Skip to main content

मछलियों में शल्क

मछलियों में शल्क


मत्स्य वर्ग में त्वचा दो स्तरों की बनी होती है; बाह्य अधिचर्म अथवा एपिडर्मिस तथा आंतरिक चर्म अथवा डर्मिस। मछलियों में चर्मीय स्तर शल्कों को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भाग अदा करता है अतः इनके शल्कों को चर्मीय शल्क कहते है। सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी स्थलीय प्राणियों में शल्कों  की व्युत्पति अधिचर्म से होती है अतः इनके शल्क अधिचर्मीय शल्क कहलाते हैं।
मछलियों में शल्कों  को निम्न रूप से वर्गीकृत किया जा सकता हैः
1. प्लेकॉइड शल्क -
प्लेकॉइड शल्क इलैस्मोब्रैंक मछलियों में पाया जाता है। प्लेकॉइड शल्क में एक-एक गोलाकार या चतुष्कोणीय आकार की एक आधारी प्लेट होती हैं जो चर्म में शार्पे तथा अन्य संयोजी उत्तकों की सहायता से मजबूती से जुड़ी होती है। आधारी प्लेट से एक पीछे की ओर निकला शूल बाहरी परत, दन्त के एनैमल समान, एक कठोर, पारदर्शी पदार्थ विट्रोडेन्टीन की बनी होती हैं। विट्रोडेन्टीन के नीचे डेन्टीन का एक स्तर होता है जो मज्जा-गुहा को घेरे रखती है। मज्जा-गुहा से शल्क में रूधिर वाहिनियाँ, तंत्रिका सूत्र तथा लसिका वाहिनियाँ प्रवेश करती हैं। डेन्टीन में अनेक, शाखित सूक्ष्म नलिकायें पाई जाती हैं जिनमें ओडोन्टोब्लास्ट्स के अनेक लंबे जीवद्रव्य-प्रवर्ध पाए जाते हैं। ओडोन्टोब्लास्ट कोशिकाओं का कार्य डेन्टीन का निर्माण होता है।
2. कॉस्मॉइड शल्क -
इस प्रकार के शल्क विलुप्त ऑस्ट्रेकोडर्म मछलियों में मिलते है। प्रत्येक कॉस्मॉइड शल्क तीन स्तरों का बना होता है जो निम्न होते हैं;
अ. विट्रोडेन्टीन - पतली एनैमल सदृश्य बाहरी स्तर विट्रोडेन्टीन कहलाती है।
ब. कॉस्मीन - कठोर, अकोशिकीय, डेन्टीन सदृश्य मध्य स्तर कॉस्मीन कहलाता है।
स. आइसोपिडीन - अस्थिल पदार्थों का बना, रूधिर वाहिनियों युक्त आंतरिक स्तर आइसोपिडीन कहलाता है।
3. गेनॉएड शल्क -
गेनॉएड शल्क आदिम एक्टिनोप्टेरीजी मछलियों में पाए जाते है। ये शल्क सामान्यतः चतुष्कोणीय प्लेटों के समान होते है जो टाइलों की तरह जुड़ कर बाह्य कंकाल का निर्माण करते है। गेनॉएड शल्क कोन्ड्रोस्टियन तथा होलोस्टियन मछलियों में विशेश रूप से विकसित होते है। गेनॉएड शल्क भी तीन स्तरों का बना होता है, जो निम्न है-
अ. गेनॉयन - गेनॉएड शल्क का बाहरी भाग स्तर एक कठोर, अकार्बनिक, एनैमल सदृश्य पदार्थ का बना होता है, जिसे गेनॉयन कहते है।
ब. कॉस्मीन - डेन्टीन सदृश्य पदार्थ कॉस्मीन मध्य स्तर बनाता है।
स. आइसोपिडीन - यह स्तर आंतरिक सर्वाधिक मोटा तथा अस्थिमय होता है।
4. साइक्लॉएड शल्क -
साइक्लॉएड तथा टीनॉएड शल्कों  को बोनी रिज शल्क भी कहते है। साइक्लॉएड शल्क टिलीओस्टियन मछलियों की विशेशता है। ये शल्क पतले, लचीले तथा पारदर्शी होते है। क्योंकि इनमें बाहरी तथा मध्य स्तर अनुपस्थित होते हैं। साइक्लॉएड शल्क लगभग गोलाकार होते हैं जो मध्य से मोटे होते हैं। इनका मध्य भाग फोकस कहलाता है, जिसके चारों ओर संकेन्द्रित वृद्धि रेखाएं स्थित होती है।
साइक्लॉएड शल्क लेबिओं, कटला आदि टिलीओस्ट मछलियों में मिलते है।
5. टीनॉएड शल्क -
टीनॉएड शल्क आकार तथा संरचना में लगभग साइक्लॉएड शल्कों  जैसे होते हैं, परंतु इनके स्वतंत्र पश्च भाग पर असंख्य, छोटे-छोटे, कंघी के दाँत समान शूल स्थित होते हैं। इस प्रकार के शल्क आधुनिक टिलीओस्ट मछलियों जैसे पर्च आदि में मिलते है। कुछ मछलियों की देह पर साइक्लॉएड, टीनॉएड तथा इनके बीच के माध्यमिक प्रकार के शल्क सभी देखे जा सकते हैं, जैसे- फ्लाउन्डर्स।

शल्कों  में रूपान्तरण तथा विभिन्नता -
मछलियों के शल्कों  में अनके रूपान्तरण पाए जाते है। शार्क मछली के जबड़ों में उपस्थित दन्त शल्कों  का रूपान्तरण होते हैं। प्रीस्टीस के सा-टीथ तथा स्टिंग रे का स्टिंग सभी रूपान्तरित शल्क हैं। टेट्राडॉन तथा डायोडॉन में शल्क लंबे होकर कंटकों का रूप ले लेते हैं।समुद्री घोड़े तथा पाईप फिश में शल्क संलग्न हो कर अस्थि प्लेटों का एक कवच बना देते है।

शल्कों  का उपयोग -
1. वर्गीकरण तथा पहचान में -
मछलियों के विभिन्न गणों में शल्कों  का प्रकार, उनका विन्यास, संख्या, आकृति व संरचना भिन्न होती हैं जो पहचान व वर्गीकरण में महत्वपूर्ण है।
2. अण्डजननों की संख्या ज्ञात करने में -
कुछ प्रवासी मछलियों में अण्डजनन मार्क पाए जाते है। समुद्रापगमी प्रवास के दौरान ये मछलियाँ भोजन ग्रहण नहीं करती हैं तथा कैल्शियम की कमी के कारण इनके शल्कों  से कैल्शियम का अपरदन होता है। यह कैल्शियम अपरदन शल्कों  पर निशान छोड़ जाता है। जिसे अण्डजनन मार्क कहते हैं। इन निशानों की संख्या के आधार पर अण्डजनन कितनी बार हुआ है, यह ज्ञात किया जा सकता है।
3. आयु ज्ञात करने में –
मछलियों में वृद्धि स्थिर नहीं होती हैं, अर्थात् ग्रीष्म काल में, जब भोजन प्रचुर मात्रा में होता है, वृद्धि दर शीतकाल की अपेक्षा अधिक गति से होता है। इस प्रकार शल्कों  पर उपस्थित खुली रेखाएं ग्रीष्म काल में हुई वृद्धि तथा तंग रेखाएं शीतकाल में हुई वृद्धि दर्शाती है।


Comments

Popular Posts

B.Sc Part-III Practical Records Complete PDF Free Download

पाचन की कार्यिकी (Physiology of Digestion)

1. मुखगुहा में पाचन (Digestion in mouth) - पाचन की प्रक्रिया यांत्रिक एवं रासायनिक विधियों द्वारा सम्पन्न होती हैं। मुखगुहा के मुख्यतः दो कार्य होते हैं- (अ) भोजन को चबाना व (ब) निगलने की क्रिया।

ओर्निथिन चक्र (Ornithine cycle)

यकृत में अमोनिया से यूरिया बनाने की क्रिया भी होती हैं। यह एक जटिल रासायनिक प्रतिक्रिया है , जिसे ऑर्निथिन चक्र (Ornithine cycle) कहते हैं। इसी का नाम क्रेब्स-हैन्सेलेट (Krebs-Henslet cycle) चक्र भी हैं। यूरिया बनने की संपूर्ण प्रक्रिया एक चक्रीय प्रक्रिया हैं तथा इसमें अमोनिया , कार्बनडाइऑक्साइड एवं अमीनो अम्ल का समूह भाग लेते हैं। इसलिए ही इसे ‘ ऑर्निथीन-ऑर्जिनीन चक्र ’ (Ornithine-Arginine cycle) भी कहते हैं। यह निम्न पदों में पूरा होता हैं -   Ornithine cycle