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प्रतिवर्ती क्रियाएं (Reflex actions)

प्राणियों के शरीर में होने वाली समस्त क्रियाओं को दो समूहो में विभाजित किया जा सकता है -

A. ऐच्छिक क्रियाएं

B. अनैच्छिक क्रियाएं

 

A. ऐच्छिक क्रियाएं (Voluntary actions) -

ऐच्छिक क्रियाएं प्रायः प्राणी की इच्छा शक्ति (Will power) एवं चेतना (Consciousness) पर आश्रित रहती हैं, क्योंकि इन पर प्रमस्तिष्क का नियंत्रण रहता है।

 

B. अनैच्छिक क्रियाएं (Involuntary actions) -

अनैच्छिक क्रियाएं इच्छा शक्ति के अधीन न होकर स्वतः घटित होने वाली क्रियाएं मानी गयी हैं। इसके अतिरिक्त इन क्रियाओं पर प्रमस्तिष्क का नियन्त्रण भी नहीं होता। इन्हें मस्तिष्क या मेरूरज्जु का कोई भी भाग या अन्य भाग नियन्त्रित कर लेता है अर्थात् जन्तु में मस्तिष्क की अनुपस्थिति का इन क्रियाओं पर कोई अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। सन् 1933 में मार्शल हॉल (Marshal Hall) ने इन अनैच्छिक क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रियाओं (Reflex actions) की संज्ञा दी थी।

बेस्ट एवं टेलर (Best & Taylor) के अनुसार प्रतिवर्ती क्रियाएं स्वचालित (Automatic), अनैच्छिक (Involuntary) एवं अचेत (Unconscious) क्रियाएं होती हैं।

 

 

प्रतिवर्ती क्रियाओं की क्रियाविधि (Mechanism of reflex actions) -

प्रत्येक मेरू तंत्रिका के दो मूल होते हैं - संवेदी तन्तुओं से निर्मित पृष्ठ मूल (Dorsal root) तथा चालक तन्तुओं से बना अधर मूल (Ventral root) । जब कभी हाथ की त्वचा में पिन चुभाई जाती है, तो त्वचा में उपस्थित संवेदी अंग उत्तेजित हो उठते हैं तथा ये संवेदनायें मेरू तंत्रिका के पृष्ठ मूल में से होती हुई मेरूरज्जु के धूसर द्रव्य में पहुँचती हैं। यहाँ से इन पीड़ा संवेदनाओं का विश्लेषण कर प्रत्युत्तर चालक तंत्रिका कोशिकाओं में पहुँचता है? तत्पश्चात् ये प्रेरणाएं मेरू तंत्रिका के अधर मूल के तन्तुओं के माध्यम से हाथ की पेशियों में पहुँचा दी जाती हैं। इस तरह की अनैच्छिक क्रियाओं में संवेदी अंग से लेकर अपवाहक अंग (Effective organ) तक तन्त्रिका आवेग के परिपथ को प्रतिवर्ती चाप (Reflex arc) कहा जाता हैं।

 

प्रतिवर्ती चाप में निम्नलिखित रचनाएं सम्मिलित रहती हैं -

1.संवेदी अंग (Receptor organs) -

जन्तु के संवेदी अंग बाह्य अथवा आंतरिक पर्यावरण से उद्दीपन प्राप्त कर उद्दीपीत हो जाते हैं।

 

2. संवेदी न्यूरॉन (Sensory neurons)-

इनके कोशिकाकाय (Cyton) मेरू तंत्रिका के पृष्ठ मूल गुच्छक (Dorsal root ganglion) में स्थित रहते हैं तथा इनके एक्सॉन ही स्पाइनल तंत्रिका की पृष्ठ मूल बनाते हैं। ये आवेगों को तंत्रिका आवेग के रूप में संवेदी अंग से मेरू रज्जु तक ले जाते हैं।

 

3. सहबंधक न्यूरॉन (Association neurons) -

ये मेरूरज्जु के धूसर द्रव्य में स्थित होते हैं तथा संवेदी न्यूरॉन्स को चालक न्यूरॉन्स से जोड़ने का कार्य करते हैं। तंत्रिका आवेग को ये संवेदी न्यूरॉन्स से चालक न्यूरॉन्स को प्रेषित करते हैं।

 

4. चालक न्यूरॉन (Motor neurons)-

ये प्रायः मेरूरज्जु के अधर श्रृंग के धूसर द्रव्य में उपस्थित रहते हैं। इनके एक्सॉन सम्मिलित रूप से एकत्रित होकर चालक तंत्रिका तन्तु बनाते हैं, जो  िकमेरू तंत्रिका के अधर मूल में से होकर प्रभावी अंगों में पहुँचकर समाप्त हो जाते हैं। ये न्यरॉन सहबंधक न्यूरॉन से तंत्रिकीय आवेग को ग्रहण कर उन्हें प्रभावी अंगों में से ले जाते हैं।

 

5. प्रभावी अंग (Effected organs) -

ये अंग प्राप्त हुई तंत्रिकीय आवेगों के अनुसार प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं।

 

          उपरोक्त उदाहरण में केवल एक संवेदी तथा एक चालक तंतु ही भाग लेता है, अतः इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रिया को मोनोसिनैप्टिक प्रतिवर्ती (Monosynaptic reflex) कहते हैं, परन्तु अधिकांश प्रतिवर्ती क्रियाओं के कई संवेदी एवं कई चालक तंतु कार्यरत रहते हैं तथा इन तंतुओं के मध्य विशेष प्रकार की सहबंधक न्यरॉन्स सिनैप्स बनाती हैं। अतः इस प्रकार की जटिल प्रतिवर्ती क्रियाओं को पॉलिसिनैप्टिक प्रतिवर्ती (Polysynaptic reflex) कहा जाता हैं।

 

 

प्रतिवर्ती क्रियाओं के प्रकार (Kinds of reflex actions) -

प्रतिवर्ती क्रियाऐं सामान्यतः निम्नलिखित प्रकारों की मानी जाती हैं -

 

1.सरल या अबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएं (Simple or unconditioned reflex actions) -

ये प्रतिवर्ती क्रियाएं प्राणियों में जन्म से ही होती हैं तथा जन्तु स्वयं इनमें कोई परिवर्तन नहीं कर पाता है। इनका संचालन मेरूरज्जु द्वारा नियंत्रित होता हैं। उदाहरण - पक्षियों को प्रवास (Migration of birds), घोंसला बनाना (Nest budding) आदि।

 

2. प्रतिबन्धित प्रतिवर्ती क्रियाएं (Conditioned reflex actions) -

इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रियाएं जन्तु अनुभव से उपार्जित करता हैं। पहले जंतु इन क्रियाओं को सीखता हैं, बाद में धीरे-धीरे अभ्यास हो जाने पर यह प्रतिवर्ती क्रिया का रूप ले लेती हैं।

          इन क्रियाओं का अध्ययन सर्वप्रथम रूसी वैज्ञानिक इवान पैवलॉव (Evan Pavlov) ने कुत्ते को घंटी बजाकर भोजन देने का प्रशिक्षण दिया, जिसके साथ कुत्ते में लार का स्त्रावण होता था। बाद में मात्र घन्टी बजा देने पर ही लार का स्त्रावण हुआ, यद्यपि भोजन नहीं दिया गया था।

उदाहरण - साइकिल चलाने में पैडल घुमाना, ब्रेक लगाना, हैंडल घुमाना आदि पहले व्यक्ति सीखता हैं, बाद में ये सभी प्रतिवर्ती क्रिया के रूप में होने लग जाती हैं। इसी प्रकार तैरना, नाचना आदि भी इसके उदाहरण हैं।

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