आज कल आहारनाल अर्थात् ग्रसिका, आमाशय, ग्रहणी आंत्र, कोलन आदि अंगों के आंतरिक रोगों का पता अन्तर्दर्शीता विधि (Endoscopy) से ज्ञात किये जाते हैं। यहां तक यकृत एवं अग्नाशय के अन्दर उपस्थित पत्थर आदि को निकालने का कार्य अन्तर्दर्शीता विधि से किया जाता है। मलाशय, कोलन एवं मूत्राशय का भी इलाज अन्तर्दर्शीता विधि से किया जाता है। यह अत्यधिक आधुनिक एवं विकसित विधि है, जिसके द्वारा बिना चिर-फाड़ के रोग का पता भी लगाया जा सकता हैं एवं निदान भी किया जाता हैं। इस विधि में एक लम्बी नली जिसके अग्र सिरे पर कैमरा एवं केथेड्रिल लगा रहता है, का उपयोग किया जाता हैं। रोगी के मुख के द्वारा यह नली आहार नाल में कोलन तक प्रवेश कराई जा सकती है। आमाशय में प्रवेश कराने पर अन्तर्दर्शीता नली में लगे कैमरे के द्वारा विभिन्न भागों की फोटों प्राप्त किये जाते हैं। इन फोटों से ज्ञात होता हैं, कि आमाशय के किस भाग में फोड़ा (Alsar) हैं या किस भाग से रक्त का स्त्राव हो रहा हैं। केथेड्रिल की सहायता से अल्सर का इलाज किया जाता हैं। इसी के द्वारा रक्त स्त्राव के स्थान को उपचारित किया जाता हैं। आमाशय में पाई जाने वाली किसी भी प्रकार की असामान्यता इस विधि द्वारा ज्ञात की जा सकती है एवं उसका निदान किया जा सकता हैं।
अन्तर्दर्शीता विधि द्वारा ग्रहणी में पाए जाने वाले फोड़ो व अन्य असमानताओं का निदान किया जाता हैं। आन्त्र में प्रवेश कराने पर आंत्र भित्ति में फोड़ा, आंत्र में रूकावट (Obstracle) एवं आंत्र भित्ति से सूजन का पत्ता लगाया जा सकता हैं। तदनुसार रोग का निदान किया जाता हैं।
अन्तर्दर्शीता विधि का प्रयोग गुदा द्वार से नली शरीर में प्रवेश कर भी उपयोग में ली जायी जा सकती हैं। गुदा द्वारा प्रवेश कराने पर मलाशय, कोलन, मूत्राशय एवं मूत्रनलिका में पाई जाने वाली असामान्यता को ज्ञात किया जाता हैं। इन अंगों में उपस्थित असामान्यताओं का इलाज किया जाता हैं। यकृत, अग्नाशय, मूत्राशय आदि में उपस्थित पत्थर (Stone) भी इस विधि द्वारा निकाला जा सकता हैं। अन्तर्दर्शीता के कारण अंगों की चिर-फाड़ भी नहीं करनी पड़ती हैं एवं बिना कष्ट उपचार हो जाता हैं। कैमरे के कारण निश्चित स्थान पर इलाज में आसानी रहती हैं।
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