झिल्ली बंधित कोशिकांग जिनके कार्य आपस में समन्वित
होते हैं,
अन्तः झिल्ली तंत्र बनाते हैं। इसमें निम्न कोशिकांग सम्मिलित हैं -
1. अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका
2. गॉल्जीकाय
3. लाइसोसोम
4. रिक्तिका
1.अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका
(Endoplasmic reticulum) –
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका शब्द ‘पोर्टर’ (Porter) ने दिया व खोज भी ‘पोर्टर’ ने ही की। अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका
अन्तःकोशिकीय अवकाश को दो भागों में बाँटती हैं - अ. लूमिनल भाग
(अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका के अंदर), ब. एक्स्ट्रा लूमिनल
भाग (कोशिका द्रव्य में)।
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका केन्द्रक झिल्ली से कोशिका
झिल्ली तक फैली हो सकती हैं। अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका की संरचना में 3 घटक पाए जाते हैं -
Ⅰ.सिस्टर्नी (Cisternae) -
ये लम्बी, चपटी, समानांतर, अशाखित, थैले समान
अर्न्तसम्बंधित संरचना हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम पाए जाते हैं। ये प्रोटीन
संश्लेषण करने वाली कोशिकाओं में अधिक पाए जाते हैं।
Ⅱ.
नलिकायें (Tubules) -
ये शाखित संरचनाऐं हैं। इनकी सतह पर राइबोसोम नहीं
पाए जाते हैं। यह सामान्यतया वसा व स्टेरॉइड संश्लेषण कोशिकाओं में पाई जाती हैं।
Ⅲ.
आशय (Vesicles) -
ये अण्डाकार झिल्ली बंधित रिक्तिकीय संरचनाऐं हैं।
इनकी सतह पर भी राइबोसोम नहीं पाए जाते हैं।
राइबोसोम की उपस्थिति व अनुपस्थिति के आधार पर
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका दो प्रकार की होती हैं, जिनमें
निम्न अंतर पाए जाते हैं -
कणिकीय/खुरदरी
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका
|
अकणिकीय/चिकनी अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका
|
80s राइबोसोम्स की उपस्थिति के कारण इनकी सतह खुरदरी होती हैं। इनकी सतह पर
राइबोसोम्स विशिष्ट ग्लाइकोप्रोटीन, राइबोफोरिन Ⅰ
व Ⅱ के द्वारा जुडे होते हैं।
|
राइबोसोम्स व राइबोफोरिन अनुपस्थित।
|
इनके
मुख्य घटक सिस्टर्नी हैं।
|
इनके मुख्य घटक नलिकायें हैं।
|
ये
प्रोटीन संश्लेषण के स्थलों पर पाई जाती हैं। उदाहरण - अग्न्याशयी
कोशिकाऐं, यकृत कोशिकाऐं।
|
ये वसा व ग्लाइकोजन के उपापचय स्थलों पर पाई
जाती हैं। उदाहरण -
एडीपोज (वसा ऊत्तक) कोशिकाऐं, लीवर की
ग्लाइकोजन संग्रहित करने वाली कोशिकाऐं।
|
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका के कार्य (Functions
of Endoplasmic reticulum) -
* यह कोशिका का अन्तःकंकाल बनाती हैं।
* पदार्थों का परिवहन व विनिमय करना।
* प्लाज्मोडेस्मेटा की डेस्मोट्यूब्यूल्स का
निर्माण करना।
* पादप कोशिका विभाजन के दौरान कोशिका पट्टिका का
निर्माण करना।
* खुरदरी अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका प्रोटीन
संश्लेषण के लिए स्थल प्रदान करती हैं।
* सभी कोशिकांगों की झिल्लियाँ खुरदरी
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका के द्वारा बनती हैं। यहाँ तक कि केन्द्रक झिल्ली का
निर्माण भी यहीं करती हैं।
* चिकनी अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका वसा व स्टेरॉइड
संश्लेषण करती हैं।
* चिकनी अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका वसा व ग्लाइकोजन
के उपापचय में भाग लेती हैं।
* माँसपेशियों में पाई जाने वाली चिकनी
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका को सारकोप्लाज्मिक रेटिकुलम (Sarcoplasmic
reticulum) कहा जाता हैं, जो माँसपेशी संकुचन
में सहायक हैं।
2. गॉल्जीकाय (Golgi body) -
गॉल्जीकाय की खोज ‘कैमिलो
गॉल्जी’ (Camillo Golgi) ने उल्लू की तंत्रिका कोशिकाओं में
की थी। गॉल्जीकाय प्रोकेरियोट्स में अनुपस्थित होते हैं, केवल
यूकेरियोट्स में पाए जाते हैं। गॉल्जीकाय के चारों तरफ एक निश्चित क्षेत्र में कोई
कोशिकांग नहीं पाया जाता हैं, इसे ‘जोने
ऑफ एक्सक्ल्यूजन’ (Zone of exclusion) कहा जाता हैं।
गॉल्जीकाय की संरचना में 4 घटक पाए जाते हैं –
Ⅰ.
सिस्टर्नी (Cisternae) -
यह अशाखित, चपटी, वक्रित नलिकाऐं हैं, जिनके सिरे फूले होते हैं।
इसमें एक निश्चित ध्रुवता पाई जाती हैं। इसकी शुरूआती सतह केन्द्रक की ओर व दूरस्थ
सतह कोशिका झिल्ली की तरफ होती हैं।
Ⅱ.
नलिकायें (Tubules) -
यह शाखित, अनियमित नलिकाऐं
हैं।
Ⅲ.
रिक्तिकाऐं (Vacoules) -
ये बड़ी गोल संरचनाऐं हैं।
Ⅳ.
आशय (Vesicles) -
ये नलिकाओं के मुकुलन से बनते हैं तथा छोटी व गोल
संरचनाऐं हैं। ये पदार्थों के स्त्रावण में सहायक होती हैं।
गॉल्जीकाय को निम्न नाम दिए गए हैं
(Other names of Golgi body) -
* डॉल्टन कॉम्पलेक्स
* गॉल्जी जटिल
* डिक्टियोसोम (पादपों में सिस्टर्नी आपस में
अर्न्तसंबंधित नहीं होती)
* लिपोकॉन्ड्रिया (वसा की अधिकता के कारण)
गॉल्जीकाय भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में भिन्न-भिन्न आकार
व संरचनाऐं दर्शाते हैं।
गॉल्जीकाय के कार्य (Functions
of Golgi body) -
* स्त्रवण - इसमें प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, परिवहन व स्त्रवण करना आदि पद सम्मिलित
हैं। वसा व प्रोटीनें जो कि अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका द्वारा बनती हैं, गॉल्जीकाय के सिस सतह द्वारा ग्रहण की जाती हैं। यहाँ इनकी प्रोसेसिंग की
जाती हैं। प्रोसेसिंग के दौरान वसा व प्रोटीन्स में कार्बोहाइड्रेट जोड़े जाते हैं,
जिससे क्रमशः ग्लाइकोलिपिड व ग्लाइकोप्रोटीन बनते हैं। इस प्रक्रिया
को ग्लाइकोसाइलेशन या ग्लाइकोसाइडेशन (Glycosylation or Glycosidation) कहा जाता हैं।
* सभी वृहद् अणु कोशिका से बाहर गॉल्जीकाय से होकर
गुजरते हैं। अतः इसे ‘मिडिल मेन ऑफ सेल’ (Middle men
of cell) या ‘प्रिंसिपल डायरेक्टर ऑफ
मैक्रोमॉल्यीक्यूलर ट्रैफिक’ (Principle director of macromolecular
traffic) भी कहा जाता हैं।
* लाइसोसोम का निर्माण - गॉल्जीकाय व
अन्तःप्रर्द्रव्यी जालिका समन्वित रूप से लाइसोसोम का निर्माण करती हैं।
* कोशिका भित्ति के पॉलीसैकेराइड्स का निर्माण।
* पादप कोशिका विभाजन के दौरान कोशिका पट्टिका का
निर्माण।
* शुक्राणु के एक्रोसोम का निर्माण।
3. लाइसोसोम्स (Lysosomes) -
लाइसोसोम की खोज ‘क्रिस्टियन डी डवे’
(Christian de Duve) ने की। लाइसोसोम सभी जंतु कोशिकाओं में पाए
जाते हैं। (अपवाद - लाल रक्त कणिकाऐं।) पादप कोशिकाओं में जंतु कोशिकाओं की तुलना
में कम लाइसोसोम पाए जाते हैं, क्योंकि पादप कोशिकाओं में एक
बड़ी केन्द्रीय रिक्तिका पाई जाती हैं, जो लाइसोसोम के समान
कार्य करती हैं। लाइसोसोम्स प्रोकेरियाट्स में अनुपस्थित होते हैं। अतः इनका कार्य
परिझिल्लिय अवकाश में उपस्थित एंजाइम्स के द्वारा किया जाता हैं।
लाइसोसोम की संरचना
(Structure of lysosome) -
ये एकल झिल्ली बंधित कोशिकांग हैं। इनमें लगभग 50 प्रकार के जल अपघटनी एंजाइम पाए
जाते हैं। लाइसोसोम्स के जल अपघटनी एंजाइम अम्लीय पीएच 5 पर
कार्य करते हैं। लाइसोसोम की झिल्ली कोलेस्ट्रॉल, हिपेरीन
जैसे कुछ पदार्थों के कारण प्रबल होती हैं, इन्हें झिल्ली
स्थायी कारक कहा जाता हैं। स्टीरॉइडल सेक्स हॉर्मोन, पराबैंगनी
किरणें, एक्स-किरणें, पित्त लवणों व
वसा में घुलित प्रोटीन्स के द्वारा लाइसोसोम की झिल्ली कमजोर हो जाती हैं, इन्हें झिल्ली अस्थाई कारक कहा जाता हैं। लाइसोसोम्स बहुरूपी कोशिकांग हैं,
जो एक ही कोशिका में भिन्न-भिन्न कार्य की भूमिका निभाते हैं।
लाइसोसोम्स के प्रकार (Types
of lysosomes) -
लाइसोसोम्स निम्न 4 प्रकार के
होते हैं -
Ⅰ.
प्राथमिक लाइसोसोम (संग्रही कणिकाऐं) [Primary lysosome] -
ये छोटे आशयों के समान नवनिर्मित संरचनाऐं हैं। इनकी
उत्पत्ति गॉल्जीकाय के ‘ट्रांस सतह’ से
होती हैं। इनमें निष्क्रिय एंजाइमों का संग्रहण होता हैं।
Ⅱ.
द्वितीयक लाइसोसोम (पाचक रसधानी) [Heterophagosome] -
फैगोसाइटोसिस के द्वारा कोशिका बाह्य कणों या बाह्य
खाद्य पदार्थों को ग्रहण करती हैं। फैगोसाइटोसिस के द्वारा निर्मित इस संरचना को
फैगोसोम (Phagosome) कहा जाता हैं। फैगोसोम प्राथमिक लाइसोसोम के साथ संलयित होकर
हेटरोफैगोसोम या द्वितीयक लाइसोसोम बनाती हैं। यह सक्रिय लाइसोसोम हैं।
Ⅲ.
तृत्तीयक लाइसोसोम (अवशेषी काय) [Telolysosome] -
हेटरोफैगोसोम के द्वारा पाचन होने के बाद शेष अपचित
पदार्थों की थैलियाँ तृत्तीयक लाइसोसोम या अवशेषी काय कहलाती हैं। इन अपचित
पदार्थों को एक्सोसाइटोसिस या इफैगी (Ephagy) के द्वारा
बाहर निकाल दिया जाता हैं। कुछ कोशिकाओं में इन अपचित पदार्थों को कोशिका के बाहर
मुक्त नहीं किया जाता, जिससे ये कोशिकाऐं कुछ समय बाद ओवरलोड
होकर जीर्ण हो जाती हैं। उदाहरण - यकृत कोशिका, मांसपेशी
कोशिका। इसके कारण ‘पॉलीनेफ्राइटिस’ (Poly-nephritis)
रोग हो सकता हैं। लाइसोसोम की कार्य क्षमता में कमी के कारण जोड़ों
में अर्थ्रराइटिस, गठिया और फेंफड़ों में लंगफाइब्रोसिस (Lung
fibrosis) इत्यादि रोग हो जाते हैं। लाइसोसोमल एंजाइम्स की कमी के
कारण कुछ आनुवंशिक या जन्मजात रोग भी हो सकते हैं।
Ⅳ.
स्वभक्षी लाइसोसोम (Autophagosome) -
किसी वृद्ध/मृत्त/क्षतिग्रस्त या निष्क्रिय कोशिका को
कई प्राथमिक लाइसोसोम चारों ओर से घेर लेते हैं तथा स्वभक्षी लाइसोसोम का निर्माण
होता हैं,
जो उस कोशिका को पचाकर नष्ट कर देते हैं।
लाइसोसोम के कार्य (Functions
of lysosome) -
* अतिरिक्त कोशिकीय व अन्तःकोशिकीय पाचन ।
* अस्थि निर्माण (Osteogenesis) -
अस्थियों की ऑस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में लाइसोसोमल एंजाइम पाए जाते हैं, जो एक अनियमित अस्थि को एक नियमित अस्थि में बदलते हैं।
* कायांतरण - मेंढ़क
के टेडपोल लारवा का वयस्क मेंढ़क में बदलना कायांतरण कहलाता हैं। इस प्रक्रिया के
दौरान लाइसोसोम के ‘केथेप्सिन’ (Cathepsin) एंजाइम के द्वारा टेडपोल की पूँछ को पचा दिया जाता हैं।
* हेटरोफैगी (Heterophagy) -
बाह्य कणों (जीवाणु इत्यादि) का ल्यूकोसाइट्स व भक्षाणुओं के द्वारा जल अपघटित
होना,
हेटरोफैगी कहलाता हैं।
* स्वभक्षण (Autophagy) -
शरीर की वृद्ध व मृत्त कोशिकाओं का लाइसोसोम्स के द्वारा पाचन स्वभक्षण कहलाता
हैं। उदाहरण - एक भूखे प्राणी को संग्रहित भोजन का पाचन कर भोजन उपलब्ध करवाया
जाता हैं।
* क्राइनोफैगी (Crinophagy) -
अन्तःस्त्रावी ग्रंथियों की स्त्रावी कणिकाओं का पाचन क्राइनाफैगी कहलाता हैं।
उदाहरण के लिए थायरोक्सिन हॉर्मोन का निर्माण, थायरोग्लोब्यूलिन
के पाचन से होता हैं।
* स्वलयन (Autolysis) -
लाइसोसोम के द्वारा स्वयं की कोशिका का पाचन स्वलयन कहलाता हैं। कभी-कभी कुछ
आकस्मिक कारणों के कारण लाइसोसोम्स कोशिका के अन्दर भी फट जाते हैं तथा इनसे मुक्त
जल अपघटनी एंजाइम स्वयं की ही कोशिका की कोशिका झिल्ली को पचा जाते हैं।
लाइसोसोम्स के इसी गुण के कारण इन्हें कोषिका की आत्मघाती थैलियाँ (Suicidal
bags) कहा जाता हैं।
* शुक्राणु के एक्रोसोम का निर्माण गॉल्जीकाय के
द्वारा होता हैं। परंतु इसमें उपस्थित पाचक एंजाइम लाइसोसोम से ही संबंधित हैं।
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