केन्द्रक में डीएनए (DNA) की लंबे धागेनुमा संरचना पाई जाती है, जिन्हें गुणसूत्र (Chromosome) कहा जाता है। ये जीनों को धारण करते हैं, जो वंशागति एवं लक्षणों के स्थानांतरण में सहायता करते है। गुणसूत्रों को केवल कोशिका विभाजन के समय ही देखा जा सकता है।
ऐसी कोशिका जो विभाजित नहीं हो रही है, में डीएनए क्रोमेटिन पदार्थ के रूप में पाया जाता है। न्यूक्लियोसोम क्रोमेटिन (Chromatin) की इकाई है। न्यूक्लियोसोम डीएनए एवं हिस्टोन प्रोटीन से मिलकर बना होता है। जब कोशिका विभाजित होने वाली होती है, तो क्रोमेटिन पदार्थ गुणसूत्र में व्यवस्थित हो जाता है। जब कोशिका विभाजित होने वाली होती है, तब गुणसूत्रों को रॉड नुमा संरचना के रूप में देखा जा सकता है। गुणसूत्र डीएनए के बने होते है। डीएनए के कार्यात्मक खण्डों को ही जीन कहा जाता है।
न्यूक्लियोटाइड एवं न्यूक्लियोसाइड :-
विषमचक्रीय वलय (Heterocyclic ring):- वे चक्रीय यौगिक जिनकी वलय में कम से कम दो भिन्न परमाणु पाए जाते है।
जब विषमचक्रीय कार्बन वलय एक शर्करा के अणु से जुडती है, तो इसे न्यूक्लियोसाइड (Nucleoside) कहा जाता है। और जब न्यूक्लियोसाइड से फॉस्फेट समूह और जुड़ जाता है, तो ये न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) कहलाता है। डीएनए और आरएनए (RNA) में केवल न्यूक्लियोटाइड पाए जाते है। न्यूक्लियोटाइड के 3 घटक होते हैः- 1.विषमचक्रीय वलय 2. मोनोसैकेराइड शर्करा 3. फॉस्फेट समूह
न्यूक्लिक अम्ल :-
न्यूक्लिक अम्ल न्यूक्लियोटाइड के बहुलक होते है, इसी कारण न्यूक्लिक अम्ल को पॉलीन्यूक्लिओटाइड (Polynucleotide) भी कहा जाता है। न्यूक्लियोटाइड एक दूसरे से सह-संयोजी बंध द्वारा जुड़े होते हैं। ये सहसंयोजी बंध एक न्यूक्लियोटाइड अणु की शर्करा और दूसरे अणु के फॉस्फेट समूह के मध्य होता है।
न्यूक्लिक अम्ल में राइबोज या डीऑक्सीराइबोज शर्करा (De-oxyribose Sugar) पाई जाती है।
न्यूक्लिक अम्ल में पाए जाने वाले विषमचक्रीय यौगिक नाइट्रोजनी क्षार होते है, जैसेः- एडीनीन, ग्वानिन, यूरेसिल, साइटोसीन और थाइमीन।(Adenine, Guanine, Uracil, Cytosine & Thymine)
डीएनए और आरएनए (DNA & RNA) :-
प्रत्येक जीव एवं जंतु की पीढ़ी, उसकी पैत्तृक पीढ़ी से कईं मामलों में समान होती है। ये देखा गया है कि इसका कारण सजीव कोशिका का केन्द्रक होता है।
वह पदार्थ जो केन्द्रक में पाया जाता है और वंशागति के लिए जिम्मेदार है, उसे गुणसूत्र कहा जाता है, जो कि प्रोटीन एवं न्यूक्लिक अम्ल से मिलकर बना होता है। न्यूक्लिक अम्ल लक्षणों की वंशागति के लिए जिम्मेदार होता है। न्यूक्लिक अम्ल दो प्रकार के होते है:- डीएनए और आरएनए।
वह न्यूक्लिक अम्ल जिसमें डीऑक्सीराइबोज शर्करा पाई जाती है, वह डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल कहलाता है। जबकि वह न्यूक्लिक अम्ल जिसमें राइबोज शर्करा (Ribose Sugar) पाई जाती है, वह राइबो न्यूक्लिक अम्ल (Ribonucleic Acid) कहलाता है।
आरएनए एवं डीएनए दोनों में एडीनीन, ग्वानिन और साइटोसीन पाए जाते है, चौथा क्षार दोनों में अलग-अलग होता है। डीएनए में यह थाइमीन, जबकि आरएनए में यूरेसिल पाया जाता है।
डीएनए द्विरज्जुकी होता है, और आरएनए एक रज्जुकी होता हैं। दो भिन्न प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारकों के मध्य हाइड्रोजन बंध पाया जाता है, जिससे डीएनए द्विरज्जुकी का निर्माण होता है।
यूकैरियोटिक जीवों में डीएनए उनके केन्द्रक और अन्य कोशिकांगों में पाया जाता है, जबकि प्रोकैरियोटिक जीवों में डीएनए उनके जीवद्रव्य में पाया जाता है।
आरएनए तीन प्रकार का होता है:- राइबोसोमल आरएनए, मैसेन्जर आरएनए, ट्रांसफर आरएनए।
आरएनए वायरसों का मुख्य आनुवंशिक पदार्थ होता है।
न्यूक्लिक अम्ल के कार्य :-
डीएनए को वंशागति का रासायनिक आधार माना जाता है, जिसमें आनुवंशिक सूचनाऐं संरक्षित होती है।
कईं वर्षो से डीएनए विभिन्न प्रजातियों एवं जीवों की पहचान बनाए रखने में सहायक है।
डीएनए स्वप्रतीकृतीकरण द्वारा समान डीएनए बनाने में सक्षम होता है।
न्यूक्लिक अम्ल कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण में भी सहायक होता है। प्रोटीन का संश्लेषण विभिन्न प्रकार के आरएनए अणुओं द्वारा होता है, लेकिन विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन के संश्लेषण का संदेश डीएनए में ही स्थित होता है।
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