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प्रतिधारा गुणक प्रणाली (Counter Multiplier mechanism)

वृक्क में मूत्र की सान्द्रता को कम या अधिक करने की क्षमता होती है। यह क्षमता वृक्क के मेड्यूला भाग की अंतराकाशी द्रव (Interstitial fluid) में उपस्थित अत्यधिक लवण सान्द्रता पर निर्भर करती हैं। एक निरन्तर प्रतिधारा प्रवाह वृक्क नलिका में बनी रहती है। इस प्रवाह के लिए वृक्क नलिका के हेनले लूप तथा वासा रेक्टा रूधिर केशिकाओं की केश-पिनाकार आकार व्यवस्था उत्तरदायी है। फिल्ट्रेट इन केश पिनाकार आकार के हेनले लूप एवं वासा रेक्टा में पहले एक दिशा में तथा फिर इसके एकदम विपरीत दिशा में बहता है, इसी प्रवाह को प्रतिधारा प्रवाह (Counter current flow) कहते हैं।

 

          इस प्रवाह के मध्य ही लवणों तथा जल का विनिमय होता है तथा एक परासरणी प्रवणता (Osmotic gradient) बनी रहती है। वृक्क कॉर्टेक्स का अंतराकाशी द्रव रूधिर के समपरासारी (Isotonic) होता है जबकि मैड्यूला का अंतराकाशी द्रव अतिपरासारी (Hypertonic) होता हैं। इस परासरणी प्रवणता को बनाए रखने में हेनले लूप एवं वासा रेक्टा में प्रतिधारा प्रवाह के दौरान निम्नलिखित प्रतिक्रियायें होती हैं -

 

हेनले लूप की अवरोही भुजा जल के प्रति पारगम्य होती है। जब फिल्ट्रेट अवरोही भुजा से गुजरता है तो जल फिल्ट्रेट से अंतराकाशी द्रव में परासरण द्वारा प्रवेश करता है तथा सोडियम क्लोराइड निष्क्रिय अभिगमन द्वारा अंतराकाशी द्रव से हेनले लूप में प्रवेश करता है, फलतः जैसे-जैसे फिल्ट्रेट नीचे की ओर लूप में जाता है वह अतिपरासारी होता जाता हैं।

 

          हेनले लूप की आरोही भुजा जल के प्रति अपारगम्य होती हैं। इस भाग में सोडियम क्लोराइड सक्रिय अभिगमन द्वारा लूप से अंतराकाशी द्रव में प्रवेश करता रहता है। फलस्वरूप आरोही लूप में उपस्थित फिल्ट्रेट ऊपर जाते समय अधोपरासारी (Hypotonic) हो जाता हैं।

 

वासा रेक्टा की दोनों भुजाऐं भी सोडियम क्लोराइड के प्रति पारगम्य होती हैं। जब रूधिर अवरोही भुजा में बहता है, तो सोडियम क्लोराइड अंतराकाशी द्रव से अवरोही भुजा में प्रवेश करता है तथा अवरोही भुजा में रूधिर में लवण की सान्द्रता नीचे आते-आते बढ़ जाती हैं। आरोही भुजा में इस अधिक सान्द्रता वाले रूधिर के ऊपर जाने पर सोडियम क्लोराइड वापस अंतराकाशी द्रव में विसरीत हो जाता हैं।

          इस प्रकार वासा रेक्टा में बार-बार होने वाले सोडियम क्लोराइड के अभिगमन तथा हेनले लूप की आरोही भुजा से सोडियम क्लोराइड के सक्रिय अभिगमन द्वारा अंतराकाशी में प्रवेश के परिणामस्वरूप अंतराकाशी द्रव में लवणों (NaCl) की सान्द्रता बहुत अधिक हो जाती है जो रूधिर व फिल्ट्रेट की तुलना में अंतराकाशी द्रव को अतिपरासारी बनाये रखती है। अंतराकाशी द्रव की अतिपरासारिता बढ़ाने में यूरिया का संग्रह वाहिनी से अंतराकाशी द्रव में प्रवेश भी सहायक होता हैं।

 

मूत्र की सान्द्रता बढ़ाने की प्रक्रिया संग्रह वाहिनी में पूर्ण होती हैं। जब संग्रह वाहिनी से फिल्ट्रेट गुजरता है तो परासरण द्वारा जल वाहिनी से अंतराकाशी द्रव में प्रवेश करता है। संग्रह वाहिनी की शारीरिय (Anatomical) व्यवस्था इस प्रकार की होती है कि यह वाहिनी हमेशा अतिपरासारी अंतराकाशी द्रव में होकर गुजरे जिसके फलस्वरूप अधोपरासरी फिल्ट्रेट में अतिपरासरी अंतराकाशी द्रव में जल का परासरण हो सके। शरीर में जल की आवश्यकता के अनुसार ही जल का परासरण द्वारा अवशोषण किया जाता है। यह संग्रह वाहिनी की कोशिका कला की परिवर्तनशील पारगम्यता पर निर्भर करता है। इस कला-पारगम्यता के परिवर्तन को एन्टीडायूरेटिक हॉर्मोन (Anti Diuretic Hormone; ADH) नियंत्रित करता हैं। ADH की उपस्थिति में संग्रहवाहिनी जल के प्रति पारगम्य होती है तथा जल परासरण द्वारा अंतराकाशी द्रव में प्रवेश करता रहता है तथा मूत्र की सान्द्रता बढ़ जाती हैं। इस प्रकार जल का संग्रह कर लिया जाता है व अधिक सान्द्रता वाला मूत्र उत्सर्जित कर दिया जाता है।

जल की शरीर में कम आवश्यकता होने पर या जल के अधिक ग्रहण करने की स्थिति में ए.डी.एच. कम मात्रा में स्त्रावित किया जाता है तथा संग्रह वाहिनी की जल के प्रति पारगम्यता कम होने के कारण जल का अंतराकाशी द्रव में परासरण कम या नहीं होता है, फलस्वरूप कम सान्द्र मूत्र उत्सर्जित किया जाता हैं।

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