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राजस्थान की जलवायु एवं मृदा


जलवायु
Ø परिभाषा - किसी स्थान की दीर्घकालीन वायुमण्डलीय दशाओं को जलवायु कहते हैं।
Ø कटिबंध - राज्य का अधिकांश भाग शीतोष्ण (उपोष्ण) कटिबंध में आता है।
Ø राज्य में मानसून का प्रवेश लगभग 16 जून को होता है।
Ø वर्षा की कमी - राज्य में अरावली पर्वतमाला अरब सागरीय मानसून के समानान्तर होने के कारण यहाँ वर्षा कम होती है।
Ø दैनिक तापान्तर - राज्य में सर्वाधिक दैनिक तापान्तर जैसलमेर में होता है।
Ø वार्षिक तापान्तर सर्वाधिक वार्षिक तापान्तर वाला जिला चुरू है।
Ø पुरवाई - बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवा।
Ø न्यून वायुदाब - जून माह में जैसलमेर में न्यूनतम वायुदाब होता है।
Ø मावठ - शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी चक्रवात (भूमध्यसागरीय पश्चिमी विक्षोभों) से राज्य के उत्तरी एवं पश्चिमी भागों में होने वाली हल्की वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते है।
Ø भूमध्यसागर - मावठ का उद्गम स्थल है।
Ø जैसलमेर - वार्षिक वर्षा के प्रतिशत में सर्वाधिक उतार-चढ़ाव इसी जिले में होता है।
Ø वर्षा की मात्रा - राजस्थान में पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है।
Ø मानसून की दिशा - राजस्थान में मानसूनी वर्षा दक्षिण-पूर्व में प्रवेश कर उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर बढ़ती है।
Ø आर्द्रता - राज्य में सर्वाधिक आर्द्रता एवं वर्षा वाला जिला झालावाड़ है। जबकि न्यूनतम आर्द्रता वाला जिला बीकानेर है।
Ø औसत वर्षा - राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा 57.51 सेमी. होती है।
ऋतुओं का वर्गीकरण
1.ग्रीष्म ऋतु -
§  औसत तापमान - ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 38° से. होता है।
§  समयावधि - ग्रीष्म ऋतु मार्च से मध्य जून तक होती है।
§  लू - ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में बलुचिस्तान के पठार से आने वाली गर्म पवनें लू कहलाती है।
§  भभूल्या - चक्रवात की तरह चलने वाले गर्म वायु के भंवर का स्थानीय नाम।
§  आँधियाँ - राज्य में सर्वाधिक आँधियाँ गंगानगर जिले में वर्ष में 27 दिन चलती है।
2. वर्षा ऋतु -
§  समयावधि - मध्य जून से सितम्बर तक।
§  बाँसवाड़ा - राजस्थान में लगभग 16 जून को बाँसवाड़ा से मानसून का प्रवेश होता है।
§  दक्षिण-पश्चिमी मानसून - वर्षा ऋतु में सम्पूण वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होती है। इसकी दो शाखाएँ हैं- 1. बंगाल की खाड़ी का मानसून और 2. अरब सागर का मानसून।
§  बंगाल की खाड़ी का मानसून - राज्य में अधिकांश वर्षा इस मानसून शाखा से होती है।
§  सर्वाधिक वर्षा - राज्य में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालावाड़ (100 सेमी.) और स्थान माउण्ट आबू (150 सेमी.) है।
§  न्यूनतम वर्षा - राज्य में न्यूनतम वर्षा वाला जिला जैसलमेर (15 सेमी.) है।
§  वर्षा के दिन - राज्य में वर्षा के औसत दिन 29 है। सर्वाधिक वर्षा के दिनों वाला जिला झालावाड़ (40 दिन) और न्यूनतम जैसलमेर (5 दिन) है।
3. शीत ऋतु -
§  समयावधि - अक्टूबर से फरवरी तक।
§  मानसून प्रत्यावर्तन काल - अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक का समय।
§  मावठ - भूमध्य सागरीय चक्रवातों (पश्चिमी विक्षोभों) से शीतकाल में राजस्थान में होने वाली वर्षा, जो रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है।
§  वज्र तूफान - राज्य में शीतकाल में सर्वाधिक वज्र तूफान झालावाड़ में आते है।
§  न्यूनतम तापमान - शीतकाल में न्यूनतम तापमान वाला जिला चूरू और स्थान माउण्ट आबू है।
राजस्थान के जलवायु प्रदेश
राजस्थान को पाँच जलवायु प्रदेशों में बाँटा जाता है - 1. शुष्क, 2. अर्द्ध शुष्क, 3. उप आर्द्र, 4. आर्द्र, 5. अति आर्द्र।
1.शुष्क जलवायु प्रदेश -
·        जिले - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, चूरू, पश्चिमी जोधपुर, पश्चिमी जालोर, पश्चिमी नागौर, दक्षिणी गंगानगर, दक्षिणी हनुमानगढ़।
·        औसत वर्षा - 0-20 सेमी.
·        तापमान - ग्रीष्मकाल 34° से 40° से., शीतकाल 12° से 16° से.।
·        वनस्पति - मरूद्भिद कंटीली वनस्पति।
2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश -
·        जिले - प. सीकर, प. झुँझनूँ, उत्तरी गंगानगर, उ. हनुमानगढ़, पू. जोधपुर, पू. नागौर, उ. जालोर।
·        औसत वर्षा - 20-40 सेमी.
·        तापमान - ग्रीष्मकाल 32° से 36° से., शीतकाल 10° से 16° से.।
·        वनस्पति - अर्द्ध मरूस्थलीय स्टेपी वनस्पति।
3. उपआर्द्र जलवायु प्रदेश -
·        जिले - जयपुर, अजमेर, अलवर, पूर्वी सीकर, पू. झुँझनूँ, पू. पाली, पू. जालोर, उ. सिरोही, उ. टोंक, उ. भीलवाड़ा।
·        औसत वर्षा - 40-60 सेमी.
·        तापमान - ग्रीष्मकाल 28° से 34° से., शीतकाल 12° से 18° से.।
·        वनस्पति - पर्वतीय व पतझड़ी वनस्पति।
4. आर्द्र जलवायु प्रदेश -
·        जिले - सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, बूँदी, द. दौसा, द. टोंक, राजसमंद, चित्तौडगढ़, उदयपुर, उ. कोटा।
·        औसत वर्षा - 60-80 सेमी.
·        तापमान - ग्रीष्मकाल 32° से 34° से., शीतकाल 10° से 12° से.।
·        वनस्पति - सघन पतझड़ वन।
5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश -
·        जिले - झालावाड़, बारां, द. कोटा, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, द. डूँगरपुर, माउण्ट आबू।
·        औसत वर्षा - 80-100 सेमी.
·        तापमान - ग्रीष्मकाल 28° से 32° से., शीतकाल से 10° से.।
·        वनस्पति - सवाना तुल्य वनस्पति।

राजस्थान की मिट्टियाँ
v राजस्थान की अधिकांशत मिट्टी भूरी-बलुई दोमट (रेतीली) प्रकार की है।
v राज्य की मिट्टियाँ मूल रूप् से निर्वासित एवं अवशिष्ट प्रकार की है।
v राज्य के 10 मरूस्थलीय जिलों में मरू प्रसार रोक योजनाचलाई जा रही है।
v राजस्थान में प्रथम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला 1958 में जोधपुर में स्थापित की गई।
v 1952 में जोधपुर में मरूस्थल वृक्षारोपण एवं अनुसंधान केन्द्रखोला गया।
v राजस्थान में केन्द्रीय भू-संरक्षण बोर्ड जयपुर व सीकर में स्थित है।
v अपरदन एवं अपक्षरण की समस्या को रेंगती हुई मृत्युकहते हैं।
v रेगिस्तान का आगे बढना रेगिस्तान का मार्चकहलाता है।
v राजस्थान के 14 जिलों में बंजर भूमि विकास कार्यक्रमचलाया जा रहा है क्योंकि देष की 20 प्रतिशत बंजर भूमि राजस्थान में है।
v मिट्टी की क्षारीयता की समस्या के समाधान हेतु जिप्सम उपयोगी है।
v मिट्टी की लवणीयता मिटाने के लिए रॉक फॉस्फेट उपयोगी है।
v नहरी क्षेत्र (हनुमानगढ़, गंगानगर) में सेम की समस्या’ (जलाधिक्य से दलदल) रोकने के लिए सफेदा पादप उपयोगी है।
v सेम की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित जिला हनुमानगढ़ है।
v कोशिकाओं द्वारा नीचे से ऊपर की ओर रिसाव के कारण पश्चिमी मरूस्थल की मिट्टियाँ अम्लीय और क्षारीय होती है।
v कपास उत्पादन के लिए काली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त है।
v राजस्थान में सर्वाधिक बंजर भूमि जैसलमेर में, परती भूमि जोधपुर में और व्यर्थ पठारी भूमि राजसमंद में है।
v राज्य में लोयस मिट्टी का जमाव सवाई माधोपुर, करौली और झुंझनूं जिलों में है।
v राज्य में सर्वाधिक बीहड़ भूमि सवाई माधोपुर और करौली में है।
v राजस्थान कृषि विभाग ने मिट्टियों को उर्वरता के आधार पर 14 भागों में बाँटा है।

मिट्टियों का वर्गीकरण
1.रेतीली बलुई मिट्टी -
·        विस्तार - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, चूरू, जोधपुर, प. जालोर, प. पाली, प. नागौर, हनुमानगढ़, गंगानगर।
·        प्रकार - अ. लाल रेतीली मिट्टी, ब. पीली-भूरी रेतीली मिट्टी, स. लवणी मिट्टी।
·        विशेषता - नमी कम, नाइट्रोजन कम, लवणता अधिक।
2. भूरी रेतीली मिट्टी -
·        विस्तार - पू. बाड़मेर, पू. जालोर, पू. जोधपुर, सिरोही, पाली, नागौर, सीकर झुंझनूं।
·        फसल - ज्वार, बाजरा, मँूग, मोठ।
·        विशेषता - नाइट्रोजन की अधिकता से उपजाऊपन।
3. लाल-पीली मिट्टी -
·        विस्तार - सवाई माधोपुर, करौली, भीलवाड़ा, टोंक, अजमेर।
·        विशेषता - ग्रेनाइट, शिस्ट व नीस चट्टानों से निर्मित, इसमें ह्यूमस व कार्बोनेट की कमी होती है।
4. लाल-लोमी मिट्टी -
·        विस्तार - डूँगरपुर, द. उदयपुर।
·        फसल - मक्का।
·        विशेषता - लौह ऑक्साइड व पोटाश की अधिकता।
5. मिश्रित लाल काली मिट्टी -
·        विस्तार - उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, बाँसवाड़ा।
·        फसल - कपास व मक्का।
·        विशेषता - फॉस्फेट, नाइट्रोजन, कैल्सियम और कार्बनिक पदार्थों की कमी।
6. मध्यम काली मिट्टी -
·        विस्तार - हाड़ौती का पठार (झालावाड़, बूँदी, बारां, कोटा)
·        फसल - कपास, सोयाबीन, अफीम, संतरा आदि।
·        विशेषता - कैल्सियम व पोटाश की अधिकता, नदी घाटियों में काली व कछारी मिट्टी का मिश्रण।
7. जलोढ़ (कछारी) मिट्टी -
·        विस्तार - भरतपुर, धौलपुर, दौसा, जयपुर, टोंक और सवाई माधोपुर।
·        फसल - गेहूँ, चावल, जौ, ज्वार, सरसों, कपास।
·        विशेषता - नाइट्रोजन की अधिकता, जिंक की कमी, रंग हल्का लाल।
8. भूरी मिट्टी -
·        विस्तार - बनास का अपवाह क्षेत्र (भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक व सवाई माधोपुर)
·        विशेषता - नाइट्रोजन व फॉस्फोरस की कमी।
9. भूरी रेतीली कछारी मिट्टी -
·        विस्तार - अलवर, भरतपुर, गंगानगर व हनुमानगढ़।
·        फसल - सरसों, कपास, गेहूँ।
·        विशेषता - चूने, फॉस्फोरस व ह्यूमस की कमी।
10. पर्वतीय (पथरीली) मिट्टी -
·        विस्तार - सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, डूँगरपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर और भीलवाड़ा के पर्वतीय क्षेत्र।
·        विशेषता - कम गहराई, कम उपजाऊ।

मृदा अपरदन
मृदा अपरदन चार प्रकार से होता है -
अ. आवरण अपरदन - तेज वर्षा से पहाड़ी क्षेत्र में अपरदन।
ब. धरातलीय अपरदन - पर्वतपदीय क्षेत्रों में जल के बहाव से अपरदन।
स. नालीनुमा अपरदन - चम्बल क्षेत्र में नदी-नालों द्वारा गहराई में कटाव।
द. वायु अपरदन - मरूस्थल में प्रचण्ड पवनों द्वारा अपरदन होना, राजस्थान में अधिकांश अपरदन इसी किस्म का होता है।
मृदा अपरदन रोकने के उपाय -
·        पहाड़ी ढालों व नदियों के किनारे वृक्षारोपण करना।
·        अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाना।
·        ढालू भूमि में समोच्च रेखीय कृषि करना।
·        मरूस्थलीय क्षेत्र में कतार में वृक्ष लगाना।
·        बाँध, एनीकट बनाना व मेड़बंदी करना।


अमेरिकन पद्धति से वर्गीकरण
राजस्थान की मिट्टियों को नई पद्धति से अमेरिकी विज्ञानिको द्वारा पांच भागो में विभाजित किया गया है –
1.
एरीडिसोल्स (शुष्क मिट्टी)
चुरू, सीकर, झुंझुनू, नागौर, जोधपुर, पाली, जालोर आदि जिलो में है
2.
अल्फिसोल्स (जलोढ़ मिट्टी)
जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, टोंक, भीलवाडा, चित्तोडगढ, बांसवाडा, राजसमंद, उदयपुर, डूंगरपुर, बूंदी, कोटा, बांरा, झालावाड
3.
एंटिसोल्स (पीली-भूरी मिट्टी)
राजस्थान के सर्वाधिक क्षेत्र में उपलब्ध, पश्चिमी राजस्थान के सभी मरुस्थलीय जिलो में उपलब्ध
4.
इन्सेपटीसोल्स (आद्र मिट्टी)
सिरोही, पाली, राजसमंद, उदयपुर, भीलवाडा, चित्तोडगढ, जयपुर, दौसा, अलवर, झालावाड, सवाई माधोपुर
5.
वर्टिसोल्स (काली मिट्टी)
झालावाड, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, भरतपुर, डूंगरपुर, बांसवाडा, चित्तोडगढ

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