Skip to main content

जीवाणु जनित रोग (Bacterial Diseases)

1. तपेदिक या क्षय रोग (Tuberculosis or TB) -

इसे सामान्यतया टीबी कहते हैं।

रोगजनक (Pathogen) - माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Micro-bacterium tuberculosis)    

संचरण (Transmission) - वायु द्वारा।

लक्षण (Symptoms) - थकान लगना, शरीर का वनज कम होना, कफ के साथ रक्त आना, जुकाम तथा बुखार होना, छाती में दर्द रहना, आवाज भारी होना, ज्यादा चलने पर सांस फूलना, लसिका ग्रन्थि का फूलना, आहार नाल व फेंफड़ें प्रभावित।

रोग का प्रसार (Disease transmission) - टीबी रोगी के साथ सोने, बैठने, उठने, खाने-पीने से, कुपोषण से, संक्रमित पशु (गाय, बकरी) का दूध पीने से, संक्रमित व्यक्ति की उपयोग की गई वस्तुओं के उपयोग से, धूम्रपान, हुक्कापान व तम्बाकू सेवन से।

बचाव के उपाय (Precautions) - क्षय रोगी को अलग रखना, उसकी व्यक्तिगत वस्तुओं को अलग रखना, उचित समय पर टीकाकरण, कहीं भी नहीं थूकना, खांसते समय मुंह पर कपड़ा या रूमाल रखना चाहिए।

उपचार (Treatment) - उपचार हेतु स्ट्रेप्टोमाइसिन, विटामिन बी-कॉम्पलेक्स तथा आइसोनिएजिड उपयोगी औषधियां हैं। बचाव के लिए BCG (Bacillus Calmette Guerin) का टीका नवजात शिशु को लगाया जाता हैं।

 

2. हैजा (Cholera) 😷 -

रोगजनक (Pathogen) - विब्रियो कोलेरी (Vibrio cholerae)

संचरण (Transmission) - दूषित जल एवं भोजन द्वारा।

लक्षण (Symptoms) - उल्टियाँ होना, जलीय दस्त, माँसपेशियों में ऐंठन, शरीर में जल की कमी, बुखार, तेज प्यास लगना, जीभ का सूखना, आँखें धँसना, पेट तथा आंत में संक्रमण।

बचाव के उपाय (Precautions) - व्यक्तिगत स्वच्छता एवं अच्छी आदतों को अपनाना, भली भांति पके भोजन का सेवन, उबला पेयजल, टीकाकरण, मल-मूत्र, सड़ी-गली वस्तुओं के निस्तारण की उचित व्यवस्था, रोगी से दूर रहना।

उपचार (Treatment) - ORS जीवन रक्षक घोल पीना व दवाइयां लेना।

 

3. टाइफाइड (Typhoid) -

रोगजनक (Pathogen) - साल्मोनेला टाइफी (Salmonella typhi)

संचरण (Transmission) - जल द्वारा।

लक्षण (Symptoms) - छोटी आंत में संक्रमण, प्रतिदिन सिरदर्द तथा बुखार आना, दूसरे सप्ताह में बुखार अधिक, तीसरे व चौथे सप्ताह में बुखार कम, शरीर में दर्द, कब्ज, धीमा हृदय स्पंदन, जीभ के ऊपरी भाग में लाल चकते।

बचाव के उपाय (Precautions) - भोजन व जल को शुद्ध रखना, मल व अन्य दूषित पदार्थों का सही स्थान पर विसर्जन, भोजन को मक्खियों से बचाना, टाइफाइड होने पर टाइफाइड A तथा B का टीका लगवाना।

उपचार (Treatment) - रोगी को बुखार आने पर पूरा आराम, प्रतिजैविकों से उपचार चिकित्सक की निगरानी में दवाइयां लेना। टाइफाइड ज्वर की पुष्टि विडाल परीक्षण से हो सकती हैं।

मैरी मैलॉन (उपनाम टाइफाइड मैरी) पेशे से रसोईया थी और जो खाना वह बनाती थी उसके द्वारा वर्षों तक टाइफाइड वाहक के रूप में टाइफाइड फैलाती रहीं।

 

4. न्युमोनिया (Pneumonia) -

रोगजनक (Pathogen) - स्ट्रेप्टोकॉकस न्युमोनी और हीमोफिल्स इंफ्लुएंजी (Streptococcus pneumoni & Hemophilus influenzae)

संचरण (Transmission) - स्वस्थ मनुष्य को संक्रमण किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा छोड़े गए बिंदुकों (ड्रॉप्लेट्स) अथवा एयरोसॉल साँस द्वारा अंदर लेने से या संक्रमित व्यक्ति के बर्तन इस्तेमाल करने से भी हो जाता हैं।

लक्षण (Symptoms) - इस रोग में फुफ्फुस के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं। संक्रमण के फलस्वरूप वायुकोष्ठों में तरल भर जाता हैं, जिसके कारण सांस लेने में गंभीर समस्याऐं पैदा हो जाती हैं। ज्वर, ठिठुरन, खांसी और सिरदर्द आदि न्युमोनिया के लक्षण हैं। गंभीर मामलों में होंठ और हाथ की अंगुलियों के नाखूनों का रंग धूसर से लेकर नीला तक हो जाता हैं।

बचाव के उपाय (Precautions) - संक्रमित व्यक्ति द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों व अन्य वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। संक्रमित व्यक्ति से निश्चित दूरी बनाकर रखनी चाहिए। संक्रमित व्यक्ति को सांखते व छींकते समय रूमाल का उपयोग मुंह ढकने के लिए करना चाहिए।

उपचार (Treatment) - संक्रमित व्यक्ति को एंटीबैक्टीरियल दवाईयां लेनी चाहिए।

 

5. डिप्थीरिया (Diphtheria) -

यह शिशुओं में होने वाला भयानक रोग हैं, साथ ही वयस्कों में भी होता हैं।

रोगजनक (Pathogen) - कोरनिबैक्टीरियम डिप्थीरिआई (Corynebacterium diphtheriae)

संचरण (Transmission) - सामान्यतया रोगी व्यक्ति से सीधे सम्पर्क द्वारा, रोगी व्यक्ति के साथ खाने, पीने, सोने, चूमने से, मक्खियों द्वारा, रोगी के छींकने, खांसने व थूकने से वातावरण में जीवाणु फैलते हैं।

लक्षण (Symptoms) - यह जीवाणु कंठ या गले को प्रभावित करता हैं। बच्चों में आलस व सुस्ती आना, भूख कम लगना, बुखार आना, सिर दर्द, चक्कर आना, शरीर में तंत्रिका तंत्र, हृदय व फेंफड़ों को प्रभावित करना, नाक के स्त्राव के साथ रक्त आना, श्वासरोध के कारण मृत्यु भी हो सकती हैं।

बचाव के उपाय (Precautions) - रोगी व्यक्ति के संपर्क में नहीं आना चाहिए, स्वच्छ पानी का उपयोग करना चाहिए, रोगी के साथ खाना नहीं खाना चाहिए।

उपचार (Treatment) - शिशुओं में डीपीटी का टीका (DPT; Diphtheria Pertussis Tetanus)लगाया जाता हैं, जो डिप्थीरिया, काली खांसी व टिटेनस से सुरक्षा प्रदान करता हैं। एन्टीबायोटिक्स दवाईयां जैसे - पेनिसिलीन, एरिथ्रोमाइसिन आदि देनी चाहिए।

 

6. पीलिया (Jaundice) -

इस रोग के कारण यकृत रोगग्रस्त हो जाता हैं, जिसे हिपेटाइटिस रोग भी कहते हैं। इस रोग से व्यक्ति गंभीर रूप से पीलिया ग्रस्त हो जाता हैं।

रोगजनक (Pathogen) - लैप्टोस्पाइरा जीवाणु (Leptospira bacteria)

संचरण (Transmission) - यह संदूषित जल के उपयोग के कारण उत्पन्न होता हैं।

लक्षण (Symptoms) - यकृत अक्रिय होना, रक्त व ऊत्तकों में पित्त वर्णकों में वृद्धि होना, शरीर में कमजोरी आना, त्वचा पीली होना तथा यकृत्त रोगग्रस्त (लीवर सिरोसिस) हो जाता हैं।

बचाव के उपाय (Precautions) - जल को गर्म करके, छानकर उपयोग में लेना चाहिए।

उपचार (Treatment) - न्यू लिवफीट दवा दिन में दो बार लेनी चाहिए। हेपेटाइटिस B&C के टीके लगवाने चाहिए।

 

7. कुष्ठ रोग (Leprosy) -

रोगजनक (Pathogen) - माइक्रोबैक्टीरियम लेप्री (Micro-bacterium lepri)

संचरण (Transmission) - संक्रमित व्यक्ति के साथ लम्बे समय तक रहने से।

लक्षण (Symptoms) - त्वचा की संवेदनशीलता समाप्त होना, त्वचा पर रंगहीन धब्बे होना, संक्रमित स्थान की त्वचा मोटी होना, त्वचा का गलना, इसका प्रभाव तंत्रिका, त्वचा, अंगुलियों व पंजों पर पड़ता हैं।

उपचार (Treatment) - इसका निदान लेप्रोमीन टेस्ट द्वारा किया जाता हैं। कुष्ठ निवारण केन्द्रों पर रोगी का उपचार किया जाता हैं।

 

8. दस्त एवं पेचिश (Diarrhea) -

रोगजनक (Pathogen) - ई. कोलाई (Escherichia coli)

संचरण (Transmission) - विषाक्त भोजन एवं जल द्वारा।

लक्षण (Symptoms) - मल के साथ चिपचिपा पदार्थ स्रावित होना, उल्टी आना, आँतों में संक्रमण, बार-बार पतले दस्त आना, शरीर में पानी की कमी, चेहरा मुरझा जाना, पेट दर्द, सिर दर्द, कमजोरी, तेज प्यास लगना।

बचाव के उपाय (Precautions) - शौचालय साफ रखें, ,खाने-पीने की वस्तुओं को ढकना, स्वच्छता, पानी उबालकर, छानकर पीना, फलों को गर्म पानी से धोकर खिलाएं, रोगी के मल तथा उल्टी को तुरंत नष्ट करें खुला न छोड़ें।

उपचार (Treatment) - ओ.आर.एस. घोल, इलेक्ट्रोल, दवाईयां लेना।



 

Comments

Popular Posts

B.Sc Part-III Practical Records Complete PDF Free Download

ओर्निथिन चक्र (Ornithine cycle)

यकृत में अमोनिया से यूरिया बनाने की क्रिया भी होती हैं। यह एक जटिल रासायनिक प्रतिक्रिया है , जिसे ऑर्निथिन चक्र (Ornithine cycle) कहते हैं। इसी का नाम क्रेब्स-हैन्सेलेट (Krebs-Henslet cycle) चक्र भी हैं। यूरिया बनने की संपूर्ण प्रक्रिया एक चक्रीय प्रक्रिया हैं तथा इसमें अमोनिया , कार्बनडाइऑक्साइड एवं अमीनो अम्ल का समूह भाग लेते हैं। इसलिए ही इसे ‘ ऑर्निथीन-ऑर्जिनीन चक्र ’ (Ornithine-Arginine cycle) भी कहते हैं। यह निम्न पदों में पूरा होता हैं -   Ornithine cycle

पाचन की कार्यिकी (Physiology of Digestion)

1. मुखगुहा में पाचन (Digestion in mouth) - पाचन की प्रक्रिया यांत्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा सम्पन्न होती हैं। मुखगुहा के मुख्यतः दो कार्य होते हैं- (अ) भोजन को चबाना व (ब) निगलने की क्रिया।