एड्रीनल शंकुकार पिरामिड आकृति की दो ग्रन्थियाँ हैं। प्रत्येक एड्रीनल बाहरी एड्रीनल वल्कुट तथा केन्द्रिय एड्रीनल मध्यांश की बनी होती हैं।
Ⅰ.एड्रीनल वल्कुट -
एड्रीनल का यह भाग जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं तथा इसके अपक्षयन व प्रतिस्थापन से जन्तु मर जाता हैं। यह हॉर्मोन के तीन समूह स्त्रावित करता हैं, जैसे - मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स, ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स तथा लैंगिक कॉर्टिकॉइड्स।
1.मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स -
यह एड्रीनल वल्कुट की सबसे बाहरी कोशिकीय परत जोनो ग्लोमेरूलोसा से स्त्रावित होता हैं। एल्डोस्टीरॉन मनुष्य, स्तनियों तथा पक्षियों में प्रमुख मिनरेलोकॉर्टिकॉइड हैं। मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स सोडियम आयन तथा पौटेशियम की उपापचय को नियमित करता हैं। इनका स्त्रावण प्लाज्मा में सोडियम आयनों की सान्द्रता में कमी या रक्त के परिसंचरित आयतन में कमी द्वारा उद्दीप्त होता हैं। एल्डोस्टीरॉन मूत्र, पसीने, लार तथा पित्त में सोडियम आयनों के निष्कासन को कम करता हैं। यह पौटेशियम आयनों के निष्कासन में वृद्धि करता हैं। रक्त में अधिक सोडियम आयनों के बने रहने से सोडियम आयनों के परासरणी प्रभाव द्वारा मूत्र से जल का पुनरावशोषण बढ़ता हैं। इसी कारण यह रक्त तथा अन्य बाह्य कोशिकीय तरल के आयतन में वृद्धि करता हैं।
2. ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स -
ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स जैसे- कॉर्टिसोल एड्रीनल वल्कुट की मध्य कोशिकीय परत (जोना फेसिक्युलेटा) से स्त्रावित होता हैं। ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स ग्लुकोनियोजेनेसिस, लिपोलाइसिस तथा प्रोटीयोलाइसिस को उद्दीप्त करता हैं तथा अमीनों अम्ल के ग्रहण व उपभोग को संदमित करता हैं। कॉर्टिसोल हृदय संवहनीय तंत्र तथा वृक्क कार्यों को बनाए रखने में भाग लेता हैं। अग्र पिट्युटरी हॉर्मोन को कॉर्टिकोट्रोपिन हॉर्मोन कहते हैं, जो ग्लुकोकॉर्टिकॉइड स्त्रावण को उद्दीप्त करता हैं, इसके विपरीत ग्लुकोकॉर्टिकॉइड स्त्रावण पर विपरीत संदमित प्रभाव डालता हैं। ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स प्रकृति में एन्टि उत्तेजक होता है तथा भक्षाणु कोशिकाओं के लाइसोसोम के स्थिरीकारी के रूप में कार्य करते हैं। लम्बे समय तक ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स का उपयोग प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया को संदमित करता हैं।
3. लैंगिक कॉर्टिकॉइड्स -
ये एड्रीनल वल्कुट की मध्य व आंतरिक परत (जोना रेटिक्युलेरिस) दोनों से स्त्रावित होते हैं। इनका स्त्रावण अग्र पिट्युटरी के कॉर्टिकोट्रोपिन द्वारा उद्दीप्त होता हैं इनमें स्टीरॉइड्स सम्मिलित हैं, जो नर के बाहरी लैंगिक लक्षणों के विकास को उद्दीप्त करते हैं, जैसे - शरीर पर बालों का वितरण (अक्षीय बाल, प्युबिक बाल तथा चेहरे के बालों की वृद्धि में भूमिका)। लैंगिक कॉर्टिकॉइड्स के उदाहरण - एन्ड्रोस्टीनीडियोन, डीहाइड्रोएपिएन्ड्रोस्टीरॉन तथा एस्ट्रोजन।
एड्रीनल ग्रन्थि से संबंधित रोग -
1.एडिसन का रोग -
ट्युबरकुलोसिस जैसे रोगों द्वारा एड्रीनल वल्कुट का अपक्षय होता है, जिससे एडिसन रोग उत्पन्न होता हैं, ऐसा ग्लुकोकॉर्टिकॉइड्स तथा मिनरेलोकॉर्टिकॉइड्स दोनों की कमी के कारण होता हैं। इसमें त्वचा ताँबें के रंग जैसी हो जाती हैं, रक्त शर्करा निम्न, निम्न प्लाज्मा सोडियम आयन, उच्च प्लाज्मा पौटेशियम आयन, मूत्राशय सोडियम आयनों में वृद्धि, मिचली, उल्टी तथा डायरिया हो जाता हैं।
2. कुशिंग सिन्ड्रोम -
एड्रीनल वल्कुट का ट्युमर अत्यधिक कॉर्टिसोल स्त्रावित करता है, जिससे कुशिंग सिन्ड्रोम होता हैं। उच्च रक्त शर्करा, मूत्र में उच्च रक्त शर्करा की प्रकटता, मोटापा, प्लाज्मा में सोडियम आयनों में वृद्धि, प्लाज्मा में पौटेशियम आयनों में कमी, रक्त आयतन में वृद्धि तथा उच्च रक्त रोगी में दिखाई देते हैं।
3. एल्डोस्टीरोनिज्म -
इसे कॉन्स सिन्ड्रोम भी कहते हैं। एड्रीनल कॉर्टिकल ट्युमर से एल्डोस्टीरॉन का अत्यधिक स्त्रावण एल्डोस्टीरोनिज्म उत्पन्न करता है। यह रोग उच्च प्लाज्मा सोडियम आयन, निम्न प्लाज्मा पौटेशियम आयन, रक्त आयतन में वृद्धि तथा उच्च रक्त दाब द्वारा अभिलक्षित होता हैं।
4. एड्रीनल विरिलिज्म -
लैंगिक कॉर्टिकॉइड्स का अत्यधिक स्त्रावण नर के बाह्य लैंगिक लक्षण उत्पन्न करता हैं, जैसे- महिलाओं में दाढ़ी व मूँछ तथा नर की आवाज। इस रोग को एड्रीनल विरिलिज्म कहते हैं।
Ⅱ. एड्रीनल मेड्युला -
एड्रीनल का यह भाग तनाव या आपातकालीन के विरूद्ध लड़ने में शरीर की सहायता करता हैं। लेकिन यह जीवनयापन हेतु आवश्यक नहीं हैं, क्योंकि इसे निकालने पर मृत्यु नहीं होती हैं। एड्रीनल मेड्युला दो हॉर्मोन स्त्रावित करता हैं, जैसे- एड्रीनलिन तथा नॉरएड्रीनलिन। इन हॉर्मोन का स्त्रावण तब उद्दीप्त होता हैं, जब तंत्रिका आवेग अनुकम्पी तंत्रिका तंतुओं द्वारा एड्रीनल मेड्युला में पहुँचते हैं। ये हॉर्मोन अनुकम्पी तंतु द्वारा अंगों व ऊत्तकों में जाते हैं तथा वहीं प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जो अनुकम्पी उद्दीपन के होते हैं।
नॉरएड्रीनलिन अनुकम्पी तंत्रिका अंतस्थ पर स्त्रावित होता हैं। अनुकम्पी तंत्रिकाऐं तथा एड्रीनल मेड्युला दोनों शारीरिक तनाव, जैसे- रक्त दाब या रक्त शर्करा, दर्द, सर्दी या चोट में उद्दीप्त होती हैं, दोनों भावनात्मक तनाव जैसे - क्रोध, डर तथा शोक में भी उद्दीप्त होते हैं। ये सभी दर्शाते हैं कि एड्रीनल मेड्युला तथा अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र घनिष्ठ रूप से एकीकृत तंत्र के रूप में कार्य करते हैं, इसे सिम्पेथेटिकोएड्रीनल तंत्र कहते हैं।
एड्रीनल मेड्युला के हॉर्मोन तथा उनके कार्य -
1.एड्रीनलिन -
यह हॉर्मोन यकृत ग्लाइकोजन के ग्लुकोज में परिवर्तन द्वारा रक्त ग्लुकोज के निष्कासन को उद्दीप्त करता हैं। रक्त दाब की दर में वृद्धि करता हैं, त्वचा तथा अन्तराली चिकनी पेशी कोशिकओं का संकीर्णन करता हैं, हृदय व कंकालीय पेशियों की धमनियों का विस्तारण करता हैं, ब्रॉन्कियॉल का विस्तारण, लिपिड के अपघटन में वृद्धि करता हैं, ऑक्सीजन उपभोग में वृद्धि करता हैं। बालों को खड़ा करता हैं, पुतलियों का विस्तारण करता हैं।
2. नॉर एड्रीनलिन -
यह हॉर्मोन भी वहीं अभिक्रियाऐं उद्दीप्त करता हैं, जो एड्रीनलिन द्वारा होती हैं।
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