Pancreas |
अग्नाशय की अन्तःस्त्रावी कोशिकाएँ |
हॉर्मोन |
प्रमुख क्रिया |
लक्षित ऊत्तक |
α-कोशिकाऐं |
ग्लुकागोन (पोलिपेप्टाइड) |
निम्न प्रकार से ग्लुकोज का स्तर बढ़ाती हैं- यकृत में ग्लाइकोजन को ग्लुकोज में तोड़ने को प्रेरित करती हैं। अन्य पोषकों के परिवर्तन को प्रमोट करती हैं, जैसे यकृत में अमीनों अम्ल व लेक्टिक अम्ल का ग्लुकोज में परिवर्तन। रक्त में ग्लुकोज के स्त्राव को बढ़ाती हैं। |
यकृत एडिपोज ऊत्तक । |
βकोशिकाऐं |
इन्सुलिन (पोलिपेप्टाइड) |
निम्न प्रकार से रक्त ग्लुकोज स्तर घटाती हैं – रक्त से पेशियों तथा एडिपोज कोशिकाओं के परिवहन को उद्दीप्त करती हैं। ग्लुकोज के ऑक्सीकरण तथा यकृत कोशिकाओं व पेशियों में ग्लुकोज के ग्लाइकोजन में परिवर्तन दोनों को प्रोमोट करती हैं। यकृत तथा पेशीय कोशिकाओं में संग्रहित ग्लाइकोजन के उपापचयी अपघटन को संदमित करती हैं। एडिपोज ऊत्तक द्वारा ग्लुकोज से वसा के संश्लेषण को प्रोमोट करती हैं तथा यह वसा के उपापचयी अपघटन को संदमित करती हैं। यकृत तथा पेशीय कोशिकाओं द्वारा अमीनों अम्ल के उपयोग को प्रोमोट करती हैं तथा प्रोटीन के संश्लेषण को उद्दीप्त करती हैं, जबकि प्रोटीन अपघटन को संदमित करती हैं। |
यकृत, पेशियाँ तथा एडिपोज ऊत्तक। |
δकोशिकाऐं |
सोमेटोस्टेटिन (पोलिपेप्टाइड) |
ग्लुकागोन तथा इन्सुलिन के स्त्रावण को संदमित करती हैं तथा पाचन नली में स्त्रावण गतिशीलता व अवशोषण को कम करती हैं। |
अग्नाशय । |
अग्नाशय ग्रन्थि से संबंधित कुछ महत्वूर्ण तथ्य -
इन्सुलिन स्त्रावण की विफलता से डायबीटिज मेलिटस होता हैं। इस रोग में रक्त शर्करा असामान्य रूप से उच्च होती हैं। फलस्वरूप मूत्र में ग्लुकोज दिखाई देने लगता हैं (ग्लुकोसुरिया)। ग्लुकोज का उपभोग घटता हैं, इसके बजाय वसा व प्रोटीन का उपचय बढ़ता हैं। वसा का ऑक्सीकरण बढ़ता हैं, जिससे कीटोन काय उत्पन्न होती हैं, जैसे - एसीटोएसीटेट तथा एसीटोन। रक्त कॉलेस्ट्रॉल भी बढ़ता हैं। मूत्र में ग्लुकोज का परासरणी प्रभाव अधिक मात्रा में मूत्र का आयतन बढ़ाता हैं (पोलियूरिया)। मूत्र में जल की हानि के कारण प्यास बढ़ती हैं। चोट के भरने में अधिक समय लगता हैं तथा यह गेन्ग्रीन्स में परिवर्तित होती हैं। इसकी चरम स्थिति में रोगी कोम से पीडित होता हैं तथा मर जाता हैं। इन्सुलिन के प्रबन्धन से रक्त शर्करा को कम किया जा सकता हैं तथा डायबीटिज के अन्य लक्षण रोके जा सकते हैं।
रोग -
1.डायबीटीज मेलिटस टाइप-Ⅰ -
यह इन्सुलिन निर्भर डायबीटीज मेलिटस (IDDM) हैं तथा Juvenile onset डायबीटीज भी कहलाता हैं, क्योंकि यह सामान्यतया 20 से अधिक उम्र के लोगों में होता हैं। यह स्वप्रतिरक्षी रोग हैं, जिसमें प्रतिरक्षी तन्त्र βकोशिकाओं को क्षयित करता हैं।
2. डायबीटीज मेलिटस टाइप-Ⅱ -
यह नोन इन्सुलिन निर्भर डायबीटीज मेलिटस (NIDDM) है। इसे maturity onset डायबीटीज भी कहते हैं, क्योंकि यह जीवन में बाद में होता हैं। यह इन्सुलिन के कमी के कारण नहीं होता हैं, लेकिन लक्षित कोशिकाओं का इन्सुलिन के प्रति कम संवेदनशील हो जाने के कारण होता हैं।
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