आनुवंशिक लक्षण :- सजीवों के वे लक्षण जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रसारित होते है, आनुवंशिक लक्षण कहलाते हैं।
आनुवंशिकी (Genetics) :- यह जीव विज्ञान की एक शाखा है, जिसके अन्तर्गत वंशागति एवं विविधता दोनों का अध्ययन किया जाता है। वंशागति आनुवंशिकी का आधार है। Genetics शब्द का प्रतिपादन बेट्सन ने किया।
तद्रूप-प्रजनन-सम वंशक्रम (True Breeding) :- वह वंशक्रम जो कई पीढ़ीयों तक स्वपरागण के कारण स्थायी विशेषक प्रदर्शित करता है। उदाहरण- मेण्डल द्वारा अपने प्रयोग में प्रयुक्त मटर के चिकने या झुर्रीदार बीज, पीले या हरे बीज, फूली या सिकुडी हुई फलियाँ, हरी या पीली फलियाँ, लंबे या बौने पौधे।
जनक पीढ़ी (Parental Generation) :- संतति प्राप्त करने के लिए जिन पादपों के मध्य संकरण करवाया जाता है, जनक पीढ़ी कहलाते है।
प्रथम संतति पीढ़ी (First Filial Generation) :- अलग-अलग लक्षणों वाले पैतृकों के संकर से उत्पन्न पीढ़ी, प्रथम संतति पीढ़ी कहलाती है। इसका प्रयोग सामान्यतः चयनात्मक प्रजनन में किया जाता है।
F2 पीढ़ी (Second Filial Generation) :- प्रथम संतति पीढ़ी के स्वपरागण से उत्पन्न पीढ़ी, द्वितीय संतति पीढ़ी कहलाती है।
जीन (Gene) :- जनक से अपरिवर्तित रूप में युग्मकों (Gametes) के माध्यम से उत्तरोत्तर पीढ़ियों में अग्रसित होने वाला कारक जीन कहलाता है। जीन को आनुवंशिकता की इकाई भी कहा जाता है।
युग्म विकल्पी (एलील/Allele) :- विकल्पी विपरीत लक्षणों के जोड़े को युग्म विकल्पी कहा जाता है। ये एक ही जीन के थोड़ा सा भिन्न रूप होते है।
समयुग्मजी (Homozygous) :- जब युग्म विकल्पी समान लक्षणों वाले होते है, तो इसे समयुग्मजी कहा जाता है।
विषमयुग्मजी (Heterozygous) :- जब युग्म विकल्पी विपरीत लक्षणों वाले होते है, तो इसे विषमयुग्मजी कहा जाता है।
लक्षण प्ररूप (Phenotype) :- किसी जीव की बाह्य प्रतीति को लक्षण प्ररूप कहा जाता है। जैसे – लंबे पौधे समयुग्मजी (TT) या विषम युग्मजी (tt) हो सकते है।
जीन प्ररूप (Genotype) :- किसी जीव की आनुवंशिक संरचना को, जीन प्ररूप कहा जाता है। जैसे - मटर के लंबे पौधे का जीन प्ररूप TT या Tt हो सकता है।
पनेट वर्ग (Pannet Diagram) :- यह एक आरेख होता है, जिसकी सहायता से जनकों, द्वारा युग्मकों का उत्पादन, युग्मनजों का निर्माण, F1, F2 संतति पादपों को समझाया जा सकता है। इसे रेजीनाल्ड सी पनेट (Reginald C. Pannet) ने विकसित किया था।
परीक्षार्थ संकरण (Test Cross) :- इस प्रयोग में प्रभावी फीनोटाइप वाले जीव का अप्रभावी फीनोटाइप वाले जीव से संकरण करवाया जाता है, जिससे प्रभावी फीनोटाइप वाले जीव का जीनोटाइप ज्ञात हो जाता है।
पश्च संकरण (Back Cross) :- इस प्रयोग में F1 संतति का संकरण किसी भी जनक से करवाया जाता है।
व्युत्क्रम संकरण (Reciprocal Cross) :- वह संकरण जिसमे पहले A पादप को नर और B पादप को मादा माना जाता है, तथा दुसरे संकरण में A पादप को मादा एवम् B पादप को नर माना जाता है, व्युत्क्रम संकरण कहलाता है।
अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete Dominance) :- जब भिन्न लक्षणों वाले जीवों के मध्य संकरण से उत्पन्न जीव, पैत्तृक जीवों से भिन्न लक्षण या उनके मध्य का लक्षण प्रदर्शित करता है, तो इसे अपूर्ण प्रभाविता कहते है। जैसे:- स्नेपड्रेगन के लाल फूल वाली प्रजाति का सफेद फूल वाली प्रजाति के साथ संकरण करवाया जाता है, तो गुलाबी रंग के फूलों का उत्पन्न होना।
सहप्रभाविता (Co-Dominance) :- जब संतति पीढ़ी, पैत्तृकों के लक्षण सम्मिलित रूप से प्रदर्शित करतें है, तो इसे सहप्रभाविता कहते है। जैसे- मनुष्य में AB रक्त समूह।
एक संकर संकरण :- जब एक लक्षण में भिन्न जीवों के मध्य संकरण करवाया जाता है, तो इसे एक संकर संकरण कहलाता है।
द्वि संकर संकरण :- जब दो लक्षणों में भिन्न जीवों के मध्य संकरण करवाया जाता है, तो इसे द्वि संकर संकरण कहलाता है।
सहलग्नता (Lineage) :- दो जीनों का भौतिक संयोग या जुड़ा होना, सहलग्नता कहलाता है। या एक ही क्रामोसोम की जीन जोड़ियों का साथ होना, सहलग्नता कहलाता है।
पुनर्योजन:- अजनकीय जीन संयोजनों के उत्पादन को पुनर्योजन कहा जाता है।
लिंग-क्रोमोसोम (Allosome) :- वे क्रोमोसोम जो लिंग निर्धारण में भूमिका निभाते है, लिंग-क्रोमोसोम कहलाते है।
अलिंग-क्रोमोसोम (Autosome) :- लिंग-क्रोमोसोम के अतिरिक्त अन्य क्रोमोसोम अलिंग क्रोमोसोम कहलाते है।
नर विषमयुग्मकता (Male Heterogamy) :- जब नर द्वारा लिंग क्रोमोसोम के लिहाज से दो भिन्न प्रकार के युग्मकों का उत्पादन होता है, तो इसे नर विषमयुग्मकता कहते है। उदाहरणः- मनुष्य
मादा विषमयुग्मकता(Female Heterogamy) :- जब मादा द्वारा लिंग क्रोमोसोम के लिहाज से दो भिन्न प्रकार के युग्मकों का उत्पादन होता है, तो इसे मादा विषमयुग्मकता कहते है। जैसे:- पक्षी
उत्परिवर्तन (Mutation) :- उत्परिवर्तन वह क्रिया है, जो डीएनए अनुक्रम में बदलाव ला देती है, इसके परिणामस्वरूप जीव के जीनोटाइप और फीनोटाइप में परिवर्तन आ जाता है।
उत्परिवर्तजन (Mutagen) :- उत्परिवर्तनों को जन्म देने वाले रासायनिक और भौतिक कारक उत्परिवर्तजन कहलाते है।
बिंदु उत्परिवर्तन (Point Mutation) :- ऐसे उत्परिवर्तन जो डीएनए के एकल क्षार युग्म के परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते है, बिंदु उत्परिवर्तन कहलाते है। उदाहरण - सिकल सेल ऐनिमिया
फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन (Frame Shift Mutation) :- डीएनए के क्षार युग्मों के घटने-बढ़ने से उत्पन्न उत्परिवर्तन, फ्रेम शिफ्ट उत्परिवर्तन कहलाते है।
वंशावली विश्लेषण (Pedigree Analysis) :- एक विशेष लक्षण का पीढ़ी दर पीढ़ी विश्लेषण, वंशावली विश्लेषण कहलाता है।
मेंडलीय विकार :- ऐसे विकार जो एकल जीन के रूपांतरण या उत्परिवर्तन से निर्धारित किये जा सकते है, मेंडलीय विकार कहलाते है।
क्रोमोसोमीय विकार :- एक या अधिक क्रोमोसोमों की अनुपस्थिति, अधिकता या असामान्य विन्यास से उत्पन्न विकार, क्रोमोसोमीय विकार कहते है।
असुगुणिता (Aneuploidy) :- कोशिका विभाजन के समय क्रोमेटेड के विसंयोजन की अनुपस्थिति के कारण एक क्रोमोसोम की अधिकता या हानि, असुगुणिता कहलाती है।
बहुगुणिता (Polyploidy) :- कोशिका द्रव्य विभाजन न हो सकने के कारण क्रोमोसोम का एक पूरा समुच्चय अधिक होना, बहुगुणिता कहलाता है।
द्विअधिसूत्री (Tetrasomy) :- कभी-कभी व्यक्ति में क्रोमोसोम का एक अतिरिक्त जोड़ा शामिल हो जाता है, यह स्थिति द्विअधिसूत्री कहलाती है।
द्विन्यूनसूत्री (Nullsomy) :- क्रोमोसोम के एक जोड़े की कमी को द्विन्यूनसूत्री कहते है।
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