सूक्ष्मकाय (Micro-bodies) -
यूकेरियोटिक कोशिकाओं में कोशिका द्रव्य में अत्यन्त
सूक्ष्म आकार की संरचनाओं के रूप में अर्थात् 0.3 से 1.5 µ तक के कोशिकांगों को सूक्ष्मकाय कहा जाता हैं। ये एकल झिल्लीबंधित
कोशिकांग हैं, जो श्वसन के अलावा होने वाली ऑक्सीकरण
अभिक्रियाओं से संबंधित हैं। प्रमुख सूक्ष्मकाय निम्न होते हैं -
1.परॉक्सीसोम (Peroxysome) -
परॉक्सीसोम सूक्ष्म आकार के गोलाकार तथा इकाई झिल्ली
से घिरी हुई संरचनाऐं होती हैं, जिन्हें ‘टॉलबर्ट’ (Tolbert) ने 1969 में खोजा तथा इनका नाम भी दिया। इन्हें
परॉक्सीसोम कहा जाता हैं, क्योंकि इनमें परॉक्साइड उत्पन्न
करने वाले एंजाइम (ऑक्सीडेज) तथा परॉक्साइड नष्ट करने वाले एंजाइम (केटेलेज) पाए
जाते हैं। केटेलेज H2O2 को जल व
ऑक्सीजन में तोड़ता हैं। H2O2 एक प्रबल
ऑक्सीकारी हैं। अतः कोशिका के लिए अत्यधिक हानिकारक व विषाक्त हैं। ये ‘तीन कोशिकांग अभिक्रिया’ - प्रकाश श्वसन में भाग
लेते हैं। यह एक हानिकारक अभिक्रिया हैं, जो हरितलवक,
परॉक्सीसोम, माइटोकॉन्ड्रिया में सम्पन्न होती
हैं। परॉक्सीसोम्स की उत्पत्ति अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका से होती हैं।
2. स्फीरोसोम (Spherosome) -
ये केवल पादप कोशिकाओं में ही इकाई झिल्ली युक्त
सूक्ष्म गोलाकार संरचनाओं के रूप में होती हैं। इनकी उत्पत्ति गॉल्जीकाय या
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिकाओं से होती हैं तथा सूक्ष्म आकार की थैलियों के रूप में
देखी जा सकती हैं। यह वसा के संग्रहण व संश्लेषण में भाग लेते हैं तथा ये तैलीय
बीजो के भ्रूणपोष में पाए जाते हैं। इनमें जल अपघटनी एंजाइम पाए जाते हैं, अतः इन्हें पादप लाइसोसोम (Plant lysosome) भी कहा जाता हैं।
स्फीरोसोम्स में विभिन्न प्रकार के एंजाइम्स जैसे- हाइड्रोलेज, प्रोटीएज, राइबोन्यूक्लिएज एवं फॉस्फेटेज भरे रहते
हैं, जो क्रमशः कार्बनिक पदार्थों के जल अपघटन, प्रोटीन का अपघटन, न्यूक्लिक अम्ल का अपघटन एवं
फॉस्फोरीकरण के कार्य सम्पन्न करते हैं।
3. ग्लाइऑक्सीसोम
(Glyoxysome) -
ये भी केवल पादप कोशिकाओं में अत्यधिक संख्या में
मिलने वाले सूक्ष्मकाय ही होते हैं, जो एकल इकाई झिल्ली
से घिरे रहते हैं, इन्हें ‘बीवर्स’ (Beavers) ने 1961 में खोजा तथा नाम दिया था। ग्लाइऑक्सीसोम में विभिन्न प्रकार के
संश्लेषणीय एंजाइम्स भरे रहते हैं। जैसे- मैलिक अम्ल सिंथेटैज, एकोटिनेज, ग्लाइकोलेट ऑक्सीडेज तथा केटेलेज आदि।
इनमें ग्लाइऑक्सेलेट पथ (Glyoxalate pathway) के एंजाइम पाए
जाते हैं। इस पथ में वसाओं को ग्लूकोज में परिवर्तित किया जाता हैं। इस प्रक्रिया
को ग्लूकोनिओजेनेसिस (Gluconeogenesis) कहा जाता हैं।
सामान्यतः ये अंकुरणशील वसीय बीजों (अरण्डी, मूँगफली) में
पाए जाते हैं, जहाँ अघुलनशील वसा को घुलनशील शर्कराओं में
बदला जाता हैं। ग्लाइऑक्सीसोम को प्रमुख कार्य वसाओं के विघटन से कार्बाेहाइड्रेट
का निर्माण करना होता हैं।
कोशिकीय कंकाल (Cytoskeleton) -
सूक्ष्मनलिकाऐं, सूक्ष्मतंतु व
मध्यवर्ती तंतु आपस में मिलकर कोशिका कंकाल बनाते हैं। जिनका वर्णन निम्नानुसार
हैं -
1.सूक्ष्मनलिका -
सूक्ष्मनलिकाऐं सभी यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाई
जाती हैं। ये पक्ष्माभ, कशाभ व तारककेन्द्रक में भी पाई जाती
हैं। सूक्ष्मनलिकाऐ खोखली, अशाखित व बेलनाकार होती हैं। एक
सूक्ष्मनलिका की परिसीमा 13 समांतर प्राक्तंतुओं से मिलकर
बनी होती हैं तथा प्रत्येक प्राक्तंतु ट्यूब्यूलिन (Tubulin)
प्रोटीन का बना होता हैं।
सूक्ष्मनलिका के कार्य -
* कोशिका विभाजन के दौरान तर्कुतंतुओं व तारक किरणों
का निर्माण।
* पक्ष्माभ व कशाभ के कोशिका कंकाल का निर्माण।
2. सूक्ष्मतंतु -
यह यूकेरियोटिक कोशिकाओं में पाए जाते हैं। यह ठोस
अशाखित व असीमित लंबाई के छड़नुमा तंतु हैं। ये एक्टिन (Actin) व मायोसिन (Myosin) प्रोटीन के बने होते हैं।
सूक्ष्मतंतु के कार्य -
* कोशिका झिल्ली को सहारा प्रदान करना।
* कूटपाद निर्माण करना।
3. मध्यवर्ती तंतु -
ये असंकुचनशील, खोखले तंतु हैं,
ये अम्लीय प्रोटीन्स के बने होते हैं। ये केन्द्रक छिद्र के चारों
ओर एक बास्केट बनाते हैं।
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