किसी वस्तु से स्पर्श करने पर धनात्मक अनुक्रिया या ऋणात्मक अनुक्रिया को स्पर्शानुचलन (Thigmotaxis) कहते हैं। जन्तुओं में त्वचा ही प्रमुख स्पर्शग्राही (Thigmo receptor or tactile receptor) होती हैं। त्वचा ही प्रमुख रूप से पीड़ा ग्राही (Pain receptors) होती हैं। सभी त्वक ग्राही संरचना में सरल होते हैं। कुछ त्वक ग्राही एक कोशिकीय (Unicellular) और कुछ बहुकोशिकीय (Multicellular) होते हैं। कुछ त्वकग्राही तंत्रिकाओं के अंतिम सिरे भी होते हैं। स्तनधारियों के त्वचा की डर्मिस में कई प्रकार के ग्राही अंग पाए जाते हैं। जिनमें निम्न प्रमुख हैं -
1. स्पर्श ग्राही (Thigmo receptors)-
स्पर्शग्राही त्वचा की एपिडर्मिस के ठीक नीचे स्थित होते हैं। ये स्पर्श द्वारा उद्दीपित होते हैं। स्पर्शग्राही का निर्माण तंत्रिका तंतु के अंतिम सिरे करते हैं, जो बहुत-सी शाखाओं में विभाजित होते हैं। कभी-कभी इन स्वतंत्र सिरों को संयोजी ऊत्तक चारों ओर से घेर लेते हैं एवं पुटिका सी संरचना बनाते हैं, वे एपिडर्मिस की स्तर में छोटे-छोटे उभार से बना लेते हैं। इनको ‘माइसनर कॉर्पुसल्स’ (Meissner’s corpuscles) कहते हैं। इनके अलावा त्वचा में ‘मर्केल्स बिम्ब’ (Meckel’s discs) भी पाए जाते हैं, जो स्पर्श ज्ञान को ग्रहण करने का कार्य करते हैं।
2. दबाव ग्राही (Pressure receptors) -
छबाव को ग्रहण करने वाले संवेदी अंगों को दबावग्राही कहते हैं। ये त्वचा में डर्मिस में नीचे की ओर स्थित होते हैं। इनमें अशाखित तंत्रिका तंतु के चारों ओर संयोजी ऊत्तक की कई पर्तें पुटिका बनाती हैं। इन्हें ‘पेसिनियन कॉर्पुसल्स’ (Pacinian corpuscles) कहते हैं।
3. शीत ग्राही (Cold receptors) -
ये सर्दी के उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं, अतः इन्हें शीतग्राही कहते हैं। यह एपिडर्मिस में स्थित होते हैं। इनके तंत्रिका सूत्र शाखित नहीं होते हैं।इनको ‘रफिनी के शीर्ष अंग’ (Ruffini’s end organs) कहते हैं।
4. ऊष्मा ग्राही (Heat receptors) -
ये गर्मी के उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। ये त्वचा की एपिडर्मिस के ठीक नीचे स्थित होते हैं। ये बहुशाखित तंत्रिका सूत्रों के बने होते हैं और बल्ब के समान दिखाई देते हैं। इनको ‘क्राउस के शीर्ष बल्ब’ (End bulbs of Krause) कहते हैं।
5. पीडाग्राही (Pain receptors) -
त्वचा की एपिडर्मिस एवं डर्मिस में जगह-जगह अत्यधिक शाखित संवेदी तंत्रिका तंतुओं का जाल बिछा होता हैं। जाल के अनेक तंतुओं के अंतिम छोर स्वतंत्र और नग्न होते हैं। इन्हें ही पीडाग्राही कहते हैं एवं पीडा संवेदांगों को ग्रहण करने का कार्य करते हैं। पीडा ग्राही यांत्रिक, रासायनिक, तापीय एवं विद्युतीय उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। ये समस्त शरीर में फैले रहते हैं। सम्भवतः खुजली एवं जलन का ज्ञान भी जंतु को इन्हीं से होता हैं।
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