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जननांग तथा उनके हॉर्मोन (Reproductive organs & their hormones)

यौवनावस्था में नरों में वृषण तथा मादाओं में अण्डाशय लिंग हॉर्मोन स्त्रावित करते हैं। इनके हॉर्मोन निम्नानुसार हैं -

 

अन्तःस्त्रावी ग्रन्थि

 हॉर्मोन

 मुख्य कार्य

अण्डाशयी पुटिका

 एस्ट्रोजन

 मादा लैंगिक लक्षणों जैसे मादाओं की आवाज, प्युबिक रोमों का वितरण व विकास को उद्दीप्त करता हैं, अग्र पीयूष ग्रन्थि के गोनेडोट्रोपिक हॉर्मोन के साथ यह रज चक्र को भी नियमित करता हैं।

कॉर्पस ल्युटीयम

 प्रोजेस्टेरॉन तथा एस्ट्रोजन

 भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए गर्भाशयी अस्तर को उद्दीप्त करते हैं। दुग्ध स्त्रावण के लिए स्तन ग्रन्थियों को तैयार करते हैं तथा अण्डजनन को नियमित करते हैं। प्रोजेस्टेरॉन अण्डोत्सर्ग को संदमित करता हैं।

 

रीलेक्सिन

 प्युबिक सिम्फाइसिस को शिथिल करता हैं तथा गर्भावस्था के अन्त में गर्भाशयी ग्रीवा को फैलाने में सहायक हैं।

 

इनहिबिन/एक्टिन

 फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन तथा गोनेडोट्रोपिन रिलिजिंग हॉर्मोन उत्पादन का संदमन तथा सक्रियण।

वृषण

 टेस्टोस्टीरॉन

 वृषणों के उतरने तथा विकास के नर पैटर्न को उद्दीप्त करता हैं (जन्म से पहलें)। नर लैंगिक लक्षणों के विकास को उद्दीप्त करता हैं तथा द्वितीयक लैंगिक लक्षणों जैसे दाढ़ी मूँछ तथा निम्न ध्वनि तीव्रता की अभिव्यक्ति करता हैं तथा शुक्राणुजनन का उद्दीपन्न करता हैं।

 

इनहिबिन/एक्टिन

 ल्युटिनाइजिंग हॉर्मोन तथा फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन उत्पादन का सक्रियण तथा संदमन।

प्लेसेन्टा

 मानव कॉरियोनिक गोनेडोट्रोपिन

 कॉपर्स ल्युटीयम से प्रोजेस्टेरॉन स्त्राव को उद्दीप्त करता हैं तथा इसे बनाए रखता हैं।

 

मानव प्लेसेन्टल लेक्टोजन

स्तनीय वृद्धि को उद्दीप्त करता हैं।

 

उपर्युक्त हॉर्मोन्स से संबंधित रोग -

1.हाइपोगोनेडिज्म -

हाइपोथैलेमस पिट्युटरी या वृषण या अण्डाशय में विकार या चोट से हाइपोगोनेडिज्म होता हैं। नर हाइपोगोनेडिज्म अल्प एन्ड्रोजन उत्पादन की अवस्था हैं, (लेडिंग कोशिका का अल्प कार्य) जिसमें शुक्राणु निर्माण अल्प होता हैं। इसके परिणामस्वरूप द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास नहीं होता हैं। मादा हाइपोगोनेडिज्म से एस्ट्रोजन का अल्प स्त्रावण होता हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रजननिक चक्र बन्द हो जाता हैं। ऐसा हाइपोगोनेडिज्म पीयूष गोनेडोट्रोपिन की अल्पता या प्राथमिक टेस्टिक्युलर/अण्डाशय विफलता का परिणाम हैं।

 

2. अकालपक्व यौवनारम्भ -

यह लड़कियों में 9 वर्ष की आयु से पहले अण्डाशयों का परिपक्वन व लड़कों में 10 की आयु से पहले वृषणों का परिपक्वन हैं। लैंगिक कूट अकालपक्वता एड्रीनल वल्कुट, वृषण, अण्डाशय से लैंगिक हॉर्मोन की अधिकता का परिणाम हैं, इसमें एक्स्ट्रागोनेडियल ट्युमर सम्मिलित हैं। लड़कों में लैंगिक कूट अकालपक्वता वृषण या एड्रीनल  के ट्युमर द्वारा उत्पन्न अत्यधिक टेस्टोस्टेरॉन के कारण होता हैं। इस परिस्थिति में शिश्न लम्बा हो जाता हैं, लैंगिक अभिलक्षणों की प्रकटता त्वरित होती हैं, जैसे- प्युबिक व अक्षीय रोम, तीव्र शरीर वृद्धि आदि। लड़कियों में लैंगिक कूट अकालपक्वता अण्डाशय या एड्रीनल के ट्युमर द्वारा स्त्रावित एस्ट्रोजन की अत्यधिक आपूर्ति द्वारा होता हैं। इस परिस्थिति में स्तन निर्माण होता हैं तथा प्युबिक बाल दिखाई देते हैं, लेकिन अण्ड का परिपक्वन व निष्कासन नहीं होता हैं।

 

3. यूनुकॉइडिज्म -

यह टेस्टोस्टेरॉन स्त्रावण की विफलता से होता हैं। इस रोग के लिए द्वितीयक लैंगिक अंग जैसे- प्रोस्टेट ग्रन्थि, शुक्राशय तथा शिश्न अनुपयुक्त रहते हैं तथा आकृति में छोटे रहते हैं, जिससे कार्य करने में असफल होते हैं। स्पर्मेटोजोआ उत्पन्न होने में विफल होते हैं। बाह्य लैंगिक लक्षण जैसे - दाढ़ी, मूँछ तथा नर आवाज में निम्न ध्वनि तीव्रता विकसित होने में विफल रहते हैं।

 

4. गायनेकोमेस्टिया -

यह नर में स्तन ऊत्तक का विकास हैं। नीयोनेटल काल में तथा यौवनारम्भ के दौरान गायनेकोमेस्टिया चक्रिक एस्ट्रोजन में स्थायी वृद्धि के कारण होता हैं। टेस्टोस्टेरॉन में कमी से गायनेकोमेस्टिया होता हैं।

 

नर में वृषणों का निकालना केस्ट्रेशन कहलाता हैं। यह एन्ड्रोजन स्तर में क्षीणता करता हैं तथा द्वितीयक लक्षण प्रकट होने में विफल होते हैं। यह नर में उच्च ध्वनि तीव्रता करता हैं।

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