन्द्री गुणसूत्र (Accentric chromosome) -
गुणसूत्र में गुणसूत्र बिंदु अनुपस्थित होते हैं।
2. लक्षणों को निर्धारित करने वाले
जीनों की उपस्थिति के आधार पर -
Ⅰ.
अलिंगसूत्री / अलिंगी गुणसूत्र / कायिक गुणसूत्र / समगुणसूत्र
(Somatic chromosomes / Autosomes) -
जीवों के कायिक या शारीरिक लक्षणों को निर्धारित करने
वाले जीन्स जिन गुणसूत्रों में उपस्थित होते हैं, उन्हें
अलिंगी गुणसूत्र कहा जाता हैं। मनुष्य में इन Autosomes की
संख्या 44 होती हैं।
Ⅱ.
लिंगी सूत्र / लिंगी गुणसूत्र / विषम गुणसूत्र (Sex
chromosomes / Hetero chromosomes / Allosomes) -
वे गुणसूत्र जिनमें नर एवं मादा लिंग निर्धारित करने
वाले अथवा नर एवं मादा के लैंगिक लक्षणों को निर्धारित करने वाले जीन उपस्थित हो, उन्हें लिंगी सूत्र कहते हैं। नर सदस्य में सामान्यतः XY लिंग गुणसूत्र होते हैं, जबकि मादा में ये XX होते हैं।
गुणसूत्रों के कार्य (Functions
of chromosomes) -
ये एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक आनुवंशिक सूचनाओं का वहन
करते हैं। गुणसूत्र में किसी भी प्रकार का परिवर्तन आ जाने पर जीव के लक्षणों में
परिवर्तन निश्चित हैं।
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