Skip to main content

एकक्लोनी प्रतिरक्षी (Monoclonal Antibodies)

अधिकतर एक क्लोनी प्रतिरक्षी उत्पादन करने वाली कोशिकाऐं कैन्सर जाति (Cancerous) प्रवृति में परिवर्तित हो जाती हैं। इन कोशिकाओं में विभाजन असीमित एवं अनियन्त्रित हो जाता हैं। कोशिकाओं के विभाजन से बने ऐसे पिण्ड को मायलोमा (Myeloma) कहते हैं। मायलोमा एकल कोशिका के विभाजन से प्राप्त होता हैं, अतः सभी संतति कोशिकाओं में एक समान जीन पाए जाते है। इन्हें क्लोन (Clone) कहते हैं। इस प्रकार से बने क्लोन की यह विशेषता होती हैं कि ये एक प्रकार के प्रतिरक्षियों का उत्पादन करते हैं।

 

सन् 1975 में जर्मनी के जॉर्ज जे. एफ. कोहलर (George J.F. Kohler) एवं अर्जेन्टीना के सीजर मिल्सटेन (Cesar Milstein) ने अपने प्रयोगों से मायलोमा के एकल क्लोन से प्रतिरक्षियों के उत्पादन की विधि विकसित की ।इन प्रतिरक्षियों को एकक्लोनी प्रतिरक्षी (Monoclonal antibodies) कहते हैं। इस कार्य के लिए इन दोनों वैज्ञानिकों को सन् 1984 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) मिला। एक क्लोनल एवं हाइब्रिडोमा तकनीक (Hybridoma technology) का विकास एक महत्वपूर्ण घटना है। कैन्सर एवं प्रतिरोधी तन्त्र (Immune system) के उपचार में एक क्लोनल प्रतिरक्षियों का उपयोग किया जाता हैं।

 

एक क्लोनी प्रतिरक्षी का निर्माण एक कोशिका से होता हैं, उन्हें एकपूर्वजक (Single clone) कहते हैं एवं इनसे बनने वाले प्रतिरक्षी को एक क्लोनी प्रतिरक्षी (Monoclonal antibody) कहते हैं। ये एक एकांकी प्रतिजनिक निर्धारक (A single antigenic antibody) कहलाते हैं एवं एक प्रतिजन से संयुक्त कराने में अति विशिष्ट प्रतिरक्षियाँ बहु क्लोनी (Polyclonal) होती हैं, क्योंकि ये बहुल क्लोनी (Multiple clonal) से व्युत्पन्न होती हैं। बहुक्लोनी प्रतिरक्षी प्रायः अपने बंधन स्थलों में विभिन्न संरचनाओं के साथ विभिन्न इम्यूनोग्लोब्युलिन वर्गों या उपवर्गों के अणुओं का मिश्रण होता है, जबकि एकक्लोनी प्रतिरक्षी में एकल ऐमीनों अम्ल क्रम होता हैं और ये एकल इम्यूनोग्लोब्यूलिन वर्ग की होती हैं।

 

 

मायलोमा कोशिकाएं (Myeloma cells) -

ट्यूमर्स (Tumors) की प्रतिरक्षी उत्पन्न करने वाली प्लाज्मा कोशिकाओं के द्वारा मायलोमा उत्पन्न करने का ज्ञान लम्बे समय से ज्ञात हैं। बी-कोशिकाओं में कैन्सरस प्रवृति के परिवर्तनों के परिणामस्वरूप ही मायलोमा विकसित होते हैं। वास्तव में एकल प्लाज्मा कोशिका के अनियमित रूप से विभाजन करने के द्वारा मायलोमा का निर्माण होता है। अब इनमें सामान्य प्रतिरक्षी के निर्माण की क्षमता समाप्त हो जाती है तथा इनके द्वारा समान रासायनिक प्रवृति एवं संरचना के इम्यूनोग्लोब्यूलिन्स स्त्रावित किए जाते हैं।

 

 

प्रतिरक्षी अभियांत्रिकी (Antibody engineering) -

यद्यपि हाइब्रिडोमा तकनीकी से एकक्लोनी प्रतिरक्षी का निर्माण संभव है, लेकिन इच्छित विशिष्टायुक्त प्रतिरक्षी की प्राप्ति नहीं हो पाती हैं। यदि प्रतिरक्षी को उत्पन्न करने वाले जीन में परिवर्तन कर दिया जाए, तो इच्छित प्रकार की प्रतिरक्षियों को प्राप्त किया जा सकता हैं। प्रतिरक्षी अभियांत्रिकी में जीन के प्रदर्शन हेतु स्तनधारियों की कोशिकाओं या जीवाणु कोशिका का प्रयोग किया जाता हैं। प्रारम्भ में हाइब्रिडोमा से प्रतिरक्षी जीन को लिया जाता है। इसे प्लाज्मिड वाहक के साथ क्लोनित किया जाता है। स्तनधारियों की कोशिका में सम्पूर्ण प्रतिरक्षी के रूप में प्रदर्शित होता है। बाद वाले जीन को प्रतिरक्षी के छोटे खण्डों (Fv, Fab, Fc) को जीवाणु के साथ क्लोनित किया जाता है। स्तनधारियों की कोशिका में इनका प्रदर्षन उस समय महत्वपूर्ण होता है, जब प्रतिरक्षी के ग्लाइकोसाइलेशन की आवश्यकता होती हैं। यद्यपि ग्लाइकोसाइलेशन की अनुपस्थिति में प्रतिरक्षी की प्रतिजन बंधन क्षमता (Antigen binding capacity) से कोई फर्क नहीं आता हैं। इस प्रकार औद्योगिक दृष्टि से प्रतिरक्षी के उत्पादन में ग्लाइकोसाइलेशन की क्रिया इतनी महत्वपूर्ण नहीं है तथा E. coli जीवाणु को उपयोग में ले सकते है।

Comments

Popular Posts

B.Sc Part-III Practical Records Complete PDF Free Download

पाचन की कार्यिकी (Physiology of Digestion)

1. मुखगुहा में पाचन (Digestion in mouth) - पाचन की प्रक्रिया यांत्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा सम्पन्न होती हैं। मुखगुहा के मुख्यतः दो कार्य होते हैं- (अ) भोजन को चबाना व (ब) निगलने की क्रिया।

ओर्निथिन चक्र (Ornithine cycle)

यकृत में अमोनिया से यूरिया बनाने की क्रिया भी होती हैं। यह एक जटिल रासायनिक प्रतिक्रिया है , जिसे ऑर्निथिन चक्र (Ornithine cycle) कहते हैं। इसी का नाम क्रेब्स-हैन्सेलेट (Krebs-Henslet cycle) चक्र भी हैं। यूरिया बनने की संपूर्ण प्रक्रिया एक चक्रीय प्रक्रिया हैं तथा इसमें अमोनिया , कार्बनडाइऑक्साइड एवं अमीनो अम्ल का समूह भाग लेते हैं। इसलिए ही इसे ‘ ऑर्निथीन-ऑर्जिनीन चक्र ’ (Ornithine-Arginine cycle) भी कहते हैं। यह निम्न पदों में पूरा होता हैं -   Ornithine cycle