अम्लता व क्षारकता की जानकारी होने पर हम दैनिक जीवन
की कई समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। जैसे कि -
1.उदर में अम्लता (Acidity in stomach) –
इस की शिकायत होने पर उदर में जलन व दर्द का अनुभव
होता हैं। इस समय हमारे उदर में जठर रस जिसमें कि हाइड्रोक्लोरिक
अम्ल (HCl) होता हैं, अधिक मात्रा में बनता है, जिससे उदर में जलन और दर्द
होता हैं। इससे राहत पाने के लिए एण्टाएसिड (Antacid)
अर्थात् दुर्बल क्षारकों जैसे- मिल्क
ऑफ मैग्नीशिया [Mg(OH)2] का प्रयोग किया जाता हैं। यह उदर में अम्ल की अधिक मात्रा को उदासीन कर
देता हैं।
2. दंत क्षय (Tooth decay) –
मुख की पीएच (pH) साधारणतया 6.5 के करीब होती हैं। खाना खाने के पश्चात्
मुख में उपस्थित बैक्टीरिया दाँतों में लगे अवशिष्ट भोजन से क्रिया करके
अम्ल उत्पन्न करते है, जो कि मुख की pH
कम कर देते हैं। pH का मान 5.5 से कम
होने पर दाँतों के इनैमल का क्षय होने लग जाता है। अतः भोजन के बाद दंतमंजन या
क्षारीय विलयन से मुख की सफाई अवश्य करनी चाहिए ताकि दंतक्षय पर नियंत्रण पाया जा
सके।
3. कीटो का डंक (Insects’ sting) –
मधुमक्खी, चींटी या मकोड़ें
जैसे किसी भी कीट का डंक हो, ये डंक में अम्ल स्त्रावित करते
हैं, जो हमारी त्वचा के सम्पर्क में आता हैं। इस अम्ल के
कारण ही त्वचा पर जलन व दर्द होता हैं। यदि उसी समय क्षारकीय लवणों जैसे - सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट (NaHCO3) का प्रयोग उस स्थान
पर किया जाए तो अम्ल का प्रभाव उदासीन हो जाएगा।
4. अम्ल वर्षा (Acid rain) –
वर्षा जल शुद्ध माना जाता हैं परन्तु प्रदूषकों के
कारण आजकल इसकी pH कम होने लगी हैं। इस प्रकार की
वर्षा को अम्लीय वर्षा कहते हैं। यह वर्षाजल नदी से लेकर खेतों की मिट्टी तक को
प्रभावित करता हैं। इस प्रकार इससे फसल, जीव से लेकर पूरा
पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होता है। प्रदूषकों पर नियंत्रण रखकर अम्लीय वर्षा को
नियंत्रित किया जा सकता हैं।
5. मृदा की pH (pH of soil) –
मृदा की pH का मान ज्ञात करके
मिट्टी में बोयी जाने वाली फसलों का चयन किया जा सकता है तथा उपयुक्त उर्वरक का
प्रयोग निर्धारित किया जाता है, जिससे अच्छी फसल की प्राप्ति
होती हैं।
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