यह सबसे बड़ी अंतःस्त्रावी ग्रन्थि हैं, जो ग्रीवा में ट्रेकीया के निकट स्थित होती हैं। ग्रन्थि दो लम्बे अण्डाकार पिण्डों की बनी होती हैं, ये दोनों पिण्ड संकीर्ण बैण्ड द्वारा जुड़े होते हैं, जिसे इस्थमस कहते हैं। यह अत्यधिक संवहनीय अंग हैं तथा इसमें अनेक गोलाकार या अण्डाकार कोश समान पुटिकाएँ होती हैं। कोशिकाएँ थायरॉइड पुटिका को आस्तरित करती है तथा दो थायरॉइड हॉर्मोन स्त्रावित होते हैं, जैसे- थायरॉक्सिन या टेट्राआयोडोथायरोनिन (T4) तथा ट्राईआयोडोथाइरोनिन (T3) । ये दोनों अमीनों अम्ल की आयोडिनेटेड अवस्थाएँ हैं, जो टाइरॉसिन कहलाती हैं तथा पुटिका के रन्ध्र में अर्द्ध तरल पदार्थ समान जैली के रूप में संग्रहित रहते हैं।
T3 अधिक सक्रिय तथा T4 की अपेक्षा कई गुणा सक्रिय होता हैं। थायरॉइड से मुख्यतया T4 स्त्रावित होता है तथा परिधीय ऊत्तक के अन्दर T3 में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण - यकृत।
थायरॉइड ही केवल एक ऐसी ग्रन्थि हैं, जो इसके स्त्रावी उत्पाद अधिक मात्रा में संग्रहित करती है तथा आयोडिन उपापचयन में भी भाग लेती हैं। जब आवश्यकता होती है, तो हॉर्मोन कॉलोइड से रक्त में स्त्रावित होते हैं।
थायरॉइड पुटिका के बीच में C-कोशिका या पेरापुटिकीय कोशिकाएँ उपस्थित होती हैं, जो केल्सिटोनिन (TCT) या पेरापुटिकीय हॉर्मोन स्त्रावित करती हैं। यह कैल्शियम समस्थैतिकता में भाग लेता हैं। यह हाइपोकेल्सेमिक तथा हाइपोफॉस्फेटेमिक होता हैं। पेराथॉर्मोन तथा कैल्सिटोनिन दोनों रक्त प्लाज्मा में कैल्सियम आयनों के रख-रखाव में सहायक हैं।
थायरॉइड हॉर्मोन के कार्य -
- थायरॉइड हॉर्मोन मुख्यतया शरीर की उपापचयी दर बढ़ाते हैं तथा ऊष्मा उत्पादन (केलोरिजेनिक प्रभाव) बढ़ाते हैं तथा BMR (आधारी उपापचयी दर) को बनाए रखते हैं।
- थायरॉइड हॉर्मोन शरीर ऊत्तक की वृद्धि को प्रमोट करते हैं तथा शारीरिक वृद्धि तथा मानसिक विकास को उद्दीपित करते हैं।
- ये ऊत्तक विभेदन को उद्दीपित करते हैं। इस क्रिया के कारण ये वयस्क मेंढ़कों में टेडपोल की मेटामोर्फोसिस प्रमोट करते हैं।
- न्यूरोट्रांसमीटर की कुछ क्रियाओं को बढ़ाते हैं।
- लाल रक्त कोशिका निर्माण की प्रक्रिया में सहायक हैं।
- वैद्युत अपघट्य संतुलन थायरॉइड हॉर्मोन द्वारा प्रभावित होता हैं।
थायरॉइड हॉर्मोन असंतुलन के कारण विकार -
1.हाइपोथायरॉडिज्म -
यह थायरॉइड की निष्क्रियता के कारण होता हैं तथा TRH या TSH आयोडिन की अपर्याप्त मात्रा के कारण भी हो सकता हैं। इसे निम्न प्रकारों में बांटा जा सकता हैं -
Ⅰ.क्रीटिनिज्म -
बाल्यावस्था में थायरॉइड स्त्रावण की विफलता से शरीर तथा मानसिक विकास धीमा होता हैं तथा उपापचयी दर घटती हैं। बच्चा शारीरिक रूप से स्थिर होता है तथा मानसिक रूप से विक्षिप्त तथा कम बुद्धिमान होता हैं। शरीर तापमान, हृदय दर तथा रक्त दाब सामान्य से कम होते हैं। रोगी का पेट घड़े समान, कबूतर समान सीना होता हैं तथा जीभ लटकी होती हैं। अन्य लक्षणों में पीलिया, कमजोरी, श्वसन संबंधी समस्याऐं तथा कब्ज सम्मिलित हैं। इसे रोग को क्रीटिनिज्म कहते हैं। थायरॉइड हॉर्मोन के आरम्भिक प्रबन्धन द्वारा सामान्य वृद्धि व विकास वापस हो सकता हैं।
Ⅱ. मिक्सेडीमा (गुल का रोग) -
वयस्कों में थायरॉइड हॉर्मोन की कमी मिक्सेडीमा करती हैं। रोगी में सूजी हुई प्रकटता होती हैं तथा सतर्कता, बुद्धि का अभाव होता हैं। रोगी निम्न उपापचयी दर, धीमी हृदय दर, निम्न शरीर तापमान तथा प्रजननशीलता में कमी से पीड़ित होता हैं। थायरॉइड हॉर्मोन का प्रबन्धन इन लक्षणों को कम कर देता हैं। यह सामान्यतया मादा में होते हैं।
Ⅲ. सरल घेंघा -
पर्वतीय क्षेत्रों में आयोडिन की कमी से थायरॉइड में अतिवृद्धि (आयोडिन न्यून घेंघा) होती हैं, जो क्रीटिनिज्म व मिक्सेडीमा के साथ-साथ होता हैं।
2. हाइपारथायरॉडिज्म -
Ⅰ.एक्जोफ्थेल्मिक घेंघा -
ग्रे का रोग या एक्जोफ्थेल्मिक घेंघे में थायरॉइड का प्रवर्धन नेत्रगोलक के उभरने के साथ होता हैं। प्रवर्धित थायरॉइड अतिसक्रिय हो जाती हैं तथा अधिक मात्रा में थायरॉइड हॉर्मोन स्त्रावित करती हैं। अतः घेंघा थायरॉइड अतिसक्रियता के लक्षणों के साथ सम्बन्धित है, जैसे - उच्च उपापचयी दर, तीव्र हृदय दर, शरीर तापमान में वृद्धि, क्षीणता, भय, चिडचिडापन तथा कांपना आदि।
यह मुख्यतया मादाओं में होता हैं। यह स्वप्रतिरक्षा विकार हैं, जिसमें व्यक्ति प्रतिरोधी उत्पन्न करता हैं, जो TSH की क्रिया की नकल करता हैं, किन्तु सामान्य ऋणात्मक फीड बेक नियन्त्रण द्वारा नियमित नहीं होता हैं।
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