माइटोकॉन्ड्रिया जंतु कोशिका का सबसे बड़ा व पादप
कोशिका का दूसरा सबसे बड़ा कोशिकांग हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम ‘कोलीकर’ (Kolliker) ने कीटों की रेखित
पेशियों में प्रेक्षित किया।
बाहरी
झिल्ली रहित माइटोकॉन्ड्रिया - माइटोप्लास्ट कहलाता हैं। माइटोकॉन्ड्रिया की खोज
का श्रेय ‘अल्टमान व फ्लेमिंग’
(Altman & Fleming) को जाता हैं। अल्टमान ने इन्हें ‘बायोप्लास्ट’ (Bioplast) कहा। बाद में ‘बेन्डा’
(Benda) ने माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) शब्द दिया।
माइटोकॉन्ड्रिया को हिन्दी में ‘सूत्रकणिका’
भी कहा जाता हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया सामान्यतः बेलनाकार होते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया की संख्या भिन्न-भिन्न कोशिकाओं में अलग-अलग होती हैं। अधिक
सक्रिय कोशिकाओं में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं। जंतुओं में पक्षियों की
उड़न पेशियों में सर्वाधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं। पादपों की तुलना में जंतु
कोशिकाओं में अधिक माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना
(Structure of mitochondria) –
एक कोशिका में उपस्थित सभी माइटोकॉन्ड्रिया, ‘कोन्ड्रियोम’ (Chondriome) कहलाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया एक दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग हैं।
सूत्रकणिकीय झिल्लियाँ वसा व प्रोटीन की बनी होती हैं। बाह्य झिल्ली में 60 प्रतिशत प्रोटीन व 40 प्रतिशत वसा पाई जाती हैं।
इसमें मुख्यतया फास्फोटाइडिल कोलिन (लेसिथिन) व कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी मोटाई लगभग 60-75 Å होती हैं। आंतरिक झिल्ली में 80 प्रतिशत प्रोटीन
व 20 प्रतिशत वसाऐं होती हैं। इसमें बाह्य झिल्ली की तुलना
में डाइफास्फोटाइडिल ग्लिसरॉल कार्डिलिपिड्स व प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती
हैं। ये भी लगभग 60-75 Å मोटी होती हैं।
प्रोटीन की अधिक मात्रा पाए जाने के कारण आंतरिक
झिल्ली अधिक चयनात्मक पारगम्य होती हैं तथा मैट्रिक्स का संघटन यही निर्धारित करती
हैं।
बाहरी व अंातरिक झिल्ली के मध्य अवकाश को
परिमाइटोकॉन्ड्रियल अवकाश कहते हैं यह 80-100 Å चौड़ा होता
हैं। इसमें एसीटाइल कोएन्जाइम-ए के संश्लेषी एंजाइम पाए जाते हैं। आंतरिक झिल्ली
से मैट्रिक्स की तरफ निकले अंगुलीसमान प्रवर्ध क्रिस्टी कहलाते हैं। क्रिस्टी की
संख्या भिन्न-भिन्न माइटोकॉन्ड्रिया में भिन्न-भिन्न होती हैं। अधिक सक्रिय
माइटोकॉन्ड्रिया में इनकी संख्या अधिक व कम सक्रिय माइटोकॉन्ड्रिया में इनकी
संख्या कम होती हैं। क्रिस्टी पर पाई जाने वाली टेनिस के रेकेट के समान संरचनाएं ऑक्सीसोम (Oxysome) या एफ-1 कण या Particles of Fernandez &
Moran कहलाते हैं। ऑक्सीसोम के तीन भाग होते हैं - आधार, तंतु, शीर्ष ।
शीर्ष
भाग में एटीपी संश्लेषण हेतु एटीपेज एंजाइम पाया जाता हैं। ऑक्सीसोम के आधार व
आंतरिक झिल्ली में ETS ( Electron Transport Series) के
एंजाइम पाए जाते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में उपस्थित तरल भाग माइटोकॉन्ड्रियल
मैट्रिक्स कहलाता हैं। इसमें निम्न अवयव पाए जाते हैं -
* 70s राइबोसोम,
* द्विसूत्री वृताकार नग्न डीएनए (DNA),
* आरएनए (t-RNA, m-RNA, r-RNA),
* घुलनशील प्रोटीन
* वसा
* कार्बोहाइड्रेट
* अकार्बनिक अणु
मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र के एंजाइम पाए जाते हैं।
अपवाद - सक्सिनेट डिहाइड्रोजिनेज एंजाइम माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली में
पाया जाता हैं।
क्रिस्टी
मैट्रिक्स को कई भागों में बाँटती हैं। माइटोकॉन्ड्रिया में स्वयं के न्यक्लिक
अम्ल व 70s राइबोसोम पाए जाते हैं, जिससे
यह स्वयं का निर्माण व आवश्यक एंजाइमों का निर्माण कर सकता हैं, परंतु इस कार्य के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ के लिए यह केन्द्रक व कोशिका
द्रव्य पर निर्भर करता हैं। अतः इसे अर्धस्वायत्तशासी
कोशिकांग (Semi-autonomous cell organelle) भी कहते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका में कोशिका की संज्ञा भी दी जाती
हैं।
माइटोकॉन्ड्रिया के कार्य
(Functions of mitochondria) -
1.माइटोकॉन्ड्रिया एटीपी (ATP) संश्लेषण करता हैं। एटीपी हमारे शरीर की ऊर्जा इकाई हैं। अतः
माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्तिगृह भी कहते हैं।
2. माइटोकॉन्ड्रिया वायवीय श्वसन का स्तर हैं। यहाँ
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण होता हैं। कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन्स का ऑक्सीकरण तथा
वसाओं का बीटा-ऑक्सीकरण होता हैं।
3. यह अण्डे में पीतक (Yolk)
निर्माण का कार्य भी करता हैं।
4. पर्णहरित (Chlorophyll), साइटोक्रोम
(Cytochrome), पीरिमिडिन्स (Pyrimidines)
इत्यादि के संश्लेषण हेतु मध्यवर्ती पदार्थ उपलब्ध कराता हैं।
5. अमीनों अम्ल व वसीय अम्लों का संश्लेषण करता
हैं।
6. ये कोशिका द्रव्यी वंशागति में भाग लेते हैं,
क्योंकि इनमें द्विसूत्री वृत्ताकार डीएनए (DNA) पाया जाता हैं।
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