Plastid शब्द ‘हेकल’ ने दिया। लवक के विभिन्न प्रकार ‘शिम्पर’ ने बताऐं।
पादप कोशिका का सबसे बड़ा कोशिकांग लवक हैं। एक कोशिका में पाए जाने वाले समस्त
लवकों को ‘प्लास्टीडोम’
(Plastidome) कहा जाता हैं। वर्णकों की उपस्थिति के आधार पर
लवक 3 प्रकार के होते हैं -
1.हरितलवक
2. वर्णीलवक
3. अवर्णीलवक
1.हरितलवक (Chloroplast) -
भिन्न-भिन्न पादप जातियों में भिन्न-भिन्न आकृति के
हरितलवक पाए जाते हैं। सबसे सामान्य आकृति लैंस आकृति हैं। विभिन्न आकृतिया जैसे-
लैंस आकृति (उच्च पादपों में), मेखलाकृति (यूलोथ्रिक्स में),
सर्पिलाकृति (स्पाइरोगाइरा में), कप आकृति
(क्लेमाइडोमोनास में)। हरितलवक की लंबाई 5-10 µM व चौडाई 2-4
µM होती हैं। भिन्न-भिन्न पादप जातियों में हरितलवकों की संख्या भी
भिन्न-भिन्न होती हैं। उदाहरण- एक- क्लेमाइडोमोनास, यूलोथ्रिक्स,
क्लोरेला।
दो- जिग्निमा में।
एक से 16 - स्पाइरोगाइरा
में।
20 से 40 - उच्च पादपों में।
हरितलवक की संरचना
(Structure of chloroplast) –
यह दोहरी झिल्लीयुक्त कोशिकांग हैं। इसकी बाह्य
झिल्ली में पोरीन (Porin) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं
तथा यह आंतरिक झिल्ली की तुलना में अधिक स्थायी होती हैं। आंतरिक झिल्ली बाह्य
झिल्ली की तुलना में अधिक चयनात्मक पारगम्य होती हैं। हरितलवक की संरचना में दो
मुख्य भाग हैं -
Ⅰ.ग्रेना
Ⅱ. स्ट्रोमा
Ⅰ.ग्रेना (Grana) -
ग्रेना एक झिल्लीयुक्त तंत्र हैं, जो थायलेकॉइड्स (Thylakoids) के द्वारा बना होता
हैं। थायलेकॉइड शब्द ‘मेन्के’
(Menke) ने दिया। ग्रेना के थायलेकॉइड में प्रकाश संश्लेषण
की प्रकाशिका अभिक्रिया होती हैं। थायलेकॉइड्स की गुहा में जल का प्रकाशिक अपघटन
होता हैं। अतः यहीं पर ऑक्सीजन मुक्त होती हैं। छोटे थायलेकॉइड्स एक-दूसरे के ऊपर
जमे रहते हैं तथा एक के ऊपर एक जमे हुए सिक्कों की तरह नजर आते हैं। C4 पादपों में ग्रेना रहित हरितलवक भी पाए जाते हैं। C4 पादप - बाजरा आदि।
एक
हरितलवक में 40-60 ग्रेना पाए जाते हैं तथा एक ग्रेना में 2-100 थायलेकॉइड्स पाए जाते हैं। थायलेकॉइड की झिल्ली में पाई जाने वाली छोटी
कणिकीऐं संरचनाऐं क्वान्टासोम्स (Quantasomes) कहलाती हैं।
क्वान्टासोम्स की खोज ‘पार्क व
बिगिन्स’ (Park & Baggins) ने की। प्रत्येक
क्वान्टासोम में 230 पर्णहरित अणु व 50
कैरोटिनोइड्स (Karotinoids) पाए जाते हैं। दो ग्रेना आपस में
स्ट्रोमा लैमिली (Stroma lamellae) या फ्रैट चैनल से जुड़े
रहते हैं। इन्हें बड़े थायलेकॉइड भी कहा जाता हैं।
Ⅱ.
स्ट्रोमा (Stroma) -
हरितलवक का तरल भाग स्ट्रोमा कहलाता हैं। इसमें 70s राइबोसोम्स, द्विसूत्री वृत्ताकार DNA, कार्बोहाइड्रेट कणिकाऐं व एंजाइम्स इत्यादि पाए जाते हैं। स्ट्रोमा में
प्रकाश संश्लेषण की अप्रकाशिक अभिक्रिया या कैल्विन चक्र (Calvin cycle) चलता हैं।
हरितलवकों को भी कोशिका में कोशिका व
अर्द्धस्वायतशासी कोशिकांग (Semi-autonomous cell organelle)
कहा जाता हैं, क्योंकि इसमें प्रतिकृतिकरण के लिए स्वयं के
न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन संश्लेषण के लिए स्वयं के 70s राइबोसोम्स
पाए जाते हैं। परंतु कच्चे पदार्थ के लिए यह कोशिकाद्रव्य व केन्द्रक पर निर्भर
करता हैं। इन्हें भी जीवाण्विक अन्तः सहउत्पत्ति के रूप में माना जाता हैं,
क्योंकि -
* इसमें 70s राइबोसोम व
न्यूक्लिक अम्ल पाए जाते हैं।
* इसकी झिल्ली जीवाण्विक कोशिका झिल्ली के समान
हैं।
* यह द्विविभाजन द्वारा दो भागों में बँट सकता हैं।
एक नए हरितलवक की उत्पत्ति पूर्व स्थित हरितलवक से ही
होती हैं।
हरितलवक के कार्य
(Functions of chloroplast) -
* प्रकाश संश्लेषण - इस प्रक्रिया के द्वारा प्रकाश
ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा (ग्लूकोज) में बदला जाता हैं। यह द्विपदीय अभिक्रिया हैं
- अ. प्रकाशिक अभिक्रिया (ग्रेना में), ब. अप्रकाशिक
अभिक्रिया (स्ट्रोमा में)।
* वातावरण में ऑक्सीजन व कार्बनडाईऑक्साइड का
संतुलन बनाए रखना।
* स्टार्च के रूप में कार्बोहाइड्रेट संग्रहण।
* यह कोशिका द्रव्यी वंशागति में भाग लेते हैं।
2. अवर्णीलवक (Leucoplast) -
ये रंगहीन होते हैं, इनमें वर्णक
अनुपस्थित होते हैं। ये सामान्यतया भूमिगत पादप भागों में पाए जाते हैं। इनकी
संरचना में ग्रेना अनुपस्थित होते हैं। इनका प्रमुख कार्य भोजन संग्रहण हैं।
संग्रहित भोजन के प्रकार के आधार पर ये तीन प्रकार के होते हैं -
Ⅰ.एमाइलोप्लास्ट (Amyloplast) - स्टार्च या कार्बोहाइड्रेट का संग्रहण।
Ⅱ. एल्यूरोप्लास्ट (Aleruoplast) - प्रोटीन का संग्रहण। इन्हें प्रोटीनोप्लास्ट भी कहा जाता हैं।
Ⅲ. इलियोप्लास्ट (Elaioplast) - वसा व तेल का संग्रहण। इन्हें ओलियोसोम (Oleo-some) भी कहा जाता हैं।
3. वर्णीलवक (Chromoplast) -
इनमें रंगीन वर्णक पाए जाते हैं, जो फूलों व फलों के रंग के लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण -
जैन्थोफिल -
पीला रंग।
कैरोटीन - गाजर का
लाल रंग।
लाइकोपीन - टमाटर
का लाल रंग।
सभी लवक एक से दूसरे लवक में अन्तरपरिवर्तित हो सकते
हैं,
क्योंकि इनका आनुवंशिक पदार्थ एकसमान होता हैं। परंतु वर्णीलवक कभी
भी हरितलवक में परिवर्तित नहीं होता।
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