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थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland)

यह कोमल द्विपालित संरचना हैं, जहाँ दोनों पालियाँ संयोजी ऊत्तक द्वारा एक के बाद एक जुड़ी होती हैं। यह 15 वर्ष के बच्चों में अधिकतम आकार के साथ स्तूपाकार होती हैं। इसका आकार इसके लिम्फॉइड घटक की कमी के कारण कम होता हैं। इसका भार बच्चे के जन्म के समय 15-20 ग्राम होता हैं, जो बाद में भी इतना ही रहता हैं।

          यह वयस्कों में गहरे लाल रंग की होती हैं तथा आयु के साथ पतली व स्लेटी हो जाती हैं तथा अन्त में एडिपोज ऊत्तक के इनफिल्ट्रेशन के कारण पीली हो जाती हैं।

 

थाइमस ढीले संयोजी ऊत्तक के केप्सूल द्वारा बाहर की ओर से आवरित होती हैं। इसके दो भाग बाहरी वल्कुट तथा आंतरिक मेड्युला होते हैं। चपटी उपकला कोशिका की बॉल हेसल की कणिकाऐं कहलाती हैं तथा मेड्युला में कही न कही होती हैं। थाइमोसाइट्स कुछ बी-लिम्फोसाइट्स के साथ होती हैं।

हॉर्मोन जो थाइमस ग्रन्थि द्वारा उत्पन्न होते हैं, थाइमोसिन कहलाते हैं। रक्त में स्त्रावित होने वाला थाइमोसिन सम्पूर्ण प्रतिरक्षी तंत्र पर उद्दीप्त प्रभाव डालता हैं। यह टी-लिम्फोसाइट्स का प्रवलम्बन तथा परिपक्वन प्रोमोट करता हैं। इसे “The throne of immunity” या टी-लिम्फोसाइट्स का प्रशिक्षण स्कूल भी कहते हैं।

 

थाइमस ग्रन्थि द्वारा थाइमोसिन हॉर्मोन का स्त्रावण किया जाता हैं, जिसे दो प्रकार का माना गया हैं - थाइमोसिन- तथा थाइमोसिन-। इस हॉर्मोन के निम्नलिखित कार्य हैं -

यह हमारी अर्जित प्रतिरक्षा के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाता हैं। (प्रतिरक्षा सजीव का वह विशिष्ट गुण हैं, जिसके द्वारा सजीव अपनी हानिकारक रोगाणुओं से सुरक्षा करता हैं।) इस हेतु थाइमोसिन हॉर्मोन बी-लिम्फोसाइट कोशिकाओं को परिपक्व टी-कोशिकाओं में परिवर्तित करता हैं। (बी-लिम्फोसाइट कोशिकाऐं वे लिम्फोसाइट कोशिकाऐं हैं, जिनका निर्माण अस्थि मज्जा में होता हैं।)

थाइमोसिन हॉर्मोन तंत्रिकीय-पेशीय संधियों पर एसिटाइल कोलीन के स्त्रावण को घटाता हैं।

 

थाइमस से संबंधित रोग -

1.माइस्थेनिया ग्रेविस -

यह एक स्वप्रतिरक्षा रोग हैं, जिसमें थाइमोसिन हॉर्मोन का अतिस्त्रवण होता हैं, परंतु हॉर्मोन Hypo-functioning अवस्था में चला जाता हैं, जिसके फलस्वरूप सजीव के शरीर की कोशिकाओं हेतु प्रतिरक्षियों का निर्माण होने लगता हैं। मुख्यतः पेशीय कोशिकाओं हेतु। जिसके फलस्वरूप पेशियाँ शीर्ण होने लगती हैं तथा साथ ही साथ तंत्रिकीय-पेशीय संधि पर एसिटाइल कोलीन की मात्रा कम होने के कारण पेशीय संकुचन क्षमता में कमी आती हैं।

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