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नेत्र से संबंधित रोग (Disorders of Eye)

Eye Disease
Eye Disease

1.निकट दृष्टि दोष (Myopia)-

इस रोग में व्यक्ति को निकट की वस्तु तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, जबकि दूर की वस्तु अस्पष्ट दिखाई देती हैं। इस रोग में नेत्र लैंस की शक्ति बढ़ जाती हैं अथवा नेत्र गोलक का आकार बढ़ जाता हैं, जिसके फलस्वरूप वस्तु के प्रतिबिम्ब का निर्माण रेटीना परत से पहले होने लगता हैं। इसके निवारण हेतु उचित शक्ति के अवतल लैंस का उपयोग करने की सलाह दी जाती हैं।

 

2. दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia) -

इस रोग में व्यक्ति को दूर की वस्तुऐ तो स्पष्ट दिखाई देती हैं, जबकि निकट की वस्तुऐं अस्पष्ट दिखाई देती हैं। यह नेत्र लैंस की शक्ति कम होने अथवा नेत्र गोलक के आकार के कम होने के कारण होता हैं, जिसके फलस्वरूप वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटीना परत के बाद में निर्मित होने लगता हैं। इसके निवारण हेतु उचित शक्ति के उत्तल लैंस का प्रयोग करने की सलाह दी जाती हैं।

 

3. जरा दृष्टि दोष (Presbyopia) -

वृद्धावस्था में सिलयरी काय की दक्षता में कमी आती हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति का ना तो निकट तथा ना ही दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई देती हैं। इस रोग के निवारण हेतु द्विफोकसीय लैंस का प्रयोग करने की सलाह दी जाती हैं, जिसका ऊपरी भाग अवतल होता हैं तथा निचला भाग उत्तल होता हैं।

 

4. एस्टिगमेटिज्म (Astigmatism)-

इस रोग में नेत्र लैंस अथवा कॉर्निया परत की सतह खुरदरी हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप रेटीना पर वस्तु का धुंधला प्रतिबिम्ब बनने लगता हैं, इस रोग के निवारण हेतु बेलनाकार लैंस के प्रयोग की सलाह दी जाती हैं, जिसके द्वारा पूर्ण आंतरिक परावर्तन होता हैं, फलस्वरूप वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता हैं।

 

5. सफेद मोतियाबिन्द (Cataract)-

इस रोग में नेत्र लैंस अथवा कॉर्निया परत पर झिल्ली का निर्माण हो जाता हैं, जिसके फलस्वरूप अस्पष्ट प्रतिबिम्ब बनने लगते हैं, इसके निवारण हेतु शल्य चिकित्सा द्वारा झिल्ली को हटा दिया जाता हैं।

 

6. काला मोतियाबिन्द (Glaucoma) -

इस रोग में Canal of Schema अवरूद्ध हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप Vitreous chamber में Vitreous humor की मात्रा बढ़ने लगती हैं, जिसके कारण Intra ocular pressure अत्यधिक हो जाता हैं, जो रेटीना परत की प्रकाश ग्राही कोशिकाओं को नष्ट कर देता हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति को स्थायी रूप से दिखना बंद हो जाता हैं।

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