आहारनाल की दीवार ग्रसिका से मलाशय तक संपूर्ण लंबाई
में चार परतों की बनी होती हैं- सिरोसा, मस्क्यूलेरिस,
सबम्यूकोसा व म्यूकोसा।
1.सिरोसा (Serosa) -
यह सबसे बाहरी परत हैं, जो एक पतली
मीजोथीलियम व कुछ संयोजी ऊत्तकों से बनी होती हैं।
2. मस्क्यूलेरिस (Muscularis) -
यह प्रायः अंदर से वर्तुल पेशियों व बाहर से
अनुदैर्ध्य पेशियों की बनी होती हैं। कुछ भागों में एक तिर्यक पेशीय स्तर भी पाया
जाता हैं,
यह आमाशय की सबसे मोटी परत हैं, क्योंकि यहाँ
सर्वाधिक क्रमानुकंुचन गतियाँ होती हैं तथा सबसे पतली परत मलाशय में होती हैं।
3. सबम्यूकोसा (Sub-mucosa) -
इस स्तर में रूधिर, लसिका व
तंत्रिकाओं युक्त मुलायम संयोजी ऊत्तक पाया जाता हैं। ग्रहणी की सबम्यूकोसा में
कुछ ग्रन्थियाँ भी पाई जाती हैं।
4. म्यूकोसा (Mucosa) -
यह आहारनाल की सबसे अंदरूनी परत होती हैं। यह स्तर
आमाशय में अनियमित वलय एवं छोटी आंत में अंगुली समान प्रवर्ध अंकुर/विलाई बनाते
हैं। अंकुर की सतह पर स्थित असंख्य सूक्ष्मप्रवर्ध, सूक्ष्मांकुर
कहलाते हैं। जिससे आंत ब्रश बॉर्डर की तरह दिखाई देती हैं। यह रूपांतरण सतही
क्षेत्रफल को अत्यधिक बढ़ा देता हैं। इन अंकुरों में केशिकाओं का जाल फैला रहता
हैं। और एक बड़ी लसिकावाहिनी होती हैं, जिसे लेक्टियल कहते
हैं।
म्यूकोसा की उपकला में कलश कोशिकाऐं होती हैं, जो म्यूकस का स्त्राव करती हैं। म्यूकोसा आमाशय और आंत्र में स्थित
अंकुरों के आधारों के बीच लीबरकुहन प्रगुहिका बनाती हैं, जिसमें
कुछ ग्रन्थियाँ होती हैं। आहारनाल की चारों परतें विभिन्न भागों में अलग-अलग
रूपांतरण दर्शाती हैं।
यकृत
(Liver)
यकृत मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि हैं, जिसका भार एक वयस्क मनुष्य में लगभग 1.2-1.5 किग्रा.
होता हैं। यह उदरीय गुहा में डायफ्राम के ठीक नीचे दॉयी ओर स्थित होता हैं। इसकी
दो पालियॉ होती हैं जिनमें अनेक यकृत पालिकाऐं पाई जाती हैं। यकृत पालिकाऐं यकृत
की संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाईयाँ होती हैं, जिनके अन्दर
यकृत कोशिकाऐं रज्जु की तरह व्यवस्थित रहती हैं। प्रत्येक यकृत पालिका संयोजी
ऊत्तक की एक पतली परत से ढकी होती हैं, जिसे ग्लिसंस सम्पुट
कहते हैं।
यकृत
की कोशिकाओं से पित्त का स्त्राव होता हैं, जो यकृत नलिका से
होते हुए एक पतली पेशीय थैली-पित्ताशय में सांद्रित एवं एकत्रित होता हैं।
पित्ताशय की नलिका सिस्टिक डक्ट, यकृत की नलिका हिपेटिक डक्ट
से मिलकर एक मूल पित्त वाहिनी बाइल डक्ट बनाती हैं।
पित्ताशयी
नलिका एवं अग्नाशयी नलिका दोनों मिलकर यकृत-अग्नाशयी वाहिनी द्वारा ग्रहणी में
खुलती हैं, जो ओडाई की अवरोधनी से नियंत्रित होती हैं।
यकृत्त के कार्य -
यकृत्त को शरीर का रासायनिक कारखाना कहा जाता हैं।
इसके कुछ प्रमुख कार्य निम्न हैं-
1.पित्त का संश्लेषण एवं स्त्रवण करना।
2. कार्बोहाइड्रेट उपापचय -
ग्लाइकोजेनेसिस - अतिरिक्त ग्लूकोज की उपस्थिति होने पर ग्लूकोज
का ग्लाइकोजन में बदलना ग्लाइकोजेनेसिस कहलाता हैं।
ग्लाइकोजीनोलाइसिस - ग्लूकोज की कमी होने पर ग्लाइकोजन
का ग्लूकोज में बदलना।
ग्लूकोनियोजेनेसिस - ग्लूकोज की अत्यधिक कमी होने पर
अकार्बोहाइड्रेट पदार्थो (अमीनो अम्ल, वसीय अम्ल आदि) का
ग्लूकोज में बदलना।
ग्लाइकोनियोजेनेसिस - पेशियों में उपस्थित लेक्टिक अम्ल
का ग्लाइकोजन में बदलना।
3. वसा संग्रहण करना।
4. विएमीनीकरण एवं यूरिया का निर्माण करना।
5. प्लाज्मा प्रोटीन्स का संश्लेषण करना।
6. रक्त का थक्का बनाने वाले अधिकांश कारकों का
संश्लेषण भी यकृत में ही होता हैं।
7. हिपेरीन का संश्लेषण।
8. विटामिन-ए का संश्लेषण व विटामिन ए, डी, ई, के व बी12 का संग्रहण करना।
9. निराविषीकरण करना।
अग्नाशय
(Pancreas)
अग्नाशय ग्रहणी की दो भुजाओं के बीच स्थित एक लंबी
ग्रन्थि हैं, जो एक मिश्रित प्रकार की ग्रंथि हैं अर्थात्
बहिस्त्रावी व अंतःस्त्रावी दोनों प्रकार की ग्रन्थियों के गुण इसमें पाए जाते
हैं। बहिस्त्रावी भाग से क्षारीय अग्नाशयी रस निकलता हैं। तथा अन्तःस्त्रावी भाग
में लैंगरहेन्स द्वीप कोशिकायें पाई जाती हैं।
लैंगरहेन्स
की α-कोशिकाओं से ग्लूकागोन का स्त्रावण होता हैं, β-कोशिकाओं से इंसुलिन
का स्त्रावण होता हैं तथा γ-कोशिकाओं से सोमेटोस्टेटिन का
स्त्रावण होता हैं।
अग्नाशय का 99 प्रतिशत भाग
बहिस्त्रावी होता हैं, जबकि 1 प्रतिशत
भाग अन्तःस्त्रावी होता हें।
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